गुड सेड़ का काम अधूरा लेकिन रेलवे प्रशासन ने प्रारंभ कराया गुड सेड में कोयले की लोडिंग अनलोडिंग
गुड सेड़ का काम अधूरा लेकिन रेलवे प्रशासन ने प्रारंभ कराया गुड सेड में कोयले की लोडिंग अनलोडिंग
*रेलवे प्रबंधन कटघरे में*
शहडोल/अनूपपुर
शहडोल अनूपपुर जिले के सीमा पर अमलाई रेलवे स्टेशन से महज 50 मीटर की दूरी पर रेलवे प्रशासन द्वारा ठेकेदार के माध्यम से गुड सेड़ का निर्माण कराया जा रहा है, बताया जाता है कि यह निर्माण कार्य अभी पूर्ण नहीं हो पाया है और वहां भवन निर्माणाधीन है और पानी टंकी का निर्माण भी नहीं कराया गया है, इसके बावजूद वहां कोयले की लोडिंग अनलोडिंग प्रारंभ कर दी गई है। जिससे स्टेशन में आने जाने वाले यात्री एवं इंदिरा नगर के लोग परेशान हो रहे हैं। बताया जाता है कि अभी तक गुड़ सेड़ में भवन निर्माण अधूरा है और स्प्रिंगलर चालू करने के लिए पानी टंकी का निर्माण भी नहीं हो पाया है, जब पानी टंकी का निर्माण ही नहीं हुआ है तो स्प्रिंगलर प्रारंभ कैसे होगा। ऐसे में कोयले की लोडिंग अनलोडिंग से पूरा क्षेत्र कोयले के डस्ट से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से लोग परेशान हो रहे हैं। जिस स्थान से कोयले से लगे भारी वाहनों का आवागमन हो रहा है, वहां रहवासी बस्ती है और मुख्य गेट के सामने ही सरस्वती शिशु मंदिर स्थित है, जहां सैकड़ो नौनिहाल अध्यनरत हैं। पूर्व में कोयला प्रदूषण से परेशान हो रहे लोगों द्वारा आंदोलन भी किया गया था और हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी। हाई कोर्ट के निर्देशों एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों को पूर्ण भी नहीं किया जा रहा है, गुड सेड के किनारे एक दर्जन से भी कम पेड़ लगाए गए हैं। जब पेड़ नहीं लगाए गए, पानी टंकी के काम चालू नहीं हुआ ऐसे में स्प्रिंगलर मात्र दिखावा साबित हो रहा है। जन चर्चा यह भी है कि पूर्व में यह बताया गया था कि निर्माण कार्य इसलिए कराया जा रहा है कि इसमें ओरिएंट पेपर मिल में आने वाला नमक इत्यादि रेट के माध्यम से अनलोड किया जाएगा, लेकिन यहां तो पूर्व की तरह कोयले की अनलोडिंग कराई जा रही है। रेलवे प्रशासन एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा मनमानी तरीके से गुड सेड में अनलोडिंग का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।
बताया जाता है कि गुड सेड में आवागमन करने के लिए रेलवे प्रशासन का कोई निजी मार्ग नहीं है वहीं प्राइवेट व्यक्तियों के मुख्य द्वार से ही गाड़ियों का आवागमन रेलवे प्रशासन की मिली भगत से किया जा रहा है।
सवाल यह उठता है कि क्या रेलवे प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को जनता के हितों का ध्यान नहीं है और कोयला प्रदूषण से जो भी प्रतिकूल असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड रहा है उसकी जिम्मेदारी किसकी है। अब जनता के पास आंदोलन के सिवाय कोई हल नहीं निकल रहा है क्योंकि जब हाई कोर्ट के निर्देशों का ही पालन रेलवे प्रशासन के अधिकारी नहीं कर रहे हैं तो जनता के हितों का ध्यान कैसे रखेंगे।



















