एक आदर्श वृद्धाश्रम, अपने घावों को भरने का मरहम- एडीजीपी डी सी सागर


शहड़ोल

भारत में परिवार सशक्‍त मानवीय मूल्‍यों एवं आदर्शों पर आश्रित होता है। वृद्धाश्रम का अस्तित्‍व समाज में तभी आया है जब परिवार में मानवीय मूल्‍यों का अधोपतन या विघटन हुआ है। इस गतिविधि को परिवार में मानवीय मूल्‍यों का स्‍वार्स्‍थ सिद्धि की भेंट चढ़ जाना कहा जा सकता है। परिवार में मानवीय मूल्‍यों के नि:शक्‍त हो जाने के कारण वृद्धाश्रम में वृद्ध महिलाएं और वृद्ध पुरुष निराश्रित, असहाय और लाचारी में जीवन जीने को विवश हो जाते हैं। उनके जीवन में उनके परिवार के सदस्‍यों द्वारा दुर्व्‍यवहार के साथ-साथ संवेदनहीनता एवं अमानवीयता से बेघर कर दिया जाता है। 

उदाहरण के लिए शहडोल के एक वृद्धाश्रम में पहुंचकर, सम्‍मानित वृद्धजनों के दर्शन करने का अवसर मिला। सभी वृद्धजन निराश, दिल से दु:खी और अपने अतीत की खुशियों को फिर से वृद्धाश्रम के नए वातावरण में तलाशने की कोशिश करते हुए नजर आये। इनमें किसी की बहू ने सास के साथ दुर्व्‍यवहार किया और घर से निकाल दिया। कहीं बेटे ने कर्तव्‍य को तिलांजलि देकर अपने पिता को घर से बेघर किया। अनेक वृद्ध महिलाएं इस हद तक अवसादग्रस्‍त थीं कि उन्‍होंने अपनी सारी सम्‍पत्ति को दान कर दिया या जल में प्रवाहित कर दिया। 

अत: वृद्धाश्रम इस प्रकार होना चाहिए कि उसमें निवासरत वृद्धजन अपने अंत:करण में परमानंद की खोज करने में सफल हो सकें। इस प्रकार का सकारात्‍मक वातावरण तभी संभव है जब वृद्धाश्रम में वे सभी मानवीय मूल्‍य जो एक परिवार को सृजित करते हैं, पुष्पित करते हैं और समृद्ध बनाते हैं उनका पुनर्जागरण हो। एक आदर्श और समृद्धशील वृद्धाश्रम की परिकल्‍पना निम्‍नानुसार है -


साफ-सफाई - बेडशीट, गद्दे, मच्‍छरदानी आदि साफ-सुथरे होने चाहिए। कम्‍बल, रजाई, तकिया, गद्दे आदि को आवश्‍यकता अनुसार समय-समय पर सुखाना चाहिए। पीने का पानी साफ उपलब्‍ध होना चाहिए। 

पौष्टिक आहार - समय पर पौष्टिक आहार आयु के अनुकूल देना चाहिए। भोजन की गुणवत्‍ता उच्‍च स्‍तर का होना चाहिए।

स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल - समय-समय पर मेडिकल चेकअप करना चाहिए और आवश्‍यक दवाईंया देना चाहिए।

योग, ध्‍यान, शारीरिक व्‍यायाम, खेलकूद एवं मनोरंजक गतिविधियां : स्‍वास्‍थ्‍य के अनुरूप प्रतिदिन हल्‍के शारीरिक व्‍यायाम, योग, ध्‍यान एवं मनोरंजक गतिविधियां होना चाहिए। मनोरंजन के संसाधन जैसे- बड़े स्‍क्रीन की टीवी, म्‍यूजिक सिस्‍टम उपलब्‍ध होने चाहिए। इंडोर गेम जैसे - कैरम, चेस आदि खेल होने चाहिए। समय-समय पर मनोरंजक गतिविधियां होना चाहिए। परिसर में झूला लगा होना चाहिए।

परिसर का सौंदर्यीकरण एवं स्‍वच्‍छता - परिसर की साफ-सफाई नियमित रूप से होनी चाहिए। परिसर में हरियाली होनी चाहिए। परिसर में फलदार वृक्ष होने चाहिए। वॉक करने के लिए सुरक्षित ट्रैक होना चाहिए, जिसके आसपास फूल लगे हों।

रचनात्‍मक कार्य -15 दिन में एक बार धार्मिक, दर्शनीय स्‍थल भ्रमण पर ले जाना चाहिए। रुचिपूर्ण सरल रचनात्‍मक कार्यों जैसे - चित्रकला, काव्‍य रचना, रुई बाती, अगरबत्‍ती निर्माण आदि में लगाना चाहिए। 

वृद्धाश्रम जहां-जहां भी स्थित हों उनमें अनंत खुशियों का संसार हो जिससे निवासरत सभी वृद्धजन अपने बेटा, बेटी, बहू या अन्‍य परिजनों को क्षमा करते हुए उनसे जुड़ी हुई सभी यादों को विलुप्‍त कर सकें और अपनी प्रशन्‍नता के जनक स्‍वयं बन सकें। वृद्धाश्रम में निवासरत सभी वृद्धजन जिन्‍हें मैं दिल से युवा मानता हूँ उनकी हौसला-अफजाई के लिए चंद पंक्तियां इस प्रकार हैं:- 


तू खुद की खोज में निकल

तू किस लिए हताश है,

तू चल, तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

समय को भी तलाश है।।


डी. सी. सागर, अतिरिक्‍त पुलिस महानिदेशक, शहडोल ज़ोन

मूक बधिर लापता युवती को पुलिस ने उत्तरप्रदेश से लाकर परिवार से मिलाया


शहडोल

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के अमलाई थाने की पुलिस ने अपने बेहतरीन क्षमता और प्रयासों का उदाहरण पेश करते हुए अमलाई से गुम हुई एक मूक बधिर युवती जो कि स्कूटी छोड़कर लापता हो गई थी, उसे यूपी के मथुरा से ढूंढ निकाला है। युवती 4 दिन से घर से गायब थी। पुलिस ने उसे दस्तयाब कर परिजनों के हवाले कर दिया है। इधर लापता बच्ची को पाकर परिजनों के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, बच्ची के परिजन शहडोल पुलिस की जमकर तारीफ कर रहे है। अमलाई थाना क्षेत्र की रहने वाली एक मूक बधिर युवती 4 दिन पहले अमलाई थाना क्षेत्र के अमरकंटक रोड़ डोंगरिया के पास स्कूटी छोड़कर लापता हो गई थी, जिसकी जानकरी परिजनों ने अमलाई पुलिस को दी थी। पुलिस ने तत्काल गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करते हुए ,साइबर सेल की मदद से युवती का लोकेशन ट्रेस कर एक टीम यूपी के मथुरा रवाना हुई, जंहा से युवती को दस्तयाब कर अमलाई लेकर उसे परिजनों के हवाले कर दिया।

सिविल सेवा दिवस पर, इस क्षेत्र में निस्वार्थता व व्यावहारिकता पर एडीजीपी की भावनाए


राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस के अवसर पर, मैं सिविल सेवा के क्षेत्र में निस्वार्थता और व्यावहारिकता के बारे में अपनी भावनाओं को साझा करना चाहता हूं। कुछ दिन पहले मेरे अंदर ये भावनाएँ जागृत हुईं। एक दिन, मेरी दो बेटियां, जो रचनात्मक और खुशमिजाज़ हैं, ने मुझसे पूछा कि भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति कब है। एक शरारती मुस्कान के साथ मैंने उन्हें जो बताया, वह तर्क के साथ प्रबलित एक भावनात्मक कविता में तब्दील हो गया।

यह रहा:

"मेरे जुनून का सत्र"

जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरा जुनून अनंत तक बढ़ता जाता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरे जुनून का सत्र हर घमंड को त्याग देता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति बढ़ती जा रही है, मेरे जुनून का दौर और भी अधिक गंभीर होता जा रहा है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरे जुनून का सत्र और अधिक क्षमता प्राप्त करता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरे जुनून का सत्र और अधिक जीवंत हो जाता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरे जुनून का सत्र और अधिक मापनीयता जोड़ता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती जा रही है, मेरे जुनून का सत्र हर कसौटी पर खरा उतरता जा रहा है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरे जुनून का सत्र तारकीय दृश्यता को अनुकूलित करता है।

जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित होती है, मेरे जुनून का सत्र जीवन शक्ति की भावना को कई गुना बढ़ा देता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र अधिक स्थिरता को घेरता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र प्रतिरक्षा के लिए स्वस्थ एंटीबॉडी को बढ़ावा देता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र रचनात्मकता के लिए लाल अक्षर वाले दिन को सृजित करता है।

जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र किसी भी तरह की फिजूलखर्ची को त्याग देता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर बढ़ती है, मेरे जुनून का सत्र सभी के समक्ष सम्मान के साथ झुकना सिखाता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र मुझे जीवन की नाजुकता के बारे में समझदार बनाता है। जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र आध्यात्मिकता में सिकुड़ने से इनकार कर रहा है।

जैसे-जैसे भारतीय पुलिस सेवा से मेरी सेवानिवृत्ति मेरी ओर आकर्षित हो रही है, मेरे जुनून का सत्र हिमालयी मानवता की गहराई से गूँज रहा है। इधर-उधर भटकने के बाद, मैंने अपनी बेटियों को, जिनका धैर्य टूटने ही वाला था, बताया कि मेरी सेवानिवृत्ति 30 जून, 2025 को होगी। उन दोनों ने मुझे इतने प्रगतिशील और उत्साहपूर्ण विचार रखने के लिए हार्दिक बधाई दी। साथ ही  अपने रिटर्न उपहार का वादा पूरा करने के लिए अशेष  शुभकामनाएं भी दीं। ऐसी ही स्पोर्टिंग हैं मेरी बेटियां जिन्हें अपनी स्मार्ट मां का पूरा सपोर्ट मिलता है। सेवानिवृत्ति एक उत्साहपूर्ण उत्सव है एक नई कसौटी की ओर जिस पर सर्वत्र खरा उतरना होगा।

सशक्त हस्ताक्षर ने स्व. इन्द्र बहादुर खरे की याद में 24 वीं काव्य गोष्ठी संपन्न 


   

जबलपुर

सशक्त हस्ताक्षर की 24वीं कवि गोष्ठी श्री जानकी रमण महाविद्यालय में सानंद सम्पन्न हुई। संस्थापक गणेश श्रीवास्तव प्यासा ने अपनी वाणी से सभी अतिथियों, कवियों-कवयित्रियों का अभिनंदन किया ၊ मुख्य अतिथि पूर्व प्राचार्य यशोवर्धन पाठक, अध्यक्षता उदय भास्कर अम्बष्ठ पूर्व प्रबंधक एस. वी. आई. विशिष्ट अतिथि पं. दीनदयाल तिवारी बेताल, प्राचार्य अभिजात कृष्ण त्रिपाठी, प्रो. मलय रंजन खरे की गरिमामय उपस्थिति रही। इस अवसर पर सशक्त हस्ताक्षर द्वारा यशोवर्धन पाठक, उदय भास्कर अम्बष्ठ, पं. दीनदयाल तिवारी बेताल का शाल, श्रीफल, मानपत्र देकर सम्मानित किया गया। गोष्ठी प्रसिद्ध शिक्षाविद्, संपादक, युवा कवि स्व. इन्द्र बहादुर खरे की पुण्यतिथि के अवसर पर पुण्य स्मरण हेतु समर्पित थी। मुख्य अतिथि की आसंदी से यशोवर्धन पाठक ने उनसे जुड़े संस्मरण, व्यक्तित्व - कृतित्व व समकालीन कवियों व कविता पर  विशद् प्रकाश डाला।

सरस्वती वंदना आकाशवाणी कलाकार लखन रजक ने की।  कवि गोष्ठी की शुरुआत स्वर झंकार की अध्यक्षा राजकुमारी राज ने देवी की आराधना करके की। जी. एल. जैन महासचिव ने हास्य व्यंग्य के तीर छोड़े। संदीप खरे युवराज ने गीत एवं वरिष्ठ कवयित्री निर्मला तिवारी ने करुण रस में डूबी प्रभावपूर्ण रचना पढ़ वाहवाही ली ၊ आशुतोष तिवारी, रामकुमार वर्मा, प्रकाश सिंह ठाकुर ने गज़ल, इन्द्र सिंह राजपूत ने जल की समस्या पर शानदार रचना पढ़ी।  वरिष्ठ कवि जयप्रकाश श्रीवास्तव ने भी जल, नदी, रेत, सूखे की परेशानियों पर सुंदर दोहे सस्वर पढ़ें सभी की खूब सराहना प्राप्त की। यशोवर्धन पाठक, डॉ. विनोद श्रीवास्तव, अम्लान गुहा नियोगी ने संघर्ष की प्रेरणा देते हुए जोश से भरपूर रचना पढ़ी।  पं. दीनदयाल तिवारी बेताल, अध्यक्ष मदन श्रीवास्तव, चंद्र प्रकाश श्रीवास्तव, डॉ. अरुणा पाण्डे ने प्रजातंत्र और मताधिकार पर नये दृष्टिकोण के साथ व्यंग्य का पुट लिये शानदार प्रस्तुति देकर मंच को नयी ऊंचाई दी। कालीदास ताम्रकार काली, तरुणा खरे ने तरुन्नम में उत्कृष्ट गज़ल पढ़कर मंच लूटा। केशरी प्रसाद पाण्डेय, अरूण शुक्ल को भी खूब सराहा। संजय पाण्डेय, सत्यम खरे की गरिमामय उपस्थिति रही। संचालन गणेश श्रीवास्तव, आभार प्रदर्शन सलाहाकार कवि संगम त्रिपाठी ने किया।

लोकसभा के 6 मतदान केंद्रों में मतदाताओं ने किया 100 प्रतिशत मतदान करके रचा इतिहास

*कमिश्नर, एडीजीपी व कलेक्टर के नेतृत्व में हुआ मतदान*


शहड़ोल

शहडोल संभाग में 06 मतदान केन्‍द्रों में मतदाताओं ने उमंग व उत्‍साह पूर्वक शत-प्रतिशत मतदान करके ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह उल्‍लेखनीय है कि शहडोल संभाग में कमिश्नर शहडोल संभाग एवं एडीजीपी डीसी सागर के नेतृत्‍व में पुलिस एवं प्रशासन द्वारा व्‍यापक रूप से किए मतदाता जागरूकता रैली, फ्लैग मार्च एवं नुक्‍कड़ सभा में ''100 प्रतिशत मतदान, आंधी आये या तूफान'' के फलस्‍वरूप में संभाग के 06 मतदान केन्‍द्रों में जिला शहडोल में चंदनिया खुर्द में, जिला उमरिया के कुशमहा कला, कुमकनी, पिपरीटोला, गंजरहा और सेमरी में 100 प्रतिशत मतदान किया गया। जिला अनूपपुर अंतर्गत पुष्‍पराजगढ़ क्षेत्र के  02 मतदान केन्‍द्र डोगरिया टोला और चटुआ में मतदाताओं ने सड़क, पुल, पानी, बिजली आदि की समस्‍या को लेकर मतदान का सामूहिक बहिष्‍कार किया हुआ था, जहां कमिश्‍नर शहडोल और एडीजीपी शहडोल द्वारा पुलिस अधीक्षक जितेन्‍द्र सिंह पवांर, संयुक्‍त कमिश्‍नर मगन सिंह कनेश, जनपद सीईओ पुष्‍पराजगढ़, तहसीलदार पुष्‍पराजगढ़ एवं एडीजीपी आफिस कमाण्‍डो के साथ पहुँचे और जनता का समझाईश दी गई और मांगों के निराकरण का आश्‍वासन दिया गया। इसके बाद मतदाताओं ने अपने संवैधानिक मताधिकार का उपयोग करने के लिए राजी हुए और मतदान किए। 

कमिश्नर शहडोल संभाग एवं एडीजीपी डीसी सागर ने लोकसभा निर्वाचन हेतु आज शहडोल जिले के शासकीय प्राथमिक विद्यालय धुरवार, शासकीय प्राथमिक विद्यालय पुलिस लाइन शहडोल, पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय शहडोल, रघुराज उच्चतर माध्यमिक विद्यालय शहडोल, शासकीय प्राथमिक विद्यालय जमुई में बनाए गए मतदान केंद्रों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान कमिश्नर ने मतदान करने आए मतदाताओं से चर्चा की तथा प्रदाय किए जा रहे सुविधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। निरीक्षण के दौरान अधिकारियों को निर्देश दिए की मतदाताओं को किसी भी प्रकार की सुविधा न हो सभी सुविधाएं उपलब्ध रहे, दिव्यांग एवं वरिष्ठ मतदाताओं को लाने वाले जाने हेतु वाहन भी उपलब्ध हो। एडीजीपी डीसी सागर ने सुबह मतदान केन्‍द्र पुलिस लाईन शहडोल में पहुँचकर मतदान किया और मतदाताओं का उत्‍साहवर्धन किया। साथ ही मतदाताओं से अपील करते हुए कहा कि आज लोकतंत्र के इस महापर्व में सहभागिता निभाने हेतु अपने घरों से निकलें और मतदान केंद्र जाकर शत प्रतिशत मतदान करें। उन्होंने मतदान करने आए मतदाताओं के साथ सेल्फी लेकर उत्साहवर्धन भी किया। 

इसके अतिरिक्‍त जिला अनूपपुर में भी कमिश्नर शहडोल संभाग बीएम जामोद एवं एडीजीपी  डी सी सागर ने अनूपपुर लोक सभा निर्वाचन मतदान को दृष्टिगत रखते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय में बनाए गए निर्वाचन कंट्रोल रूम, वेब कास्टिंग रूम तथा कम्यूनिकेशन टीम के कार्यों का जायजा लिया। निरीक्षण के दौरान  कमिश्नर शहडोल संभाग बीएस जामोद ने मतदान केंद्रों  की निगरानी, चेक पोस्टों की निगरानी वेबकास्टिंग तथा विधानसभावार मतदान प्रतिशत के प्रगति के संबंध में अनूपपुर जिले के कोतमा अनूपपुर एवं पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के टीम से जानकारी प्राप्त की।  इय दौरान कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी आशीष वशिष्ठ, पुलिस अधीक्षक जितेंद्र सिंह पवाँर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत तन्मय वशिष्ठ शर्मा संयुक्त आयुक्त (विकास) मगन सिंह कनेश, संयुक्त कलेक्टर दिलीप कुमार पाण्डेय सहायक कलेक्टर महिपाल सिंह गुर्जर सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। कमिश्नर शहडोल संभाग बी एस जामोद, पुलिस उप महानिदेशक डीसी सागर ने अनूपपुर जिले के भ्रमण के दौरान खैरहा और करकटी के मध्य छिरहटी के पास सड़क दुर्घटना में घायल पड़े व्यक्ति अपने वाहन से उपचार हेतु उपचार हेतु उप स्वास्थ्य केंद्र बुढ़ार भिजवाया तथा स्वास्थ्य के संबंध में हाल चाल पूंछा। इस प्रकार मानवीय संवेदना से दुर्घटना में घायल व्‍यक्ति का उपचार में सहयोग किया गया। 

----

अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ ने मनाया स्थापना दिवस

*फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष, भारतीय संविधान व अंबेडकर आदि विषयों पर हुई परिचर्चा*


अनूपपुर

प्रलेस अनूपपुर ने 14 अप्रैल को एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें प्रलेस के स्थापना दिवस के साथ ही फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष तथा भारतीय संविधान और अंबेडकर आदि विषयों पर परिचर्चा हुई । यद्यपि अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना 9 अप्रैल 1936 को लखनऊ में हुई थी लेकिन 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती थी अतः यह कार्यक्रम 14 अप्रैल के लिए तय किया गया । प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना की योजना सन् 1935 में लंदन के एक रेस्टोरेंट में बनी जब वहाँ पर सज्जाद ज़हीर, मुल्कराज आनंद, प्रमोद रंजन सेन गुप्ता, मुहम्मद दीन तासीर ज्योतिर्मय घोष, हाजरा बेगम तथा उनके कुछ अंग्रेज मित्रों ने गहन मंथन किया और प्रगतिशील लेखक संघ का एक प्राथमिक खाका तैयार किया । सज्जाद ज़हीर जब लंदन से भारत वापस लौटे तो उन्होंने कई प्रदेशों का दौरा कर वहाँ के लेखकों से संपर्क किया और प्रेमचंद से मंत्रणा कर के लखनऊ में 9 और 10 अप्रैल 1936 को एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की गई जिसमें प्रेमचंद ने अध्यक्षता की इसमें सज्जाद ज़हीर,मुल्कराज आनंद , कन्हैया लाल मुंशी सहित कई प्रसिद्ध लेखकों ने हिस्सा लिया पर कुछ बड़े लेखक इससे दूर रहे । निराला और रामविलास शर्मा लखनऊ में उपस्थित थे फिर भी इस कार्यक्रम में नहीं आए , जैनेंद्र कुमार को ज़रूर प्रेमचंद उस बैठक में ले गए पर इसके बाद जैनेन्द्र हमेशा ही इस संघ से दूर रहे । प्रेमचंद के अध्यक्षीय भाषण से प्रभावित होकर तमाम लेखकों ने इसकी सदस्यता ली और इस तरह से इसका गठन हुआ। 

प्रलेस का यह कार्यक्रम मंदाकिनी होटल में सायं 4 बजे से प्रारंभ हुआ । इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र ने कहा कि “आज हम काफ़ी विषम परिस्थितियों में जी रहे हैं , राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र भक्ति का पैमाना बदल दिया गया है और उस बदले हुए पैमाने की फ़्रेम पर कस कर हम राष्ट्र प्रेम को आंक रहे हैं । यदि हम राष्ट्र से प्रेम करते हैं तो राष्ट्र तो एक सौ चालिस करोड़ लोगों से मिलकर बना है इतना ही नहीं इस देश का सारा भू-भाग ,खेत-खलिहान , नदी-पर्वत, कल-कारख़ाने सब कुछ तो राष्ट्र में समाहित हैं तो हमें इन सब प्रेम होना चाहिए तभी तो हम सच्चे अर्थों में राष्ट्र से प्रेम कर सकेंगे । क्या ऐसा हो रहा है ? जाति , धर्म, संप्रदाय, रहन-सहन , भाषा- प्रांत आदि रूपों में विभाजित होकर यदि एक दूसरे से घृणा करेंगे तो प्रेम कहॉं रह जाएगा, फिर कैसा राष्ट्र प्रेम और कैसी राष्ट्र भक्ति । हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गांधी , नेहरू, पटेल, बोस, भगत सिंह आदि को एक दूसरे का विरोधी बता कर हम दोनों तरह की विचारधाराओं को समाप्त करने पर नहीं तुले हुए हैं  ? सभी की विचारधाराओं में भले अंतर रहा हो पर सभी का उद्देश्य पवित्र और नेक था और एक था , तो इन सब को ख़ारिज करके हम कौन सी विचारधारा का प्रतिपादन कर रहे हैं और किस लोकतंत्र की चर्चा हो रही है जो संविधान सम्मत है भी या नहीं । जब हम व्यथित होते हैं, तनाव में होते हैं, चिड़चिड़ाहट हम पर हावी होती है और थकान महसूस होती है तब हम मॉं की गोद में सिर रख कर लेटते हैं और उसका वात्सल्य पूर्ण हाथ हमें सहला रहा होता है तो हम पुनः शांत ,ऊर्जान्वित ,तनाव मुक्त और प्रसन्न हो उठते हैं ठीक उसी तरह की मनोदशा में जब हम गांधी के पास जाते हैं तो हमें शुकून मिलता है तो फिर हम गांधी को ख़ारिज कैसे कर सकते हैं ।राष्ट्र को संविधान सम्मत होना होगा, तभी संविधान की इज़्ज़त और रक्षा होगी । फ़िलिस्तीन का संघर्ष बहुत पुराना है यह यकायक पैदा नहीं हुआ , उसकी जड़ों में जाकर समस्या का पता लगाकर मोहब्बत से उसका हल ढूँढना होगा तभी उसका समाधान हो सकेगा।  

जब तक शैलेंद्र बोलते रहे , लोग मंत्रमुग्ध हो कर सुनते रहे । ऐसा लग रहा था कि काश समय ठहर जाए शैलेंद्र बोलते रहें और सब सुनते रहें और यह क्रम अनंत काल तक चलता रहे ।जब कक्ष में शैलेंद्र की आवाज़ गूंज रही थी फिर भी एक सन्नाटा पसरा था और कोई आवाज़ नहीं और कोई प्रतिक्रिया नहीं । शैलेंद्र की आवाज़ और श्रोताओं के कानों के बीच एक अजीब तादात्म्य स्थापित हो चुका था।

इस कार्यक्रम को विशिष्ट अतिथि दिलावर सिंह, ज़िला विधिक अधिकारी, कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर परमानंद तिवारी प्रलेस अध्यक्ष शहडोल के साथ ही अनंत के दास , भूपेश शर्मा , एडवोकेट बासुदेव चटर्जी, एडवोकेट विजेंद्र सोनी ने भी संबोधित किया । मीना सिंह ने अपने गीत से सबका मन मोह लिया ।आभार प्रदर्शन पवन छिब्बर ने किया और इस कार्यक्रम का संचालन गिरीश पटेल ने किया । इस अवसर पर राजेंद्र कुमार बियाणी, डॉक्टर करुणा सोनी , राउत राय , डॉक्टर असीम मुखर्जी,हीरा लाल राठौर शिवकान्त त्रिपाठी, चंद्रशेखर सिंह, रामनारायण पाण्डेय, आनंद पाण्डेय, एडवोकेट संतोष सोनी, रावेंद्रकुमार सिंह भदौरिया,पत्रकार अजीत मिश्रा, राम बाबू चौबे, सुदीप सोनी , एम एम मंसूरी , सी आई डी विभाग के प्रतिनिधि, आयुष सोनी और उनके साथी व अन्य अतिथि उपस्थित थे ।




बहरारे वाली देवी मां, शिला से बाहर आ मेरी मां, दर्शन देने को मेरी मां



*बहरारे वाली माता*


बहरारे वाली देवी मां,शिला से बाहर आ मेरी मां।

दर्शन देने को मेरी मां,शिला से बाहर आ मेरी मां।


नौ रूपों में से माता इक तो दिखा दे,

इक तो दिखा दे,

अंखियों में अपनी प्यारी सूरत बसा दे,

सूरत बसा दे,

जीभर के देखा करूं मां,शिला से बाहर आ मेरी मां।


भवनों में आती मैया खुशबू तुम्हारी,

खुशबू तुम्हारी,

हवनों में बन जाती मूरत तुम्हारी,

मूरत तुम्हारी,

अब तो प्रकट हो जा मां,शिला से बाहर आ मेरी मां।


अपने आंचल में मैया मुझको छुपा ले,

मुझको छुपा ले,

अपनी गोदी में मैया मुझको बिठा ले,

मुझको बिठा ले,

सिर पै तू हाथ रखने मां,शिला से बाहर आ मेरी मां।


कैला मैया कहूं या मां दुर्गे काली,

मां दुर्गे काली,

ऊंचे पहाड़ों की तू रहने वाली,

तू रहने वाली,

मेरे भी घर में रहने मां,शिला से बाहर आ मेरी मां।


गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर

सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना, प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना



*प्रिये नव सम्वत्सर बन आना*       

 

सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।

              प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।

              

सरसों के फूल बन के यादें तेरी आतीं हैं।

मुझसे गेहूॅं की बालियों सी लिपट जातीं हैं। 


अपनी यादों के संग एक बार आ जाना,

प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।

        सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।

  

जब भी आते थे तो फागुन की तरह आते थे,

अपनी सतरंगी सी यादों को छोड़ जाते थे।


मिलन के पल सुनहरे अपने संग ले आना,

प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।

       सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।

           

याद जब आती तेरे हाथों की बसंती छुअन,

विरह की तपती दुपहरी में ये जलता है बदन ।


प्रीति की ठंडी-ठंडी छांव संग ले आना,

प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।

         सभी मौसम सभी ऋतओं को संग लेआना।

           

देख लो आ के मेरी भीगी हुई पलकें उठा,

प्यासे कजरारे नयन बन गये सावन की घटा।


झूमती गाती बहारों को संग ले आना,

प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।

        सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।  


*गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर*

जनता के शारीरिक स्वास्थ्य के प्रबंधन की दिशा में सोशल मीडिया की लत पर एक अध्ययन


शहड़ोल

एडीजीपी डी.सी.सागर द्वारा म.प्र शासन से अनुमति के बाद विश्व विख्यात बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से प्रबंधन विषय में पीएचडी की जा रही है। उनके शोध का  जनहितकारी शीर्षक है।

*"जनता के शारीरिक स्वास्थ्य के प्रबंधन की दिशा में सोशल मीडिया की लत पर एक अध्ययन।"* 

इस शोध में जनता से उनके सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म पर कितना समय व्यतीत किया जाता है और उससे होने वाली शारीरिक रूप से जो परेशानियाँ उनको घेर रही हैं उनको गणना में लिया जाएगा। फिर इसका विशेषज्ञ विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार कर सोशल मीडिया के जोखिम-रहित और सेफ तौर तर्कों पर आधारित प्रकाश डाला जाएगा। आज के विश्वव्यापी डिजिटल दौर में यह शोध प्रासंगिक मील का पत्थर साबित होगा व इस प्रकार व्यवसायिक पुलिसिंग में निपुण और पारंगत एडीजीपी डी.सी.सागर की सोशल मीडिया के नशे से बचने के प्रेरणास्‍पद शोध कार्य संपादित होने का इंतजार जनता को रहेगा। 

ज्ञात हो कि एडीजीपी डीसी सागर द्वारा यह शोध कार्य बरकत उल्लाह विश्वविद्यालय के प्रबंधन शाखा (CRIM) के संचालक प्रोफेसर विवेक शर्मा और IPER के प्रोफेसर डॉ. हरीश सुधीर कुलकर्णी के सुपरविजन में किया जा रहा है। एडीजीपी डी.सी.सागर 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं जो महामहिम  राष्ट्रपति के पुलिस के वीरता पदक से अलंकृत हुए हैं। विधान सभा-2023 के उत्कृष्ट और कुशल संपादन के लिए म.प्र. मुख्‍य निर्वाचन अधिकारी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है। यह उत्साहवर्धक पुरस्कार म.प्र. राज्यपाल से प्राप्त हुआ। 

गीतकार अनिल भारद्वाज को मिला काव्य कौस्तुभ सम्मान, लोगो ने दी शुभकामनाएं


ग्वालियर

 ग्वालियर साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था, नवांकुर साहित्यिक मंच सीतापुर के तत्वाधान में मध्य प्रदेश ग्वालियर के वरिष्ठ गीतकार व हिंदी सेवी साहित्यकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट को  काव्य कौस्तुभ सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया है। गीतकार अनिल भारद्वाज को यह सम्मान हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान और वरिष्ठ हिंदी सेवी साहित्यकार, एवं साहित्य सृजन के प्रति समर्पित जीवन, तथा उत्कृष्ट रचना धर्मिता के लिए प्रदत्त किया गया है। गीतकार अनिल भारद्वाज वरिष्ठ हिंदी सेवी, एवं श्रेष्ठ साहित्यकार होकर  हिंदी राष्ट्रभाषा पर आधारित , विश्व के प्रथम महाकाव्य, हिंदी के आंसू के रचयिता हैं। संगीत एवं कला के क्षेत्र में अनिल भारद्वाज चित्रकार, बांसुरी वादक हैं तथा आप ने वायलिन में संगीत प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की है तथा वर्तमान में उच्च न्यायालय ग्वालियर में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। साहित्य के क्षेत्र में गीतकार अनिल भारद्वाज द्वारा सन् 1970 से निरंतर साहित्य सृजन करते हुए कई साहित्यिक कृतियां,साहित्य जगत को प्रदत्त की गईं, जिनमें गीत संग्रह" बीत गया मधुमास" (पुरस्कृत कृति ),  राष्ट्रभाषा पर आधारित महाकाव्य, "हिंदी के आंसू ," तथा" हिंदी माता चालीसा "(भक्ति काव्य), आदि प्रकाशित कृतियां उल्लेखनीय हैं। तथा कई साझा संकलनों में गीत, गजल आदि का प्रकाशन।

अभी हाल ही में नेपाल सरकार से मान्यता प्राप्त सु-विख्यात संस्था, शब्द प्रतिभा बहु क्षेत्रीय सम्मान फाउंडेशन लुंबिनी, नेपाल' द्वारा,अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, पर चार देशों के रचनाकारों में से गीतकार अनिल भारद्वाज को मानद उपाधि से सम्मानित किया है। गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में, "गणतंत्र के प्रहरी सम्मान 2024", "सृजन के सारथी" तथा "देश प्रेमी सम्मान"एवं "वीर रस सम्मान 2024", एवं हिंदी दिवस के उपलक्ष में हिंदी सेवी सम्मान तथा विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष में गीतकार अनिल भारद्वाज को देश के चुनिंदा 551 हिंदी सेवियों में हिंदी सेवी सम्मान 2023 तथा काव्य कला सेवा संस्थान द्वारा, सृजन श्री सम्मान एवं हनुमान जन्मोत्सव पर श्रेष्ठ रचना सृजन सम्मान एवं अंतर्राष्ट्रीय कला एवं साहित्य सम्मान 2023 सम्मान, वीर रस सम्मान 2024, श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, गणतंत्र प्रहरी सम्मान, देश प्रेमी सम्मान, 2024 आदि से सम्मानित किया जा चुका है। 

इस अवसर पर आपकी आवाज के संपादक पंकज करन, उदित भास्कर के संपादक दिलीप पुरोहित,दबंग पब्लिक प्रवक्ता के संपादक आनंद शर्मा, जीरो माइल साप्ताहिक पोर्टल और खबरों में अपना शहर के संपादक आनंद पांडेय, श्रम साधना के संपादक महेश तायल फौजी, डी एल पी न्यूज़ टीवी के संपादक सतेन्द्र तिवारी, भारत की बात, न्यूज़ पोर्टल के संपादक विजय कुमार, बेजोड़ रत्न के संपादक कुलदीप अवस्थी, उत्कर्ष मेल के संपादक डा.मनमोहन शर्मा शरण सरेराह के संपादक संजय अग्रवाल, उच्च न्यायालय संघ ग्वालियर के अध्यक्ष पवन पाठक, अंतर्राष्ट्रीय अभिभाषक मंच के अध्यक्ष विजय सिंह चौहान एवं हिंदीमाता काव्य धारा मंच भारत के पदाधिकारीगण उमाशंकर द्विवेदी,संजय निगम,अभिभाषक गण, बलदेव पाठक, रामेश्वर उत्पल, मिलन भारद्वाज (बैंक मैनेजर), सहित ग्वालियर की साहित्यक एवं सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ ही कवि अशोक बिरथरिया, संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने गीतकार अनिल भारद्वाज को हार्दिक बधाई दी है।

शैक्षणिक गतिविधियों व रोजगार के नए अवसर हेतु संकल्प महाविद्यालय नोएडा ग्रुप के बीच हुआ एमओयू 


  

अनूपपुर

संकल्प महाविद्यालय और ग्रेटर नोएडा ग्रुप के बीच एक मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है जो संकल्प कॉलेज के विद्यार्थियों को दिल्ली के अनुभवी शिक्षकों के संरक्षण में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करेगा। संकल्प महाविद्यालय अनूपपुर जिले में स्थित है जिसके द्वारा शिक्षा क्षेत्र में निरंतर प्रयास किया जा रहा है । संकल्प महाविद्यालय नियमित रूप से रोजगार मेलो और विभिन्न सामाजिक गतिविधियों का आयोजन करता है ताकि छात्रों को केवल शैक्षणिक ज्ञान ही नहीं बल्कि सामाजिक जागरूकता भी प्राप्त हो और उनका सम्पूर्ण विकास हो सके।इस उद्देश्य को पूरा करते हुए संकल्प महाविद्यालय ने ग्रेटर नोएडा स्थित ग्रेटर नोएडा ग्रुप के साथ एमओयू स्थापित किया है जिससे यहां अध्यनरत छात्र-छात्राएं दिल्ली के अनुभवी शिक्षकों के प्रशिक्षण से लाभान्वित हो सके। संकल्प महाविद्यालय के संचालक  अंकित शुक्ला  ने बताया कि यह साझेदारी विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य की दिशा में एक माइलस्टोन के रूप में साबित होगी विद्यार्थियों को अनूपपुर से बाहर की गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिलेगा जिससे वह अपनी क्षमताओं को जान सके। इस साझेदारी के माध्यम से छात्रों को विद्यार्थी जीवन के साथ-साथ आने वाले भविष्य के लिए आवश्यक अनुभव प्राप्त होगा प्रशिक्षण के दौरान छात्रों को सभी संबंधित जानकारी प्रदान की जाएगी ताकि वह अपनी कमियों को दूर कर अपने करियर को सफल बनाने हेतु रोजगार के सुअवसर प्राप्त कर  सके एवम देश विदेश में अपनी प्रतिभाओं का उपयोग करते हुए अपनी प्रतिभाओं का निर्माण कर सके।साथ ही दिल्ली के प्रशिक्षकों द्वारा महाविद्यालय के शिक्षकों के लिए फैकल्टी डेवलपमेन्ट  प्रोग्राम भी कराया जाएगा। जिससे महाविद्यालय असीम प्रगति की ओर अग्रसर रहे। संकल्प महाविद्यालय अनूपपुर:विद्यार्थियों का भविष्य निर्माण: संकल्प कॉलेज के प्रयासों के साथ।


बृज छोड़ के मत जइयो, फागुन का ये मौसम है, मोहि और न तरसइयो, फागुन का ये मौसम है



 *फागुन का ये मौसम है*


बृज छोड़ के मत जइयो,

फागुन का ये मौसम है,

मोहि और न तरसइयो

फागुन का ये मौसम है।


मैं जानती हूं जमुना तीर काहे तू आए,

हम गोपियों के मन को कान्हा काहे चुराए,


जा लौट के घर जाइयो,

माखन चुराके खाइयो,

पर चीर ना चुरइयो,

फागुन का ये मौसम है।


इस प्यार भरे गीत के छंदों की कसम है,

तोहि नाचते मयूर के पंखों की कसम है।


घुंघटा मेरो उठाइयो,

पर नजर ना लगइयो,

फिर बांसुरी बजइयो,

फागुन का ये मौसम है।


नयनों की ज्योति तुझको बुलाने चली गई,।

मिलने की आस,अर्थी सजाने चली गई,


अब के बरस जो अइयो 

सारी उमर न जइयो,

कांधा मोहे लगाइयो,

फागुन का ये मौसम है।

 

ब्रज छोड़कर मत जइयो,फागुन का ये मौसम है।

-----------+------------------+--------

 'गीतकार'-अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट, ग्वालियर,

भारत की बात कविता लेखन प्रतियोगिता संपन्न, परीक्षा परिणाम घोषित


जबलपुर

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के संस्थापक कवि संगम त्रिपाठी के संयोजन में व डॉ. गुंडाल विजय कुमार संपादक भारत की बात डिजिटल समाचारपत्र के निर्देशन में लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु कविता लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गई। भारत की बात डिजिटल समाचारपत्र के द्बारा  प्रायोजित कविता लेखन प्रतियोगिता का परिणाम दिनांक 27 मार्च 2024 को घोषित किया गया जिसमें लक्ष्मण दास कोरबा, रचना उनियाल बैंगलोर, महेश नारायण शर्मा टोंक राजस्थान सर्वश्रेष्ठ रहे तीनों रचनाकारों को काव्य श्री विभूषण ई सम्मान व रु. 1001/- प्रत्येक रचनाकार को लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु प्रदान किया गया। 

काव्य श्री विभूषण ई सम्मान चेतना साबला मुंबई, डॉ राम चन्द्र स्वामी बीकानेर, अजय कुमार झा नेपाल, शुभा शुक्ला निशा रायपुर, डॉ प्रोफेसर अमलापुरे रायगड, प्रा मनीषा नाडगौडा बैंगलोर, आशीष अम्बर दरभंगा, सुमा मण्डल कांकेर, मेघा अग्रवाल नागपुर, अनिल भारद्वाज ग्वालियर, शीलू जौहरी भरुच, डॉ मिथिलेश कुमार त्रिपाठी पट्टी प्रतापगढ़, गया प्रसाद साहू करगी रोड कोटा बिलासपुर, रतन किर्तनिया कांकेर, अर्चना आनंद गाजीपुर, प्रदीप त्रिपाठी ग्वालियर, अरुणा अग्रवाल लोरमी, राजेश कुमार बंजारे बलौदा बाजार, संजय वर्मा दृष्टि धार, ओम प्रकाश लववंशी संगम कोटा, कविता राय जबलपुर, देशबंधु त्यागी गाजियाबाद, कृष्ण कुमार भट्ट बैंगलोर, सूर्य कांत चौहान भंडारा, डॉ जगदीश चन्द्र वर्मा गाजियाबाद, राम अवतार स्वामी टोंक, संतोष कुमार राजपूत लोरमी, डॉ पी. वी. शोभा मंगलूरू, राजकुमार अहिरवार विदिशा, कविता मिश्रा, मंजू गोरे जबलपुर को प्रदान किया गया।

रचनाओं का मूल्यांकन डॉ कन्हैया साहू अमित भाटापारा छत्तीसगढ़ ने किया। कवि संगम त्रिपाठी ने बताया कि सारे देश से रचनाकारों ने भाग लिया और उत्कृष्ट रचनाएं प्रेषित की।

गोकुल ने रंग लगाया सतरंगी डोली में बैठी होली आई रे ऋतु बसंत की ओढ़ चुनरिया होली आई रे


 *गोकुल ने रंग लगाया*


सतरंगी डोली में बैठी 

होली आई रे।


ऋतु बसंत की ओढ़ चुनरिया होली आई रे।


मधुऋतु की आंखों को जब,

मौसम ने किया गुलाबी,

बासंती बयार ने फागुन,

को कर दिया शराबी।


झूम-झूम कर फाग सुनाती होली आई रे।


हर आंगन में रंग बिछे हैं 

मन की चूनर गीली,

धरती गगन हुए सतरंगे,

प्रकृति हुई रंगीली।


लगा प्रीति का काजल देखो होली आई रे।


मधुबन,निधिवन,वृंदावन के 

संग पूरा बृज आया,

बरसाने के गालों पर 

गोकुल ने रंग लगाया।


कान्हा की बंसी को सुनने होली आई रे।


इंद्रधनुष ले पिचकारी 

रंगों के तीर चलाए,

चंदा बादल में छुपकर 

पूनम को रंग लगाए।


गीत, गजल रंगीले लिखने होली आई रे।


सतरंगी डोली में बैठी 

होली आई रे।


गीतकार-अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर , मध्य प्रदेश

रंगों का त्योहार होली में राशि के अनुसार मंत्रो का जाप, कौन सा रंग खेले व कब है मुहूर्त पर विशेष 


होली-2024                            

 रंगों का त्योहार होली, प्राचीन काल से ही हमारे देश में हर्षोल्लास से मनाई जाती रही है। होली मनाने के पीछे की हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की पौराणिक कथा तो सभी जानते हैं, लेकिन एक मान्यता और भी है।

कहा जाता है कि एक बार भगवान बाल कृष्ण नें माता यशोदा से पूछा कि राधा इतनी गोरी है,मैं भी  खूब गोरा होना चाहता हूं, क्या उपाय करूँ? तो माता यशोदा नें हंसते हुए कहा कि तुम दोनों अगर एक दूसरे पे टेसू के रंगों को लगाओ तो एक दूसरे के रंग के हो जाओगे। ये सुनते ही कृष्ण जी और राधा जी एक दूसरे को रंग लगाते -लगाते खेलने लगे। तबसे ही सम्पूर्ण ब्रज मंडल फिर पूरे उत्तर भारत में टेसू के रंग से होली खेली जाने लगी। धीरेधीरे पूरे विश्व में इसे मनाया जाने लगा।

होली प्रेम, उत्साह, हर्ष और उमंगों का त्योहार है। इस दिन सभी वैर भाव और नकारात्मकता दूर कर के प्रेम और भाईचारा बढाने का प्रयास किया जाता है।

प्रत्येक वर्ष फागुन माह की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, फिर दूसरे दिन रंगों से होली खेली जाती है, जिसे धुलेंडी भी कहते हैं।

इस वर्ष 2024 में होलिका दहन 24 मार्च को और धुलेंडी 25 मार्च को होगा।

#होलिका दहन मुहूर्त--

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 24 मार्च को सुबह 9 बजकर 54 मिनट पर होगी जो 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। 

इस बार 24 तारीख को पूरे दिन भद्रा रहेगी, जो रात्रि लगभग 11 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी।  अतः होलिका दहन का सर्वाधिक श्रेष्ठ मुहूर्त रात्रि 11:14 से रात्रि 12:29 मिनट तक रहेगा। कुछ विशेष परिस्थितियों में होलिका दहन भद्रापृच्छ काल मे भी कर सकते है। 

भद्रा पूंछ समय-  शाम 6बजकर 34 मिनट से रात 9 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।                                     

होलिका दहन के समय अपनी राशि अनुसार यदि मंत्रों का जाप किया जाय तो विशेष फलदाई होता है।

राशि अनुसार मंत्रों का जाप--

---------------------------------

1-मेष और वृश्चिक राशि- ॐ अं अंगरकाय नमः ।

2- वृष और तुला राशि-- ॐ शुं शुक्राय नमः ।

3- मिथुन और कन्या राशि- ॐ बुं बुधाय नमः।

4- कर्क राशि-- ॐ सोम सोमाय नमः।

5- सिंह राशि-- ॐ घृणि सूर्याय नमः।

6- धनु और मीन राशि- ॐ बृं बृहस्पतये नमः।

7-मकर और कुम्भ राशि- ॐ शँ शनैश्चराय नमः।

8- राहु की शांति के लिए- ॐ रां राहवे नमः।

9- केतु की शांति के लिए- ॐ कें केतवे नमः।

होलिका दहन की रात्रि उपर्युक्त सभी बीज मंत्रों का 108 बार जाप करना विशेष फलदायी होता है।

#राशि अनुसार होलिका में डालें आहुति--

-----------------------------------   -------     ------------

 होलिका दहन के समय लोग यदि अपनी राशि अनुसार होलिका को वस्तु अर्पण करें तो विशेष फलदाई होगा।


1-मेष राशि- 7 काली मिर्च के दाने होलिका में अर्पण करें।

2- वृष राशि- सफेद चंदन का टुकड़ा और दही अर्पण करें।

3- मिथुन राशि- 7 मुट्ठी चने की दाल होलिका में अर्पित करें।

4कर्क राशि- एक मुट्ठी सौंफ की आहुति प्रदान करें।

5- सिंह राशि- 7 मुट्ठी जौ की आहुति होलिका में प्रदान करें।

6- कन्या राशि- 3 जायफल और 3 कालीमिर्च के दाने होलिका में अर्पित करें।

7-तुला राशि- एक मुट्ठी काले तिल और 2 हल्दी की गांठ होलिका की अग्नि में अर्पित करें।

8- वृश्चिक राशि- अपने ऊपर से एक मुट्ठी पीली सरसों उसार कर होलिका में डालें।

9- धनु राशि- चावल और सफेद काले तिल का मिश्रण होलिका दहन में डालें। 

10- मकर राशि- 5 हल्दी की गांठें जलती हुई होलिका में डालें।

11- कुम्भ राशि- हरे मूंग और काले तिल का मिश्रण जलती हुई होलिका में अर्पित करें।

12- मीन राशि- एक मुट्ठी जीरा और एक मुट्ठी नमक की आहुति होलिका को अर्पित करें।

#राशि अनुसार रंगों से खेलें होली-

------------------------- 

धुलेंडी वाले दिन यदि व्यक्ति अपनी राशि अनुसार रंग खेलें तो सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

1-मेष और वृश्चिक राशि - लाल रंगों से खेले होली।

2-वृष और तुला राशि- हल्के गुलाबी, सफेद और आसमानी रंगों का प्रयोग करें।

3- मिथुन और कन्या राशि- हल्के और गाढ़े हरे एवं मैरून से होली खेलें।

4- कर्क राशि वाले सफेद, क्रीम, हल्के पीले और केसरिया रंगों का प्रयोग करें।

5- सिंह राशि वाले लाल,नारंगी और केसरिया रंगों का उपयोग करें।

6- धनु और मीन राशि के लोग पीले, नारंगी और क्रीम रंगों का प्रयोग करें।

7- मकर और कुम्भ राशि वालों को नीले, काले, भूरे और स्लेटी रंगों का उपयोग करें।

-------------------------------------------------------------------

ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

"ज्योतिष केसरी"

बंटाढ़ार के वचन ,पतन का जतन मोदी का परिवार फिर चुका विपक्षी हथियार- इंजी. अनुराग पाण्डेय


अनूपपुर

संसदीय चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. सभी प्रमुख दल अपने-अपने तरकश से तीर छोड़ रहे हैं. एनडीए और इंडी गठबंधन अपने-अपने मोर्चे साध रहे हैं. पटना में विपक्षी गठबंधन की पहली रैली ही विनाशकारी साबित हुई है. चुनाव अभियान के पहले ही विपक्ष ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमला करके एनडीए को ऐसा हथियार दे दिया है कि विपक्ष उससे स्वयं लहूलुहान दिखाई पड़ेगा।

पटना से पतन की शुरुआत लालू यादव ने की है. लालू यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर परिवार को लेकर निजी हमला किया. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि मोदी हिंदू नहीं हैं. मोदी ने अपने मां के निधन के अवसर पर सिर के बाल नहीं मुड़ाये, इसलिए वे हिंदू नहीं हैं. गुजरात में मृत्यु के अवसर पर सिर मुड़ाने का संस्कार नहीं है. विपक्ष जहां अपने पैरों पर मारने के लिए कुल्हाड़ी हाथ में लेकर चल रहा है वहीं मोदी और एनडीए विपक्ष के हथियार से ही अपनी सुनिश्चित दिख रही जीत को नई धार देने में जुटा हुआ है।

‘मोदी का परिवार’ नारा देश का नारा बनता जा रहा है. बीजेपी के तो सभी बड़े छोटे नेता और कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर ‘मोदी का परिवार’ अभियान शुरू कर चुके हैं. सभाओं में प्रधानमंत्री स्वयं उनकी निजी आलोचना को जन भावनाओं से जोड़कर देश को ही अपना परिवार बता रहे हैं. ऐसा लगता है कि मोदी ने यह आकलन बहुत पहले कर लिया था कि परिवारवादी राजनीति पर उनके हमले से विचलित होकर विपक्ष निश्चित रूप से उनके परिवार पर निजी हमला जरूर करेगा. इसीलिए लाल किले से अपने भाषण में ही प्रधानमंत्री ने भाईयों  और बहनों के संबोधन को बदलकर ‘मेरे परिवार जनों’ कर दिया था।

‘मोदी का परिवार’ केम्पेन देश का अभियान इसीलिए बनने में सफल हुआ है क्योंकि इसकी भूमिका बहुत पहले से बीजेपी ने तैयार कर ली थी. जब-जब विपक्ष ने मोदी पर निजी हमला किया तब-तब विपक्ष को जनता ने करारा जवाब दिया है. गुजरात के चुनाव में सोनिया गांधी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था. उसके बाद तो ऐसा माहौल बना था कि कांग्रेस चुनाव में चारों खाने चित हो गई थी. राहुल गांधी द्वारा ‘चौकीदार चोर है’ के नारे पर भी बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ‘मैं भी चौकीदार’ केम्पेन चलाकर राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय में माफी मांगने के लिए मजबूर किया था।

विपक्षी नेताओं का प्रधानमंत्री से विरोध होना स्वाभाविक है लेकिन निजी स्तर पर उनके खिलाफ अप्रिय और अभद्र टिप्पणी भारतीय जनमानस ने न स्वीकार की है ना आगे स्वीकार करेगा. लोकसभा के चुनाव में पूरे देश में मोदी मैजिक पहले से ही चल रहा है. चुनावी मुद्दा केवल नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाना है. विपक्ष को थोड़ा बहुत जो समर्थन मिलने की उम्मीद थी उसे भी वह अपने हाथों से बर्बाद कर रहा है।

विधानसभा चुनाव के पहले तमिलनाडु में विपक्षी गठबंधन के सहयोगी DMK द्वारा जिस तरह से सनातन के विरुद्ध जहर उगला गया था, उसका परिणाम राज्यों के चुनाव में विपक्षी दलों ने  भोगा था. DMK सासंद ए राजा ने फिर भारत को एक देश के रूप मानने से इनकार करते हुए रामायण और प्रभु राम को लेकर अप्रिय टिप्पणी की है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि विपक्ष अपने राजनीतिक लाभ के लिए काम कर रहा है या मोदी को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के लिए काम कर रहा है? नीतीश कुमार के कंधे पर सवार विपक्षी गठबंधन का उत्साह तो पहले ही ठंडा हो गया है जब सूत्रधार ने ही पाला बदल लिया था।

देश में एक अजीब स्थिति है कि बीजेपी के अलावा ऐसा कोई भी राजनीतिक दल नहीं है जो परिवारवादी राजनीति से ग्रसित ना हो. परिवारवादी राजनीति को लेकर अलग-अलग तर्क और विचार हो सकते हैं लेकिन कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की राजनीति पूरी तौर से परिवार की राजनीति है. बिहार में जनता दल में लालू परिवार, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव परिवार,बंगाल में ममता बनर्जी का परिवार, झारखंड में शिबू सोरेन का परिवार, तमिलनाडु में करुणानिधि का परिवार, तेलंगाना में चंद्रशेखर का परिवार. कमोबेश क्षेत्रीय दलों में सभी राज्यों में ऐसे ही परिवार वाली राजनीति का बोलबाला है।

यह भी एक संयोग है कि सभी राजनीतिक दल नियंत्रित करने वाले परिवारों पर या तो भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं या जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं. इन परिवारों के नेता या तो जेल में हैं या बेल पर हैं. राजनीति में भ्रष्टाचार विपक्षी राजनीति की गठबंधन का आधार बना हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर तमाम विरोध-अंतरविरोध हो सकते हैं लेकिन उन पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं हैं. इसके साथ ही हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और गरीब कल्याण की योजनाओं से पूरा देश जुड़ा हुआ है. मोदी के कारण ही जातियों की राजनीति सफल नहीं हो पा रही है. विकास की राजनीति, जातियों की राजनीति पर हावी होती हुई आगे बढ़ रही है. हिंदुत्व की राजनीति विपक्षियों के गले की हड्डी बनी हुई है।

अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के समय विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने समारोह में जाने से इनकार करके भारतीय जन भावनाओं को पहले ही आहत किया है. राम मंदिर का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद हो रहा था. यह किसी राजनीतिक दल का विषय नहीं था. इसमें सभी राजनीतिक दलों को भागीदारी करना था लेकिन विपक्षी गठबंधन वह अवसर भी चूक गया है. नरेंद्र मोदी के मैजिक में राम मंदिर का मैजिक भी जुड़ गया है. यह दोनों मैजिक लोकसभा चुनाव में बड़ा चमत्कार कर सकते हैं।

नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने में विपक्षी गठबंधन को संशय भले हो लेकिन भारत को कोई संशय नहीं है. चुनाव परिणाम के पहले ही भारत का जनादेश दीवार पर लिखी हुई इबारत जैसा साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है. विपक्षी गठबंधन में ना जीतने का नैतिक बल दिखाई पड़ रहा है और ना ही मुद्दों की समझ दिखाई पड़ रही है. मोदी पर निजी हमले विपक्षी गठबंधन को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

जैसे राम और कृष्ण के विरुद्ध भारत एक भी शब्द नहीं सुनना चाहता वैसे ही मोदी के विरुद्ध विपक्ष के निजी हमले भी देश नहीं सुनना चाहता. विपक्ष मुद्दों पर बात कर सकता है लेकिन शायद विपक्ष मुद्दों से भटक गया है. मानव स्वयं अपना मित्र भी हो सकता है और शत्रु भी हो सकता है. लक्ष्य से लटका हुआ मनुष्य स्वयं अपना नाश करता है. पतन के लिए बस वह स्वयं जिम्मेदार होता है. भारत के विपक्षी मानव शायद अपनी पतन की स्क्रिप्ट लिखने में ही लगे हुए हैं।

भारत में राजनीति की दिशा बदल चुकी है. विपक्षी गठबंधन के नेताओं को यह बात शायद समझ नहीं आ रही है. राजनीति केवल विषय भोगों के लिए ही अब नहीं रही है. गठबंधन में शामिल अनेक दल और नेता वर्षों तक सत्ता सुख का भोग कर चुके हैं. भारत के अमृतकाल में राजनीति से सेवा के महान दायित्व पूरा करने में विष घोलकर विपक्षी गठबंधन अपने लिए अब सुख की कल्पना नहीं कर सकता।

भारतीय लोकतंत्र बहुत आगे बढ़ चुका है. हर नेता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर पब्लिक की बारीक नजर है. अवेयरनेस नए दौर में पहुंच चुकी है. मोदी को मोदी, देश ने और जनता ने बनाया है. यह बात जितनी जल्दी विपक्षी गठबंधन समझ ले और साफ सुथरी राजनीति में जनसेवा के वायदे के साथ जनता का विश्वास हासिल करने का ईमानदार प्रयास करे तो ही उनका राजनीतिक भविष्य बच सकता है. भारत ने तो अपना भविष्य तय कर लिया है।

प्रहरी ही कुतरते लोकतंत्र की सफेद चादर, हकीकत छलावा सियासी दिखावा- अनुराग पाण्डेय, कार्यवाहक संपादक दबंग पब्लिक प्रवक्ता मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़


                                                                           

संसदीय शिष्टाचार और आचरण लोकतंत्र की मर्यादा और सदाचार की बुनियाद है. सियासत के अतिवाद के कारण यह बुनियाद हिलती जा रही है. विधायकों का प्रबोधन एक औपचारिकता बन चुका है।

नई विधानसभा के गठन के साथ निर्वाचित सदस्यों के प्रबोधन की रस्म अदायगी सामान्य बात है. प्रबोधन के प्रभाव का आकलन सदस्यों के निलंबन और विधायी सदनों का सुचारू संचालन नहीं होने में देखा जा सकता है. मध्यप्रदेश की 16वीं विधानसभा के सदस्यों का प्रबोधन संसदीय प्रभुता के सबसे बड़े पद लोकसभा स्पीकर सहित अनेक विद्वानों द्वारा दिया है. स्पीकर स्वयं पहली बार के सांसद हैं. अनुभव तो सिखावन से नहीं आ सकता. अनुभव स्वयं जानने और अनुभूति करने से ही संभव है।

संसद और विधानसभाओं में जिस तरह के दृश्य और राजनीतिक चरित्र दृष्टिगोचर होते हैं, उससे तो यही लगता है कि विधायी सदनों को भी दलीय प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना दिया गया है. सदनों का कोई भी सत्र निर्धारित कार्यकाल तक नहीं चलता. विधायी कार्य बिना विचार विमर्श और संवाद के पूरे कर लिये जाते हैं. कानून निर्माण में जन-आकांक्षाओं और अपेक्षाओं की मंशा पूरी नहीं होती है. संसदीय लोकतंत्र जनादेश की सबसे बेहतर शासन प्रणाली है. इसलिए इसमें उभर रही कमियों को परिपक्व होते लोकतंत्र की निशानी के रूप में ही स्वीकार किया जाना चाहिए. लोकतंत्र के मंदिर विधायी सदन जनादेश के मंदिर है लेकिन ऐसा दिखाई पड़ता है कि दलीय आस्था के आधार पर इस मंदिर को भी मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे में बांट दिया गया है।

हर प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रति आस्था व्यक्त करने से ज्यादा अपनी दलीय आस्था को वरीयता देता है. सदन की गरिमा और मर्यादा की बातें तो बहुत होती हैं लेकिन पक्ष और विपक्ष दोनों की सरकारों वाले विधायी सदनों में कमोबेश एक जैसा ही वातावरण रहता है. इसलिए सदन की मर्यादा और गरिमा पर पड़ रहे प्रभाव के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. राजनीतिक विरोध की पराकाष्ठा सदनों में लोकतंत्र के मूल विचार पर ही आघात करती हुई दिखाई पड़ती हैं।

सदनों का संचालन पक्ष और विपक्ष की सामूहिक जिम्मेदारी है. संसदीय विरोध के प्रतीकों का दुरुपयोग आम हो गया है. काम रोको प्रस्ताव और बहिर्गमन, मुद्दों से ज्यादा मीडिया अटेंशन के लिए होने लगा है. सदनों की कार्रवाइयों के लाइव प्रसारण के कारण सजगता जरूर बढ़ रही है लेकिन अभी भी हालत वैसे ही बने हुए हैं. गर्भगृह में जाकर विरोध प्रदर्शन जहां संसदीय प्रक्रिया में सदन की मर्यादा के विरुद्ध है,  वहीं सदस्य इसे अपना मौलिक अधिकार मानते हुए आचरण करते हैं. इसी टकराहट में सदस्यों का निलंबन होता है. हाल ही में संसद में बड़ी संख्या में विपक्ष के सांसदों का निलंबन ऐसी ही सदन की मर्यादा पालन नहीं करने के लिए किया गया है लेकिन संसदीय लोकतंत्र में ऐसे व्यवहार को अच्छा नहीं कहा जा सकता।

संसद और विधानसभाओं की बैठकों की संख्या हर साल घटती जा रही हैं. पहले जहां साल में दो महीने से अधिक सत्र हुआ करते थे उनकी संख्या अब महीनों से भी कम में सिमटती जा रही है. जितने समय के लिए सत्र होते भी हैं उनमें संवाद और विचार विमर्श तो कम ही होता है, हो हल्ला और नारेबाज़ी के बीच विधायी कार्य बिना चर्चा के पूरे कर लिए जाते हैं।

प्रबोधन की भावना अच्छी है लेकिन इसके परिणाम तो अच्छे नहीं दिखाई पड़ते हैं. फिल्मों में तो स्क्रिप्ट के आधार पर अभिनय किया जाता है उसके बाद भी फिल्मों का आम जनजीवन पर असर पड़ता है लेकिन विधायी सदनों में तो जो दृश्य दिखाई पड़ते हैं, वह जनता के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के आचरण को प्रदर्शित करते हैं फिर हमारे प्रतिनिधि यह क्यों नहीं महसूस करते कि इसका प्रभाव जनमानस पर पड़ रहा होगा? 

अच्छे नागरिक और राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना के लिए सद्गुणों की जितनी बातें की जाती हैं उनको आम लोग अपने जनप्रतिनिधियों में ढूंढने की कोशिश करते हैं लेकिन हमेशा उन्हें निराशा ही हाथ लगती है. कई बार तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि मार्गदर्शक की भूमिका वाला व्यक्ति ही ऐसा आचरण पेश करता है जो शर्मसार कर देता है. अभी हाल ही में एक सांसद को उद्योग जगत से निजी लाभ लेकर दूसरे उद्योगपति के खिलाफ सवाल पूछने का दोषी पाकर  संसद सदस्यता समाप्त की गई है।

विधानसभा और संसद के सदस्यों को लाभ के पद से दूर रहने के लिए संविधान निर्माताओं ने संविधान में व्यवस्था की है. सत्ताधारी दल में कार्यपालिका में शामिल जनप्रतिनिधियों के अलावा सदन के सदस्यों को लाभ का पद हासिल करने के लिए प्रतिबंधित किया गया है. जो संविधान निर्वाचित सदस्यों को इतना पवित्र और उच्च मानता है कि जिसे लाभ का पद लेने से प्रतिबंधित करता है वही अगर अपने आचरण में लाभ के लिए काम करते हुए दिखाई पड़े तो लोकतंत्र के माता पिता आम लोग कैसा महसूस करते होंगे? ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ भारत के लोकतंत्र की रक्षा माता-पिता जैसे आम लोग ही करते हैं. उन्हीं के जनादेश से लोकतंत्र के नायक बने जनप्रतिनिधि अगर ऐसा दुराचरण करते दिखाई पड़ते हैं तो इसे लोकतंत्र के साथ मातृघात और पितृघात जैसा दुर्व्यवहार ही कहा जायेगा।

प्रबोधन कार्यक्रम में नई विधानसभा के सदस्यों के लिए नई आवासीय योजना की भी मांग उठाई गई है जिनके लिए लाभ का पद प्रतिबंधित है उनके लाभ के लिए इस तरीके की योजनाएं भी संविधान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं. पहले भी ऐसी आवासीय योजनाएं मध्यप्रदेश में बनाई गई  हैं. राजधानी भोपाल की प्राइम लोकेशन जवाहर चौक पर सबसे पहले विधायकों को सस्ती दरों पर प्लाट/आवास दिए गए थे. आज वहां पर कोई भी पूर्व विधायक शायद ही निवास करता हो. सारे आवास कमर्शियल हो चुके हैं. कई करोड़ में इन भवनों को या तो बेचकर या किराए पर देकर हमारे जनप्रतिनिधि या उनके परिवार करोड़ों रुपए कमा रहे हैं. लाभ के पद की परिभाषा केवल तकनीकी आधार पर तय करना चोर दरवाजा निकालने जैसा ही है।

 प्रबोधन कार्यक्रम में यह आवाज भी सुनाई पड़ी है कि अधिकारियों में विधानसभा का डर नहीं बचा है. किसी को डराने का भाव ही लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है. डर वहीं पैदा किया जाता है जहां लाभ प्राप्त करने की मंशा होती है. विधायी सदन सरकार की जबाबदेही की जांच और कानून बनाने के प्रतिनिधि केंद्र होते हैं. जनाकांक्षाओं और अपेक्षाओं के संरक्षण के इन केन्द्रों को राजनीति के अखाड़े बनने से बचाने की जरूरत है. सरकारी पक्ष की भूमिका तो कार्यपालिका के जरिए जनता के बीच स्थापित होती रहती है लेकिन विधायी सदनों में विपक्ष की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है. संसदीय प्रणाली में भागीदार लोगों का मन मस्तिष्क इतना अधिक सत्ता केंद्रित हो गया है कि विपक्ष की भूमिका खंडित अव्यवस्थित और बेतरतीबी का शिकार बनी हुई है. कोई विजन और रणनीति दिखाई नहीं पड़ती है. कमजोर विपक्ष और गैर उत्तरदायी सरकार तबाही ही लाती हैं।

गैर उत्तरदायी सरकार एक कायर एवं संकोची विपक्ष के साथ मिलकर कयामत ही  बरपाती है. जहां मजबूत सरकार होती है वहां मजबूत नेता का कट्टर विरोध विपक्ष के लाइव दिखने का माध्यम बन जाता है. गठबंधन की राजनीति भी सशक्त नेता से मुकाबले की ही कमजोर रणनीति होती है. पक्ष और विपक्ष के मतदाताओं के अलावा बड़ी संख्या में तटस्थ और निरपेक्ष लोग होते हैं जिन्हें जोड़ने की रणनीति संसदीय प्रणाली के साथ ही दलीय व्यवस्था को भी मजबूती देती है।

आज सबसे बड़ी समस्या प्रतिष्ठित लोगों का नोइंग एटीट्यूड बना हुआ है. ‘हम सब जानते हैं’ इस भाव से पैदा होने वाला अहंकार जनप्रतिनिधियों में देखा जा सकता है. नॉन नोइंग एटीट्यूड विनम्रता और शालीनता लाता है. उधार की सीख से न शिष्टाचार पैदा होगा और ना ही आचरण में बदलाव आयेगा. अनुभव से ही व्यक्तित्व निखरेगा।

नियत अगर लोकतांत्रिक होगी, आचरण संसदीय होगा, निर्लोभी जीवन होगा, तो बिना किसी प्रबोधन के भी संसदीय शिष्टाचार और आचरण की गरिमा प्रज्वलित दिखेगी. वेतनभत्ते और पेंशन में वृद्धि के लिए तो 24 घंटे टकराने वाले नेता भी आम सहमति बना लेते हैं तो फिर सदन की मर्यादा खंडित करने और असंसदीय आचरण कहीं दिखावे का प्रहसन मात्र तो नहीं होता?  जनादेश की बारीक नजर होती है फिर भी कुछ लोग समाज की कुछ कमजोरियों के सहारे जीत तो जाते हैं लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. लोकतंत्र की चादर तो सफ़ेद ही रहेगी लेकिन इसे कुतरने वाले दांत जरूर अपना अस्तित्व खो देंगे।


सोन-तिपान के संगम पर अनूपपुर का साहित्यिक सफ़र, साहित्यकार पर एक नजर

*अनूपपुर*



*गिरीश पटेल*


बहु आयामी प्रतिभा के धनी गिरीशचंद पटेल किसी परिचय के मोहताज नहीं है वे कुशलवक्ता, आयोजक, कहानीकार, कवि के साथ योगाचार्य भी है। सर्व प्रथम तुलसी महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में अपनी निःशुल्क सेवाएँ प्रदान की। नगर के साहित्यिक, सांस्कृतिक मंच अभास के अध्यक्ष के रूप में कई वर्षों तक सक्रिय रहे। योग विद्या में गहरी सोच होने के नाते कई बार योग शिविर का आयोजन किया तथा अभी भी योग करते है और योग की शिक्षा देते है। कई वर्षों से प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर के अध्यक्ष है तथा आपके नेतृत्व में संघ का प्रांतीय सम्मेलन अनूपपुर नगर में सफलता पूर्वक सम्पन्न हो चुका है। आप लगातार कविताएँ एवं या कहानिया लिखने एवं साहित्यिक प्रतिभाओ को आगे बढ़ाने का का कार्य कर रहे है-आनंद पाण्डेय सह संपादक दैनिक उज्ज्वल समाचार भोपाल।

कवि एवं कहानीकार गिरीश पटेल की कलम से अनूपपुर के साहित्यिक सफर एवं साहित्यकारों पर एक नजर- 👇👇👇

अनूपपुर भले ही जगह छोटी रही हो (जिला बनने के पहले) पर यहाँ साहित्यकारों की कमी नहीं रही। साहित्यकार यानि वह प्रतिभाशाली व्यक्ति जो साहित्य सृजन करता हो तात्पर्य यह कि वह लेखक, कहानीकार, कवि, गीतकार, समालोचक, शायर या नाटककार कुछ भी हो या एकाधिक गुणों से भरपूर हो। पत्रकार भी लेखन में व्यस्त रहते हैं पर उनका लेखन एक विषय विशेष पर केन्द्रित रहता है यानि समाचार बनाना और रिपोर्टिंग करना अस्तु उन्हें साहित्यकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। एक पत्रकार साहित्यकार हो सकता है पर एक साहित्यकार का पत्रकार होना ज़रूरी नहीं है।

जब सेलफोन और टेलीफोन नहीं थे तब लगभग हर व्यक्ति पत्र लिखता था और लेखन ही लेखक का कर्म है तो क्या पत्र लिखने वाला हर व्यक्ति लेखक और साहित्यकार हुआ? इसके लिए हमें अंग्रेज़ी के शब्द ऑथर और राइटर के भेद को समझना होगा ऑथर साहित्यकार हैं पर राइटर साहित्यकार नहीं है, दूसरे शब्दों में ऑथर एक राइटर है पर राइटर का ऑथर होना आवश्यक नहीं है। हिंदी में साहित्यकार और लेखक दोनों को ही समानार्थी समझ कर इसका उपयोग किया जाता है इसीलिए भ्रांति उत्पन्न होती है। इसे समझ लेने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि पत्र लिखने वाला हर व्यक्ति साहित्यकार नहीं है। एक बड़े साहित्यकार ने लिखा है कि हर व्यक्ति कम से कम एक कहानी तो लिख ही सकता है और वह कहानी उसके जीवन और अनुभवों से उपजेगी। तो ऐसी एक कहानी लिखने वाले व्यक्ति को क्या साहित्यकार कहा जा सकता है? कदापि नहीं। तो अब साहित्यकार का अर्थ लगभग स्पष्ट हो गया।

अब हम अनूपपुर के साहित्यकारों की बात करें तो मेरी नज़र और फेहरिस्त में जो साहित्यकार सम्मिलित हैं उनकी संख्या 39 है, हो सकता है इनके सिवा और भी साहित्यकार हों जिनके नाम मैं भूल रहा होऊँ या जिनके बारे में मुझे ज्ञात नहीं। तो मुझे उन्हीं साहित्यकारों का ज़िक्र करना है जो मेरी फेहरिस्त में हैं।

*उदय प्रकाश*👇


उदय प्रकाश का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। हमारा यह कहना कि उदय प्रकाश अनूपपुर के हैं के बजाय यदि हम यह कहें कि अनूपपुर उदय प्रकाश का है तो यह समीचीन होगा। उदय प्रकाश उस साहित्यकार का नाम है जिनकी ख्याति भारत में ही नहीं अपितु देश-देशांतर में व्याप्त है। देश-विदेश के कई शोधकर्ताओं ने उनके ऊपर शोध-प्रबंध लिखे हैं और यही इस बात का संकेत है कि वे इस क्षेत्र में किस ऊँचाई पर बैठे हुए हैं।

उदय प्रकाश का बचपन सीतापुर में बीता इनका जन्म 1 जनवरी 1952 को हुआ। इनके पिताजी, जो कि कुंवर साहब के नाम से विख्यात थे, पढने के बहुत शौक़ीन थे। इनकी माता जी बहुत अच्छा गाती थीं और और बहुत सुन्दर अक्षरों में लिखती थीं। इनकी बुआ स्वयं कविता लिखती थीं। इस प्रकार इन्हें साहित्य का अच्छा वातावरण मिला, नैसर्गिक प्रतिभा तो इन्हें प्राप्त हुई ही होगी जिसके चलते ये 6-7 वर्ष की आयु में ही कविता लिखने लग गए। इनकी कविताएँ कई पत्रिकाओं में छपने लग गई । 8 वीं तक अनूपपुर में पढ़ने के पश्चात् ये आगे की पढ़ाई करने शहडोल चले गये । जब ये 12 वीं में आए तब इन्होंने शहडोल से एक पत्रिका निकाली अर्थान्तर'। शहडोल महाविद्यालय में बहुत थोड़े समय अध्ययन करने के पश्चात् ये सागर विश्व विद्यालय चले गये। वहाँ से पढ़ाई पूरी कर जे० एन० यू० में। १९७७ में वे जे० एन० यू०में असिसटेन्ट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्य करने लगे । इन्होंने कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं में अपनी सेवाएँ अर्पित कीं, जिसमें प्रमुख रूप से- डिपार्टमेंट ऑफ मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक विभाग, टाइम्स रिसर्च फाउंडेशन में अंग्रेज़ी व हिंदी के प्राध्यापक, टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय विभाग, संडे मेल, बंगलुरू से निकलने वाली पत्रिका 'एमिनेन्स' के संपादक आदि । इसके अलावा 1984 से मीडिया फ़ोटोग्राफ़ी, पेंटिंग, कला समीक्षा, फ़िल्म समीक्षा आदि का कार्य किया। उन्होंने अपनी अंतिम शैक्षणिक सेवा अमरकंटक विश्वविद्यालय में 2012 में अर्पित की।

वे अपने आप को मूलतः कवि ही कहते हैं पर उनकी कहानियों ने भी साहित्य- जगत में धूम मचा दी। उनकी कहानियों पर फिल्में बनी और बन रही हैं। उनके साहित्य का अनुवाद कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में हो चुका है और अच्छी ख्याति प्राप्त हुई है। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे बहुत अच्छे चित्रकार भी हैं तथा कई प्रसिद्ध पुस्तकों के कवर का चित्रांकन भी इन्होंने किया है। चूँकि यह लेख मात्र उदय प्रकाश पर नहीं है इसलिए इसे यहीं विराम देता हूँ।

*गोविंद श्रीवास्तव*👇


गोविंद श्रीवास्तव अनूपपुर हायर सेकेंडरी स्कूल में व्याख्याता के रूप में कार्यरत थे। उदय प्रकाश से लेकर हमारे सहपाठियों और हमसे कनिष्ठ विद्यार्थियों तक को इन्होंने पढाया है पर संयोग से हमारी कक्षा को पढ़ाने का मौक़ा इन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। ये हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ ही इतिहास के भी मर्मज्ञ थे और विद्वानों में इनकी गिनती होती थी। साहित्य में इनकी शुरू से ही अभिरुचि थी। ये पान के बहुत शौकीन थे और विद्यालय में अध्यापन के दौरान भी ये पान खाते रहते थे। कक्षा में पढ़ाते समय ये जब किसी से पुस्तक माँगते थे तो कोई भी विद्यार्थी इन्हें पुस्तक देने को तैयार नहीं होता था क्योंकि पान खाते हुए पुस्तक सामने रखकर पढ़ाने से पुस्तक के पन्नों पर मॉडर्न आर्ट बन जाता था दूसरे शब्दों में पान से पेंटिंग हो जाती थी। सन् 1964-65 में इनकी एक कहानी खोके घोंघे 'सरिता में प्रकाशित हुई थी। इसी दरम्यान इनकी एक कविता जिसकी एक पंक्ति थी - ऐसा लगता है कि सारा गाँव बिड़ी पी रहा है। आई। शुरुआत इन्होंने तुकांत कविताओं और पयों से की फिर नई कविता लिखने लगे पर बाद में ये दोहों पर केन्द्रीकृत हुए और बहुत ही अर्थपूर्ण शानदार दोहे लिखे । ये अच्छे समीक्षक भी थे।

प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के प्रथम अध्यक्ष भी थे और निरंतर कई वर्षों तक इन्होंने इस संघ को अपनी सेवाएँ अर्पित कर जीवन प्रदान किया। प्रगतिशील लेखक संघ ने इनका सम्मान करने की योजना बनाई थी पर कॉरोना काल की वजह से यह कार्यक्रम लंबित हुआ और इसके पहले कि यह काल बीतता, वे हमेशा के लिये हमें छोड़कर चले गए और हमारे मन में यह टीस रह ही गई।

*डॉक्टर रामलखन गुप्ता*👇


डॉक्टर रामलखन गुप्ता अनूपपुर तुलसी महाविद्यालय में प्राचार्य के पद में 1976 में पदस्थ हुए। प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर की पहली बैठक इन्हीं के निवास पर सम्पन्न हुई तभी से प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर की स्थापना हुई। प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना का श्रेय गुप्ता जी को ही जाता है। महाविद्यालय के प्राचार्य होने के साथ ही वे कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे तथा साहित्य सृजन करते रहे। कविताओं में इनकी गहरी अभिरुचि थी। साहित्य उत्थान के लिये इनका प्रयास सराहनीय था, इसके लिए वे तरह-तरह के प्रयास करते रहते थे और कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन करते रहते थे। इनके प्रयासों से अनूपपुर में अच्छा साहित्यिक वातावरण निर्मित हुआ था। अनूपपुर महाविद्यालय से निवृति के पश्चात् वे जबलपुर में बस गए थे पर भौतिक रूप से वे अब इस दुनिया में विद्यमान नहीं है।

*डॉक्टर यज्ञ प्रसाद तिवारी*👇


डॉक्टर रामलखन गुप्त के अनूपपुर आने के पहले से ही जहाँ तक मुझे याद है सन् 1973 में तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर के हिन्दी विभाग में आपकी नियुक्ति हुई थी। उस समय तुलसी महाविद्यालय के संस्थापक सदस्यों के साथ ही सभी शिक्षकों को भी महाविद्यालय के संचालन में अपना योगदान देना होता था क्योंकि यह इस महाविदयालय के संघर्ष का काल था, इस समय अत्यल्प वेतन में सारे शिक्षक अपनी सेवाएँ अर्पित कर रहे थे ज़ाहिर है कि डॉक्टर तिवारी भी उन्हीं में से एक थे। शुरू में कुछ समय के लिए वे हमारे घर पर भी रहे जिसकी वजह से हमें उनका सानिध्य प्राप्त हुआ । डॉक्टर तिवारी बहुत ही विद्वान व्यक्ति हैं। मुझे लगता है कि पहले-पहल उनकी एक पुस्तक 'तुलसी मूल्य और दर्शन ' काफ़ी उच्च कोटि की शोध पुस्तक गोस्वामी तुलसीदास पर आई थी जिसे मैंने पढ़ा है। उनका एक एकांकी / लघु नाटक का संग्रह' खाली कप' भी आया था। इसके सिवा भी इन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, लेख और कविताएँ भी। मुझे लगता है कि सन् १९७८ के आसपास तिवारी जी ने एक संस्था का गठन किया था जोकि साहित्यिक, सांस्कृतिक, कलात्मक और सामाजिक गतिविधियों का मंच था जिसका नाम रखा गया था' आभास' इस संस्था में कुल पाँच सदस्य थे- डॉक्टर यज्ञ प्रसाद तिवारी, प्रोफेसर वी० एन० सिंह, राधेश्याम अग्रवाल, रामनारायण पाण्डेय और मैं। डॉक्टर तिवारी और प्रोफ़ेसर सिंह इसके निर्देशक के पद पर थे। रामनारायण पाण्डेय सचिव, राधेश्याम अग्रवाल कोषाध्यक्ष तथा मैं इस संस्था का अध्यक्ष था। केवल पाँच सदस्यों वाली यह संस्था काफी मज़बूत और प्रगतिशील थी। ठीक ७ बजे सायं इस संस्था की बैठक होती थी और सभी सदस्य ठीक ६ बज कर ६० मिनट पर उपस्थित हो जाते थे। गज़ब की समय की पाबंदी थी। इतने कम सदस्यों वाली इस संस्था ने गज़ब के काम किए थे। मंचीय कार्यक्रम, साहित्यिक कार्यक्रम, चित्रकला प्रतियोगिता, और गाँवों में मेडिकल केम्प करने के अलावा इस संस्था ने आभास 'नाम की एक पत्रिका भी प्रकाशित की थी जिसमें अखण्ड शहडोल ज़िले के चुनिंदा साहित्यकारों की रचनाएँ समाहित थी, बहुत ही आकर्षक और शानदार पत्रिका निकली थी यह। बाद में इस संस्था में चचाई के भी कई सदस्य जुड़ गए थे जिसमें नरेश चंद्र 'नरेश', प्रकाश मानके, ब्रोजेन्द्र राय और प्रदीप (इनका सरनेम मुझे याद नहीं आ रहा है) आदि।डॉक्टर यज्ञप्रसाद तिवारी शहडोल महाविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रमुख रहे। इन्होंने अमेरिका, मॉरिशस सहित कई विदेशी देशों की साहित्यिक यात्रा कर अनूपपुर का नाम रोशन किया है। संप्रति ये कभी अनूपपुर और कभी नागपुर में रहते हैं।

*श्याम बहादुर नम*👇


श्याम बहादुर नम्र बनारस में गांधी वादी संस्था 'सर्व सेवा संघ' में अपनी सेवाएँ दे रहे थे, वहाँ कोई अनबन होने से उन्होंने इस संस्था को छोड़ दिया। इसी संस्था में प्रसिद्ध समाज सेवी श्री अनंत के दास' जौहरी जी' भी सेवारत थे और इसी दरम्यान इनकी जान-पहचान नम जी से हुई थी। अनंत जी इस संस्था को छोड़कर अनूपपुर आ गए थे और यहीं रहने लगे थे। 1977-78 में उन्होंने नम जी को भी अनूपपुर बुला लिया शुरुआत में कई महीने वे अनंत जी के घर पर ही रहे बाद में अनंत जी से भूमि प्राप्त कर इन्होंने अपना घर बनाया और यहीं रह कर खेती करने लगे और सामाजिक कार्यों में हिस्सा भी लेने लगे। प्रसिद्ध शिक्षाविद व सामाजिक कार्यकर्ता आचार्य राममूर्ति नम जी के ससुर थे और उन्हीं की प्रेरणा से शिक्षा के क्षेत्र में नम जी ने भी काम करना शुरू कर दिया। ज़िला शहडोल में उन्हें शिक्षाविद के तौर पर जाना जाता है, पर हम तो यहाँ कवि नम्र जी के बारे में चर्चा करने के लिए उत्सुक हैं। नम जी की गहन से गहन कविता भी गाह्य होती थी और आसानी से समझ में आ जाती थी। यह उनकी रचना की विशेषता थी। बानगी के तौर पर देखिये उनकी चंद पंक्तियाँ- एक रचना जो लगभग सभी ने सुनी होगी-

हर शाख पे उल्लू बैठा है

अंज़ामे गुलिस्ताँ क्या होगा इसी के जवाब में नम जी लिखते हैं-

शाख़ काटकर हमने सारे उल्लू दूर उड़ाये उसी शाख़ की कुर्सी पर फिर उल्लू बैठे पाए बोलो क्या करोगे

नम जी में सादगी थी और संघर्ष करने की क्षमता थी पर काल ने उन्हें असमय ही हमसे छीन लिया

*जगदीश पाण्डेय*👇


जगदीश पाण्डेय हमारे सहपाठी थे, और प्रगतिशील लेखक संघ में भी थे। शरीर से दुबे पतले और कमज़ोर नज़र आते थे पर व्यवहार में प्रायः उग्रता दृष्टिगोचर होती थी। इनकी रचनाएँ काफ़ी दमदार थीं और अच्छे रचनाकारों में इनकी गिनती होती थी। इनकी हस्तलिपि अत्यंत सुन्दर थी। ये अच्छे समीक्षक भी थे। अनूपपुर के बाहर भी लोग इन्हें जानते और इनका सम्मान करते थे। दुःख पूर्वक कहना पड़ रहा है कि अब ये भी हमारे बीच नहीं हैं।

*डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव*👇


डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव, सोन मौहरी अनूपपुर से हैं। ये 1996-97 के आसपास अनूपपुर में रहने लगे और इन्होंने फ़ोटोकॉपी और टाइपिंग की दुकान अनूपपुर बस स्टैंड में कर ली। ये 1983 से कविता लिखने लगे। शहडोल महाविद्यालय से निकलने वाली वार्षिक पत्रिका' वाणी ' में ये छात्र सम्पादक की हैसियत से जुड़े । शहडोल आकाशवाणी में ये केजुअल एनाउन्सर के तौर पर 7-8 वर्षों तक रहे । इन्होंने हिंदी से एम० ए०, बी० एड० और 1998 में पी० एच० डी० की। पहले डी० ए० वी० स्कूल में शिक्षक रहे फिर इसे छोड़ कर अपने व्यवसाय में आ गए। अभी केशवाही महाविद्यालय में प्राचार्य के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने विभिन्न लेखों और कविताओं के साथ ही एक काव्य लिखा है 'नर्मदा के मेघ'।

*हनुमान प्रसाद तिवारी*👇


हनुमान प्रसाद तिवारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अनूपपुर में हिंदी के व्याख्याता के पद पर 1968 के आस पास कार्यरत थे। हिंदी में अच्छी अभिरुचि होने के कारण इन्हें कविता से भी लगाव था। इन्होंने कितनी कवितायें लिखी और क्या क्या लिखा इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। एक बार एक कवि गोष्ठी के दौरान इनकी कविताओं को सुनने का मौका मिला। ये हिंदी के अच्छे विद्वान और व्याकरणाचार्य थे। अनूपपुर विद्यालय से स्थानांतरण होने के बाद फिर उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।

*विनोद शंकर भावुक*👇


विनोद शंकर भावुक का निवास पुरानी बस्ती अनूपपुर में है। ये पहले चूड़ियों का कारोबार करते थे लेकिन साहित्य में रुचि होने के कारण ये ज़्यादातर कविताएँ ही लिखते थे। बाद में ये गद्य भी लिखने लगे। अभी तीन चार साल पहले इन्होंने एक धार्मिक पुस्तक भी लिखी है जिसे पढने का मुझे मौक़ा मिला है कई बार इन्हें गोष्ठियों में आमंत्रित किया गया पर अब ये उसमें हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं।

*राम स्वरूप रैकवार*👇


राम स्वरूप रैकवार बस स्टैंड अनूपपुर में पान की दुकान करते थे। इनके पान की दुकान की एक खासियत यह थी कि ये बड़ी अदा से पान पेश करते थे। ग्राहक इनकी अदा पर फिदा हो जाते थे। राम स्वरूप जी मुख्यतः कुंडलियों में अपनी रचना प्रस्तुत करते थे। यदि यह कहा जाए कि अनूपपुर में कुंडलियों लिखने वाले एक मात्र रचनाकार राम स्वरूप ही थे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राम स्वरूप जी भी अब इस दुनिया में नहीं रहे।

*रुद्र प्रताप सिंह 'दददा*👇


दद्दा जी सीतापुर में रहते थे। दद्दाजी ही एक मात्र बघेली के कवि थे और अपनी रचनाएँ बघेली में ही लिखते थे। दद्दाजी के सिवा अनूपपुर में कोई भी बघेली का कवि नहीं था। कई बार कवि गोष्ठियों में दद्दा जी को सुनने का मौक़ा मिला। दद्दा जी अपनी बात सीधे-सीधे कहते थे, उनकी कविताओं में घुमाव फिराव नहीं था इसलिए इनकी रचनाएं श्रोताओं को बहुत जल्दी समझ में आ जाती थीं। दद्दाजी की एक कविता की चंद पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं जो इस प्रकार है-

कहये रहौं तोसे के पढ़ मोर लाला घूमत रहे तब तो नदिया औ नाला कैसन के जनिहे य जीवन के बात कैसे समझिहे य दिन है के रात इन सब कवियों के बारे में बताते हुए दुःख होता है कि अब ये हमारे बीच नहीं है।

*शंकर श्रीवास्तव*👇


शंकर श्रीवास्तव पान की दुकान करते थे बल्कि कहा जाए कि पान का थोक व्यवसाय करते थे और इन्हें भी कविता लिखने का शौक था। अक्सर कवि गोष्ठियों में शिरकत करते थे। ये भी बहुत ही कम उम्र में चल बसे।

*मधुकर चतुर्वेदी*👇


मधुकर जी 1985 के आसपास एक उभरते हुए कवि थे। अच्छा लिखते थे और उस समय लगभग सभी गोष्ठियों में उनका आवागमन होता था पर काफ़ी समय से वे कविता के क्षेत्र में सक्रिय नहीं हैं। फिलहाल वे अपने व्यवसाय में लिप्त हैं।

*पवन छिब्बर*👇


छिब्बर जी मुख्यतः हास्य और व्यंग्य कलाकार हैं। ये रायपुर में रायपुर संगीत समिति जो कि एक ऑर्केस्ट्रा समिति थी, में एनाउन्सर थे और अमीन सय्यानी की हुबहू आवाज़ में संचालन करते थे । छिब्बर जी मिमिक्री आर्टिस्ट भी हैं और तमाम कलाकारों और व्यक्तियों की नकल इस तरह करते हैं कि असली और नकली में फ़र्क़ करना कठिन हो जाता है। ये संचालन और मिमिक्री के अलावा नृत्य और गायन में भी रुचि रखते हैं। ये छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के माने हुए कलाकार हैं तथा इन्होंने फिल्मों में भी काम किया है। बाद में ये व्यंग्य कविता भी लिखने लगे और फिलहाल प्रगतिशील लेखक संघ के संरक्षक हैं।

*रामायण पाण्डेय*👇


रामनारायण पांडेय अपने अध्ययन काल में ही लिखना प्रारंभ कर चुके थे। पहले ये पाण्डेय 'सत्य' और पंकज 'अनूपपुरी' के नाम से कविता लिखते थे बाद में ये रामनारायण पाण्डेय के नाम से ही लिखने लग गए। शिक्षण समाप्त कर ये तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर में लिपिक के पद पर कार्य करने लगे। कुछ समय पश्चात ये बिलासपुर के महाविद्यालय में लिपिक के पद पर ही कार्यरत हुए । इस बीच इनका विवाह हो गया और किसी कारणवश इन्होंने बिलासपुर महाविद्यालय से त्यागपत्र दे दिया और अनूपपुर वापस आ गए। यहाँ आकर कुछ समय बाद इन्होंने पान की दुकान खोल ली इस बीच ये लगातार साहित्य से जुड़े रहे कविता लिखना तथा तमाम साहित्यिक व्यक्तियों से सम्पर्क साधने में इनकी गहरी अभिरुचि थी। जब अनूपपुर प्रगतिशील लेखक संघ का गठन हुआ तब से आज तक ये उसके सचिव पद पर कार्यरत हैं या यह कहा जाए कि लगभग चालीस वर्षों से ये इस पद पर हैं तो गलत नहीं होगा मुझे लगता है कि शायद ही कोई व्यक्ति इतने लंबे समय तक किसी पद पर रह सकता है पर रामनारायण ने इतने वर्षों तक इस पद पर रहकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। पान की दुकान बंद कर ये अनूपपुर में संचालित पंडित शम्भूनाथ शुक्ल लायब्रेरी में लाइब्रेरियन के पद पर पदस्थ हुए। इस दरम्यान इन्होंने लाइब्रेरी में ही अनेक साहित्यिक कार्यक्रम संचालित किए और अनूपपुर में साहित्यिक गतिविधियों को जारी रखा और उन्हें जीवन प्रदान किया। इस तरह से रामनारायण पांडे जी ने साहित्य की अपूर्व सेवा की है जो हमेशा याद की जाएगी।

*दीपक अग्रवाल*👇


दीपक अग्रवाल अनूपपुर में इस समय महावीर प्रेस को संचालित कर रहे हैं। दीपक अग्रवाल जब कविता करने लगे तो अनूपपुर के साहित्यकारों ने प्रारंभ में विशेष रुचि नहीं दिखाई फिर भी ये गोष्ठियों और साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। समय बीतता गया और इन्होंने अपनी साधना जारी रखी। कुछ समय पश्चात् जब मोबाइल फ़ोन का युग प्रारंभ हुआ और इन्होंने अपनी रचनाएँ फ़ोन पर डालना शुरू की तो इनकी सराहना शुरू हो गई। दीपक ने उस समय शायरी पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया और धीरे-धीरे इनकी ख्याति फैलने लगी। दो एक मुशायरे में मौका मिलने के बाद आयोजकों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित होने लगा और एक दिन ऐसा आया कि भारत के नामचीन शायरों के साथ इन्हें शिरकत करने का मौक़ा मिला और पूरे भारत में यह एक पहचाना हुआ नाम हो गया। दीपक की शायरी अर्थपूर्ण और यथार्थवादी होती है। इन्हें उर्दू का बहुत अच्छा ज्ञान है इस कारण इनकी रचनाएँ सशक्त बन पाती हैं। दीपक ने निःसंदेह अनूपपुर का नाम पूरे देश में गौरान्वित किया है, अनूपपुर को उन पर नाज है। संप्रति दीपक अग्रवाल प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर में सह सचिव के पद को सुशोभित कर रहे हैं। देखिए दीपक की एक रचना-

मुझसे ढलना तेरा देखा नहीं जाता सूरज

नींद आ जाए मुझे शाम से पहले पहले

कैसी बेचैनी तुझे घेर रही है 'दीपक'

कितना आराम था आराम से पहले पहले ।

*विजेन्द्र सोनी*👇


विजेन्द्र अक्सर कहा करते हैं कि वे कोई कवि नहीं है। हो सकता है वे प्रारंभ में कवि ना रहे हों और उन्होंने कभी गंभीरता पूर्वक इस तरफ सोचा भी ना हो लेकिन एक बात तो है कि उन्होंने साहित्य का गहन अध्ययन किया है पढ़ने में उनकी जबरजस्त रुचि है तो इस तरह से उन्होंने कविता और साहित्य के बारे में काफ़ी ज्ञान अर्जित कर लिया है, कई कवियों की अनेक रचनाएँ उन्होंने पढ़ी हैं और उन्हें हृदयंगम किया है। कौन सी रचना कैसी है और उसकी केंद्रीय वस्तु क्या है यह जानने में वे काफ़ी सिद्धहस्त हैं। इस तरह यह कहा जा सकता है कि उन्हें कविता की अच्छी समझ है। अनूपपुर में एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन किया गया था जिसे हम सब ने मिलकर किया था, उसके आयोजन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह कार्यक्रम बहुत सफल रहा और उसे बहुत सराहा गया। यह सब करते-करते वे कब कवि बन गए उन्हें पता ही नहीं चला। उन्होंने अच्छी-अच्छी सार्थक कविताएँ लिखी हैं। इस समय वे प्रगतिशील लेखक संघ शहडोल संभाग के संभागीय संयोजक हैं।

*राधेश्याम अग्रवाल*👇


राधेश्याम अग्रवाल मेरे सहपाठी रहे हैं। साहित्य में उनकी शुरुआत से ही गहरी रुचि रही है। वे कविताएँ भी लिखते थे। 'आभास' संस्था में वे कोषाध्यक्ष के पद पर तथा 'अभिनव राजीव बाल कल्याण समिति' में उपाध्यक्ष के पद पर उन्होंने कार्य किया है। दीपक के साहित्य क्षेत्र में पदार्पण के साथ ही इन्होंने कविता लिखना बंद कर दिया। इन्होंने अपने प्रेस से एक साप्ताहिक अखबार निकाला था जिसका नाम था 'रिएक्शन'। ये उसके संपादक थे। इस पत्र में प्रति माह मुझे एक लेख लिखना पड़ता था। अख़बार काफ़ी स्तरीय था और उसकी अच्छी साख थी पर कुछ अप्रत्याशित कारणों से उन्हें यह बन्द करना पड़ा। स्वास्थ्य अच्छा न होने की वजह से वे अब इस क्षेत्र में सक्रिय नहीं है।

*विनोद कुमार वर्मा*👇


अनूपपुर में बी डी ओ के पद पर कार्यरत थे। सेवानिवृत्त होने के बाद ये लेख और कविताएँ लिखने लगे थे। इन्होंने ' अभिनव राजीव बाल कल्याण समिति 'के नाम से एक रजिस्टर्ड संस्था गठित की थी जिसके वे स्वयं अध्यक्ष थे। मैं इस संस्था का सचिव था। कुछ समय अनूपपुर में रहने के बाद ये अपने गाँव चले गए थे और यहीं उनकी मृत्यु हो गई।

*सुधा शर्मा*👇


पेशे से एडवोकेट हैं इसके पहले उन्होंने विद्यालय में अध्यापन का कार्य भी किया है। शुरू से ही वे प्रगतिशील विचारों की थीं और यह उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में साफ़ झलकता है। इन्होंने 1975 से 1980 के बीच लिखना शुरु किया था जो अब तक जारी है। उन्होंने काफ़ी सार्थक और अच्छी कविताएँ लिखीं हैं। वे अभी प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर इकाई में उपाध्यक्ष के पद पर आसीन हैं

*मीना सिंह*👇


मीना सिंह जी का मायका कोतमा में है और यहाँ पर उन्होंने अध्यापन भी किया है और साहित्यिक गतिविधियों में हिस्सा भी लिया है। मीना सिंह ने कई कविताएँ लिखी हैं और गीत भी तथा ये बहुत अच्छे सुर में गाती भी हैं। इन्हें अनूपपुर की स्वर-कोकिला कहते हैं। अभी उनकी कई कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छपी हैं तथा उन्हें ऑन लाइन पाठ का अवसर भी प्राप्त हुआ है और वे सम्मानित भी हुई हैं। ये सुरवन्दिता लेखक मंच की एडमिन हैं। प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर में अध्यक्ष मण्डल की सदस्य हैं।

*डॉ. मनीष सोनी*👇


पेशे से होम्योपैथी के डॉक्टर हैं और इस क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय हैं। आप बुंदेलखंडी और खड़ी हिंदी दोनों बोलियों में लिखते हैं। कभी-कभार कवि गोष्ठियों में नज़र आते हैं। अभी साहित्य के बनिस्बत उन्हें अपने व्यवसाय में अधिक रुचि है।

*किरण सरावगी*👇


कविता में अभिरुचि है। इनकी कविताएँ रेडियो से कई बार प्रसारित हो चुकी हैं। पहले ये लगभग सभी गोष्ठियों में उपस्थित रहती थीं और प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर में कोषाध्यक्ष पद पर थीं पर कुछ वर्षों से अपने व्यक्तिगत कारणों से वे साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले पा रही हैं।

*अर्पणा दुबे*👇


अर्पणा दुबे सीतापुर की निवासी हैं। ये कविताएँ लिखती हैं और गाती भी हैं तथा यू ट्यूब में इन्होंने अपना अकाउण्ट खोल रखा है। अभी इनका एक कविता संग्रह 'प्यार की राहें' अमाजोन से प्रकाशित हुआ है।

*श्रुति शिवहरे*👇


अनूपपुर की उभरती हुई प्रतिभा है। अभी तक की रचनाओं से यह लगता है कि यदि इन्होंने गंभीरता पूर्वक साहित्य साधना की तो निश्चित रूप से ये अच्छा मुकाम हासिल करेंगी।

*संतोष सोनी*👇


आप एडवोकेट हैं, सरल, मृदुभाषी और व्यवहार कुशल हैं आप नई कविता में तो रुचि लेते ही हैं पर छन्द बद्ध कविता भी लिखते हैं। आप प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के अध्यक्ष मण्डल के सदस्य हैं। आपकी कविताओं में प्रगतिशीलता साफ़ झलकती है ।

*अभिलाषा अग्रवाल*👇


अभिलाषा अग्रवाल अनूपपुर की बेटी हैं जो सम्प्रति दिल्ली में रहती हैं। साहित्य में इनकी कितनी रुचि है, यह इस बात से पता चलता है कि, अनूपपुर में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय आयोजन में शामिल होने के लिए ये विशेष तौर पर दिल्ली से अनूपपुर आई । इनका एक काव्य संग्रह " ख़्वाब शोर मचाते हैं" काव्या पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है।

*ललित दुबे*👇


ललित दुबे, बाल कल्याण समिति अनूपपुर में कार्यरत हैं और प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के सदस्य हैं। आप लेखक, कवि और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आपने कई टी वी सिरियल की पटकथा भी लिखी है और अभिनय भी किया है। आपकी एक पुस्तिका "अमरकंटक की वन औषधि प्रकाशित हुई है। तथा एक पुस्तिका " अनदेखा अनूपपुर " हिंदी व अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने वाली है।

*रामचंद्र नायडू*👇


रामचंद्र नायडू “शेपर्स एकेडमी “ नामक शैक्षणिक संस्था के संस्थापक थे । ये प्रारंभ से ही साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे । सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों में इनकी गिनती की जाती है । इन्होंने “खिड़की” नामक एक बाल पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया था तथा वे इसके संपादक भी थे । यह स्तरीय पत्रिका थी और बच्चों में काफ़ी लोकप्रिय थी । काफ़ी समय तक प्रकाशित होने और प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद किन्ही अप्रत्याशित कारणों की वजह से इसे बंद करना पड़ा । रामचंद्र नायडू “नई दुनिया “ के अनूपपुर ज़िले के ब्यूरो चीफ़ भी थे । प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के उपाध्यक्ष भी थे । साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में हमेशा शिरकत करते थे। कोरोना काल की यह अपूरणीय क्षति है कि हमने अपने सच्चे और प्रगतिशील मित्र को खो दिया है।

*के ॰ पी ॰ चतुर्वेदी*👇


के॰ पी॰ चतुर्वेदी,अनूपपुर कन्या शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य पद पर आसीन थे । इनकी कविता में गहरी रुचि थी और ये कविता करते भी थे । जब-तब कन्या शाला में कवि गोष्ठी का आयोजन किया करते थे । ये सन् 2000 के आसपास यहाँ पदस्थ थे। इनके कार्यकाल में अनूपपुर का वातावरण काव्यमय हो गया था । स्थानांतरण की वजह से इन्हें अनूपपुर छोड़ना पड़ा । फिर इनका अनूपपुर से संपर्क टूट गया।

*तापस कुमार हाजरा*👇


तापस कुमार हाजरा, भारतीय स्टेट बैंक की अनूपपुर शाखा में पदस्थ थे और कविता लिखने और काव्य गोष्ठियों में शिरकत करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे । हमारे अच्छे साथियों में से एक हैं । प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय आयोजन में शामिल होने के लिए ये विशेष रूप से अनूपपुर पधारे थे ।रिटायरमेंट के पश्चात् संप्रति ये बिलासपुर में निवासरत हैं।

*रामाधार शुक्ल*👇


अनूपपुर में तहसीलदार के पद पर रह चुके हैं । इनकी कविता आसानी से समझ में आ जाने वाली होती थीं । इनकी कविताओं में छायावाद का असर कम था पर इनकी कविता सार्थक, असरदार और गाह्य हैं । कविता को प्रस्तुत करने का इनका अंदाज़ निराला और प्रभावशाली था । ये एक ऐसे कवि थे जो मंच और गोष्ठियों दोनों जगह वाहवाही लूट ले जाते थे । अनूपपुर में हमें इनका काफी सानिध्य मिला । ये स्वभाव से सरल और हंसमुख थे । बाद में इनका स्थानांतरण अन्य स्थान पर हो गया । अब वे इस दुनिया में नहीं हैं।

*शंकर प्रसाद शर्मा*👇


शंकर प्रसाद शर्मा अनूपपुर के राजनैतिक आकाश में देदीप्यमान वह सितारा है जो अभी भी टिमटिमा रहा है । अभी उनकी उम्र 90 के आसपास है । अध्ययन में उनकी रुचि शुरू से थी और इस उम्र भी उन्हें अध्ययनरत देखता हूँ । उनके लेख अक्सर समाचार पत्रों में छपते रहे हैं । उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं जो मेरी जानकारी में निम्नानुसार हैं-

आदिवासी उद्भव और विकास 

मंथन 

बंधन

फैलता शहर गुम होती ज़िंदगी 

एक अजनबी की अनकही कहानी

*रामलाल भारती*👇


अनूपपुर में अध्यापक का कार्य करते थे और 1980 के आसपास आयोजित लगभग सभी गोष्ठियों में हिस्सा लेते थे । उनकी एक कविता की पंक्ति याद आ रही है, उनकी उस कविता में कवि एक लड़की से प्यार करता होता है और वह लड़की मंजी होती है । नायिका से बिछड़ने के बाद जब वह एक सुंदर से गुलाब को देखता है और गुलाब पर फ़िदा हो जाता है तब उनकी यह पंक्ति आती है- “ लगता है गुलाब मंजा हो गया है “ । स्थानांतरण के पश्चात् वे अनूपपुर छोड़कर चले गए फिर उनका पता नहीं चला।

*गोविंद प्रसाद श्रीवास्तव ‘विरागी’*👇


वैसे तो श्री ‘विरागी’ जी अनूपपुर के निवासी नहीं हैं बल्कि ये अनूपपुर से लगे हुए ग्राम ‘सोन मौहरी’के निवासी हैं परंतु कई वर्षों पूर्व अनूपपुर में आयोजित अधिकांश साहित्यिक कार्यक्रमों में ये शिरकत करते रहे हैं लिहाज़ा यहाँ इनका ज़िक्र किया जाना लाज़िमी है ।आप की शिक्षा दीक्षा शहडोल, सागर और रीवा में हुई ।आप सेवा निवृत्त अध्यापक हैं । आपकी अभिरुचि शुरू से ही साहित्य में रही है । आप कवि, समीक्षक, निबंधकार और संपादक रहे हैं तथा आपकी वार्ताएँ आकाशवाणी से प्रसारित हो चुकी हैं ।आपकी रचनाएँ-अग्निदग्धा, गीत शिखा काव्य प्रकाशित हो चुके हैं व नव भारती प्रकाश्य हैं साथ ही दो निबंध संग्रह विजय बिंदु और तुलसी दल प्रकाश्य हैं ।इन्होंने मानस-धर्म- चक्र का संपादन भी किया है। सन् 1945 में हरिवंश राय बच्चन इनके रिश्तेदार रामनरेश श्रीवास्तवजी के यहाँ मौहरी पधारे थे। 

*अन्य कवि*👇 

अन्य कवियों में वन्दना खरे जो चचाई से हैं तथा पाठक मंच की संयोजक हैं तथा विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेती रहती हैं। इसके अलावा सरदार अवतार सिंह, सरयू प्रसाद सोनी, सरदार हरदेव सिंह आदि सम्मिलित हैं। इनमें से सरयू प्रसाद सोनी अब इस दुनिया में नहीं हैं। सरदार अवतार सिंह कहाँ हैं कुछ पता नहीं। तथा सरदार हरदेव सिंह अभी अनूपपुर में हैं पर इन्होंने बहुत थोड़ा लिखकर बहुत पहले ही विराम ले लिया है।

इस तरह इस लेख में जिन 39 साहित्यकारों का ज़िक्र हुआ है उन सभी को नमन। अनूपपुर के साहित्यिक सफ़र में मुझे जितने साहित्यकारों की जानकारी थी उसके आधार पर मैंने यहां ज़िक्र किया है। यदि इसके बावजूद भी कुछ लोग छूट गए हों तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

 -गिरीश पटेल

MKRdezign

,

संपर्क फ़ॉर्म

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget