श्रम को सम्मान देने वाला लेखन ही प्रगतिशील साहित्य है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बाधित करने की निंदा

श्रम को सम्मान देने वाला लेखन ही प्रगतिशील साहित्य है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बाधित करने की निंदा

*बागो- बहार, बेताल पच्चीसी, लैला-मजनूं की कहानियों को साहित्य कहा जाता था*


देवास

प्रगतिशील साहित्य वही है जो लेखक को वंचितों, पीड़ितों के पक्ष में खड़ा करता है। आजादी के पूर्व और बाद में भी लेखकों ने सत्ता से सवाल किए थे। वर्तमान में ऐसे सवाल करने वालों की अभिव्यक्ति खतरे में है।

ये विचार प्रगतिशील लेखक संघ देवास इकाई द्वारा देवास में आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किए गए। संगठन के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि लेखन से मानवीय पीड़ा के प्रति पाठक की संवेदना जागृत हो, यही प्रलेसं का प्रयास है। यदि हम अपने से कमज़ोर व्यक्ति के दुःख को महसूस कर सकेंगे, तभी हम जीवन के सौंदर्य का भी सुख ले सकेंगे।

उन्होंने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ सदैव शांति के पक्ष में रहा है। मखदूम मोइनुद्दीन, फ़ैज़, नागार्जुन, मुक्तिबोध, मंटो, कृश्न चंदर, भीष्म साहनी और साहिर लुधियानवी जैसे अनेक शायरों, लेखकों ने युद्धों की विभीषिका को अपनी रचनाओं में उकेरा है और आगाह किया है कि युद्ध कभी भी मानवता के हित में नहीं होता और विवेक का साथ कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। सीमा के इस पार भी मेहनतकश मज़दूर और किसान मरते हैं और सीमा के उस पार भी। वर्तमान में देश में युद्धोन्माद फैलाया जा रहा है और सरकार से सवाल करने वाले लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों पर प्रकरण दर्ज  किये जा रहे हैं। इंदौर निवासी हेमंत मालवीय द्वारा एक कार्टून बनाने पर मुकदमा दर्ज किया गया है। हाल ही में दिल्ली में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद द्वारा सवाल पूछने पर, नागपुर में फैज की नज़्म गाने पर पुष्पा विजय साथीदार और उनके साथियों पर एफआईआर की गई। लोकगायिका नेहा सिंह राठौर पर देश के अनेक शहरों में मुकदमे कायम किए गए हैं। प्रलेस ने सभी जगह इसका विरोध किया है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर दमन की यह कार्यवाही चिंता का विषय है।

प्रलेसं पदाधिकारी हरनाम सिंह ने संगठन के पुरखे प्रेमचंद के हवाले से कहा कि हमारे देश में समाज के कथित श्रेष्ठी वर्ग के लिए ही जो लिखा जा रहा था, बागो- बहार, बेताल पच्चीसी, लैला-मजनूं की कहानियों को साहित्य कहा जाता था। प्रेमचंद ने बताया कि तिलस्मी ,भूत- प्रेत, प्रेम- वियोग, आधारित कहानियां जीवन की सच्चाई को उजागर नहीं करती। साहित्य केवल मन बहलाव का माध्यम नहीं है। कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिसमें सच्चाई होगी, जो वंचितों, शोषितों के पक्ष में खड़ा होगा।

सारिका श्रीवास्तव ने पढ़ने पर जोर देते हुए कहा कि संगठन में महिलाओं की, युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए और देवास इकाई की रचनात्मक पहचान क़ायम रखने की कोशिश करनी चाहिए। विचार गोष्ठी की अध्यक्षता इकाई के उपाध्यक्ष कैलाश सिंह राजपूत ने की। गोष्ठी को प्रलेसं के वरिष्ठ सदस्य मेहरबान सिंह, प्रोफेसर एस एम त्रिवेदी, मदनलाल जेठवा, डॉक्टर मुन्ना सरकार, ओ पी वागडे़, प्रोफेसर भागीरथ सिंह मालवीय, मांगीलाल काजोड़िया, राजेंद्र राठौड़, आदि ने भी संबोधित किया। युवा शायर सैयद गुलरेज अली, आरिफ आरसी, साहिल सुलेमान आलम एवं इस्माइल नजर ने अपनी- अपनी रचनाओं का वाचन किया।

*प्रेषक हरनाम सिंह 9229847950*

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