पर्यावरण को बचाने के लिए एवं मानव जीवन के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण जरूरी- संस्कार तिवारी

*वृक्ष का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है*


सतना

मानव जीवन के साथ साथ प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति में वृक्षों की विशेष महत्ता है पंडित संस्कार राज तिवारी ने बताया कि वृक्ष हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक है, जिसमें वृक्षों को ईश्वर का स्वरूप माना गया है, प्रकृति के सौंदर्य और मानव जीवन के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है, वृक्षों से मानव की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति भी होती है, वृक्ष ही जल है, जल ही अन्न है, अन्न ही जीवन है, यदि वृक्ष नहीं होगे तो नदी जलाशय नहीं होगे, वृक्षों की जड़ों के साथ वर्षा का अपार जल जमीन के भीतर पहुंचकर अक्षय जल भण्डार के रूप में एकत्र रहता है, वृक्ष हमारी सभ्यता है तथा संस्कृति के रक्षक प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि एकांत एवं शांति के लिए वनों में वृक्षों के नीचे रहते थे, प्राकृतिक साधनों के अधिकाधिक उपयोग से पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है, वृक्षों की भारी तादाद से कटाई से जलवायु बदल रही है, तापमान की मात्रा बढ़ रही है, नदियों का जल दूषित हो रहा है, वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, इससे भावी पीढ़ी को खतरा है। संस्कार राज तिवारी ने बताया कि बताया कि प्राचीन काल में वृक्षों के महत्व को समझते हुए इनकी पूजा आराधना पर बल दिया गया है, वृक्षों में ईश्वर का वास होना भी बताया गया है, अतः हमें वृक्ष काटने नहीं चाहिए, वृक्षों से हमे अत्यंत उपयोगी वस्तुएं फल फूल एवं विशिष्ट प्रकार की औषधियां भी मिलती है। संस्कार तिवारी ने बताया कि वृक्षों से हमे स्वस्थ्य लाभ होता है क्योंकि मनुष्य की श्वास प्रक्रिया से जो दूषित हवा बाहर निकलती है, वृक्ष उन्हें ग्रहण कर हमे बदले में स्वच्छ हवा देते हैं, वृक्ष बालक से लेकर बुजुर्गों तक सभी के मन को भाते है, अपने घर के वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए अपने घर में वृक्ष जरूर लगाएं संस्कार तिवारी ने कहा कि वृक्षों पर अनेक पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते है, उनकी कल कल की मधुर ध्वनि पर्यावरण में मधुरता घोलती है, वृक्ष हमें अनेक प्रकार के स्वादिष्ट फल प्रदान करते है, वृक्षों  संस्कार तिवारी ने कहा कि वृक्षों से मानव जीवन को अनेक लाभ है, वृक्ष वर्षा कराने में सहायक होते है, वृक्षों के अभाव में वर्षा नहीं होती और वर्षा के अभाव में अन्न का उत्पादन नहीं हो पाता ग्रीष्मकाल में वृक्ष हमें सुखद छाया और स्वच्छ हवा देते है। संस्कार तिवारी ने कहा कि वृक्षों से हमे नैतिकता परोपकार और विनम्रता की शिक्षा मिलती है वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते कहा भी गया है।

*वृक्ष कबहुं नहिं फल भखे नदी न सांचे नीर परमारथ के कारणों साधों धरा शरीर*

संस्कार तिवारी ने कहा कि पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके ही हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए जीवन दाई वातावरण सृजित कर सकते है, हमारी भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश सरकार भी वृक्षारोपण में अपना पूरा जोर दे रही है, हम सबको मिलकर इस वृक्षारोपण अभियान में अपनी सहभागिता निभानी चाहिए मेरा आप सभी से निवेदन है कि पर्यावरण को बचाने के लिए कम से कम एक वृक्ष जरूर लगाएं ताकि हम अपने देश के वातावरण को अनुकूल एवं स्वच्छ बना सके इसलिए आज पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण अवश्य करें।

संस्कार राज तिवारी, भाजयुमो - जिला सतना, मो.8602768852

सशक्त हस्ताक्षर संस्था व प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने डॉ वीरेन्द्र कुमार दुबे को किया सम्मानित


जबलपुर

सशक्त हस्ताक्षर संस्था व प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा रचनाकारों को सशक्त मंच प्रदान कर प्रेरणादायक कार्य कर रही है। निरंतर काव्य गोष्ठी के माध्यम से साहित्य, समाज व सांस्कृतिक क्षेत्र में सम्मानित करने के साथ ही सशक्त हस्ताक्षर संस्था प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के संयोजन में हिंदी प्रेमियों को सम्मानित करने की दिशा में भी कार्य कर रही है। इसी कड़ी में संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ वीरेन्द्र कुमार दुबे को कवि संगम त्रिपाठी व गणेश श्रीवास्तव प्यासा जबलपुरी ने अंग वस्त्र कलम श्री मोतियों की माला पहनाकर सम्मान पत्र व हिंदी रत्न सम्मान प्रदान किया।

डॉ वीरेन्द्र कुमार दुबे शिक्षाविद् व वरिष्ठ साहित्यकार है व स्वर्गीय डॉ के. एल . दुबे (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, भूतपूर्व महापौर व विधायक) के पुत्र है।

डॉ वीरेन्द्र कुमार दुबे 1983 से 2008 तक भारत सरकार के उद्योग, वाणिज्य , खाद्य तथा नागरिक आपूर्ति , योजना तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन , जल भूतल परिवहन , दूरसंचार, शहरी विकास, पर्यटन मंत्रालय के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य, कार्यक्रम क्रियान्वयन के सदस्य, आकाशवाणी जबलपुर सहित कई केन्द्रीय मंत्रालयों के राज्य व जिला समितियों के सदस्य जिला शांति एवं पुरातत्व संघ। अध्यक्ष भारतीय लोक प्रशासन संस्थान जबलपुर, लायन्स क्लब, जबलपुर शाखा व वर्ल्ड वेजेटेरियन काउंसिल जबलपुर शाखा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष - म.प्र. उपभोक्ता परिषद जबलपुर शाखा, उपाध्यक्ष - विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान इलाहाबाद, प्रदेश उपाध्यक्ष - मीडिया फोरम आफ इंडिया के रहे। प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संयोजक है

प्रगतिशील लेखक संघ पंजाब का प्रकाशन, कविता संग्रह "चलो जिधर उजियारा चले"- हरनाम सिंह 

*स्वावलंबन और आत्मसम्मान की परंपरा भी बाबा फरीद से मिलती है*



पंजाब की संस्कृति, वहां का जन-जीवन, वहां की चिंताएं, आंदोलन, अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध सभी को रेखांकित किया गया है कविता संग्रह "चलो जिधर उजियारा चले" में। प्रगतिशील लेखक संघ पंजाब द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का संपादन सुरजीत जज्ज, तरसेम और कुलदीप सिंह दीप ने किया है। पंजाब के लेखन में गुरु नानक देव का कितना प्रभाव है, वह उनकी वाणी से ली गई एक पंक्ति में मिलता है जब नानक कहते हैं *घड़िए सबदु सची टकसाल* वे शब्द को कितना महत्व दे रहे हैं। यह ध्येय वाक्य पंजाब के साहित्यकारों के लिए ही नहीं, साहित्य जगत के सभी लेखकों के लिए एक पैमाना है। शब्द ऐसा हो जो प्रमाणिक हो, सच्चा हो।

स्वावलंबन और आत्मसम्मान की परंपरा भी बाबा फरीद से मिलती है जब वे कहते हैं *" बार पराये बैसणा, सांई मुझे ना देहि"*। मुझे दूसरों पर निर्भर न होने की स्थिति मिले। वहीं बाबा बुल्ले शाह कहते हैं *"ओह काफ़िर काफ़िर आखदे, तू आहो आहो आख"* यह है प्रेम की स्वीकारोक्ति।

पुस्तक के प्रारंभ में प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा कहते हैं पंजाबी भाषा में जन-पक्षीय कविता की एक बड़ी समृद्ध परंपरा है. सिख गुरुओं, सूफी कवियों ने विलासी राज्य सत्ता, पाखंडी पुजारियों, अहंकारी सामंत शाही का डटकर विरोध किया है। उन्होंने इश्क को *अल्लाह की जात* कहा है। समकालीन पंजाबी कविता सामाजिक आंदोलन की हमसफर रही है। संपादक प्रोफेसर सुरजीत जज्ज के अनुसार पंजाबी कविता "मोहब्बत की बगावत और बगावत की मोहब्बत" के रिश्ते को खूब पहचानती है‌। उनकी ज़ुस्तज़ु है *"अंधेरे को बे आराम करते चलें, चलो चिरागों का काम करते चलें।"* वही तरसेम कुंवर नारायण को उद्धरत करते हुए कहते हैं *"कोई दुख, मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं, वही हारा जो लड़ा नहीं"*

संग्रह की पहली कविता पंजाबी के युवा और लोकप्रिय कवि पाश की है जो अपने देश को अपने सम्मान से जोड़ते हैं। उनके लिए बाकी सब शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं। डॉक्टर जगतार अपनी कविता "क्या उत्तर दूं" मैं शाश्वत सा सवाल उठाते हैं *"हम कणक बीजते हैं, पालते हैं, काटते हैं, मंडी लेकर जाते हैं, पर कणक को हमारे घरों की राह नहीं आती"*

सुरजीत पातर अपनी कविता "पंछी तो उड़ गए हैं" में संकल्प व्यक्त करते हैं *"हमने इस धरती को बनाना है, बसण जोग,रसण जोग"* "रोज आफ सेराओ" कविता में डॉक्टर मोहनजोत एक सुनी हुई कहानी जिसमें एक बीमार वृद्ध को स्तनपान कराती युवती में वे मरियम की प्रति छाया देखते हैं। सुखदेव सिरसा कविता "भारत" में हथेली पर खोदे हुए हिंदुस्तान के नक्शे को जिंदगी का सबसे बड़ा खौफ मानते हैं। वे पूछते हैं *"मरी हुई ज़मीर के कुफ्र को लोगों के लिए सलाखें हैं तो हैं, लफ़्ज़ों के नसीब में सूली क्यों ?"*

सुरजीत जज्ज अपनी कविता "धूल से सूरज नहीं मिटते" में सदियों से कुमार्ग पर चलते पांव की धूल से कहते हैं *"तुम अंधकार के किसी भी रूप में आओ तुम्हारे रूबरू लौ हमारी होगी"* भाषा को रोटी से जोड़ते हुए लखविंदर जौहल कहते हैं *"दो लफ़्ज़ों से रोटी बनती, दो लफ़्ज़ों से भाषा, दोनों छीनी जाए जब भी, होती घोर निराशा"*       

"फैसले की घड़ी" कविता में गुरतेज कोहारवाला पूछते हैं *"जब तंग कमीज की तरह माप न आए तो इसे उल्टा-पुल्टा कर देखना बगावत कैसे हुई हजूर ?"* "तल्ख मौसमों का हिसाब" कविता में सुखविंदर कंबोज कहते हैं *"राजनीति कमाल है, यह मनुष्य को रिश्ता नहीं एक वोट मानती है"* आगे... *"तल्ख मौसमों का हिसाब पूछना, और कुछ नहीं, वास्तव में मौत की फाइल पे, अपने हिस्से के बाद की नोटिंग करना है।"*

" ब्याज" कविता में सुखपाल पलायनवादियों को ललकारते हैं वे कहते हैं *".लड़ने वाला भी मरने तक नहीं थकता, मगर भागने वाला जीते जी थक सकता है..."* आगे *"यदि युद्ध ने तुझे चुन लिया है, तो तेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा, अब न लड़ने का, बेहतर है कि तू अभी लड़ले"* "खोलते खून की गुजारिश" कविता में सरबजीत सोही हिम्मत बंधाते हैं *"जालिम की गर्दन तक... अगर तलवार न भी पहुंचे, इसे म्यान ने निकाल कर चूम लेना..."* आगे वे समझाते हैं *"धरती पर बोझ न बनना... मेरे दोस्तों चुप के तलबगार न बनना, खामोशी बहुत खतरनाक होती है... जूझते लोगों की गाथा बनो, पर बहरे दौर का किस्सा मत बनना, मेरे दोस्तों.... बस मरने तक- खुद को मरने मत देना।"*

" नारीवादी चिंतन के साथ संवाद" कविता में लाभ सिंह खीवा की नारी पेतृक सत्ता को ललकारती है उसके अनुसार *"फेरों के समय वर का पकड़ा जो पल्लू, खरीदे गए पशु के लिए, सांकल ही होती है"* आगे वह पूछती है *"गृहस्थी की गाड़ी के, दो पहिए होने के, प्रतीक भी गढ़ते हो, पर एक पहिया ही, आगे क्यों करते हो ?"*

रणवीर राणा की गजल सहज की समझ में आती है, वे जनता की रहनुमाई का दावा करने वालों की सच्चाई को सामने लाते हैं।

*"सानू हलाल कर दे, साडे ही रहनुमा ने, सालां दे साल कर दे,साडे ही रहनुमा ने। पिड़ा दा चौगा पाऊंदे, मरहम वी नाल रक्खण, वेखो कमाल कर दे, साडे ही रहनुमा ने"*

हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में रवीश कुमार की बेखौफ अभिव्यक्ति, लोकतंत्र के प्रति भरोसा जगाती है तरसेम की कविता "यह कोई खत नहीं..." में कवि रवीश से पूछता है 

*"जब औरत का चीर हरन होता है, तो सारा समाज बेपर्दा होता है, और राजा भी नंगा हो जाता है। जब राजे की उतर जाए लोई, तो देश को कौन ढके ?"*

भगत सिंह को अनेक कवियों ने अपनी तरह से याद किया है। अपनी कविता "भगत सिंह" में जसवंत सिंह जफर पूछते हैं *"मैं प्रत्येक जन्मदिन पर, बुढ़ापे की और एक साल सरकता हूं, तू हर शहीदी दिवस पर चौबीस साल का भर जवान गभरू ही रहा"*  बख्तावर सिंह  कहते हैं *"नारों और बुतों में से, भगत सिंह को खोजने वाले साथी, उसकी प्रतीक्षा मत कर, जो गया ही नहीं उसका इंतजार क्यों ? भगत सिंह व्यक्ति का नहीं, विचारधारा का नाम है।"* 

डॉक्टर कुलदीप सिंह दीप भी दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन को याद करते कहते हैं *"तब तुम 23 वर्षीय युवा थे,शासक के अहंकार को तोड़ने जेल गए थे। अब तुम 70 वर्ष के युवा, फिर से शासक का अहंकार तोड़ने सीमा पर पहुंच गए। देखो भगत सिंह... तरक्की कर गया है तुम्हारा देश।"*

नीतू अरोड़ा की कविता भी सामयिक है वे कहती हैं *"यह खिलाफ होने का समय है, हर एक शब्द के खिलाफ, जो घृणा की कोख से पैदा होता है।"* "जीवन जांच" कविता में संदीप जायसवाल अपनी परवरिश पर सवाल उठाते कहते हैं *"अपने मां-बाप को कायर कह दूं, जिन्होंने मुझे जीना सिखाया, या सहना सिखाया, न मरना सिखाया, न लड़ना सिखाया।"*

नरिन्दर पाल कौर  औपचारिकता और विसंगति पर दुखी होकर सवाल उठाती है।

 *समय के हाकिम, बुलेट प्रूफ पहन कर, अवाम का सिर, पंथ को भेंट करते, कैसे कहूं बैसाखी मुबारक*

संग्रह में  ग़ज़लों  का अनुवाद कठिन मानकर उनका लिप्यांतरण किया गया है। इनका अनुवाद भी संभव हो सकता था। हालांकि पंजाबी ग़ज़ल  समझना इतना मुश्किल भी नहीं है, जब सुरजीत सखी कहते हैं 

*"रिशतियां नू गरम  रख सकदा है बस, दौलत दा सेक, किस तरां मारोगे पर, जज़्बात दी ठंडक तुसी"*

कुल मिलाकर कविता संग्रह अपने समय का दस्तावेज है, जिसे संजोए रखा जाना चाहिए।

रामायण केन्द्र जबलपुर 23 जून को करेगा आयोजन, बैठक सपन्न


जबलपुर

रामायण केंद्र जबलपुर इकाई के कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की बैठक सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की प्रारंभ में आगामी 23 जून 2025 दिन सोमवार को रानी दुर्गावती म्यूज़ियम भंवरताल गार्डेन स्थित कला वीथिका में होने वाले कार्यक्रम पर चर्चा कर कार्यक्रम की रुपरेखा बनाई गई साथ ही समिति के सदस्यों को आगामी कार्यक्रम में किये जाने वाले कार्य एवं कार्यभार बांटने के विषय में भी चर्चा की गयी। इसके अतिरिक्त कई अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर भी विचार किया गया। इस बैठक में रामायण केंद्र जबलपुर के संयोजक इंजी. श्री संतोष मिश्र , जिला मंत्री डॉ. विवेक चंद्रा . जिला अध्यक्ष डॉ. वी.के.उपाध्याय ,  श्रीमती अल्का श्रीवास्तव जी जिला अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ ,डॉ. नेहा शाक्य सह सचिव तथा विशेष निमंत्रित सदस्य डॉ. नम्रता चंद्रा जी ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किए। श्री उपाध्याय जी ने बताया कि इस  कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए नए सदस्यों को इस ग्रुप से जोड़ने हेतु व्यक्तिगत स्तर पर एवं सोशल तथा प्रिंट मीडिया के माध्यम से विशेष अभियान चलाया जाएगा। डॉ. विवेक चंद्रा द्वारा मीटिंग में सम्मिलित हुए सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया गया। उक्ताशय की जानकारी कवि संगम त्रिपाठी ने दी।

बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक के लेखन पर परिचर्चा, देश में अभिव्यक्ति के अधिकार के दमन की निंदा

*प्रगतिशील लेखक संघ इंदौर इकाई द्वारा आयोजित परिचर्चा*


इंदौर

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता कन्नड़ भाषा की लेखिका बानू मुश्ताक के लेखन, उनके सामाजिक सरोकार पर एक परिचर्चा का आयोजन अभिनव कला समाज स्थित कल्याण जैन पुस्तकालय में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि बानू मुश्ताक द्वारा अपने लेखन के माध्यम से समकालीन समाज में व्याप्त जाति, धर्म की गहरी दरारों की पहचान की गई है। उनका साहित्य भ्रष्टाचार, दमन, अन्याय और हिंसा के स्वरूप को सामने लाने में सफल रहा है। गोष्ठी में कलाकारों, लेखकों की अभिव्यक्ति पर पुलीसिया कार्यवाही पर चिंता व्यक्त की गई।

प्रगतिशील लेखक संघ इंदौर इकाई द्वारा आयोजित इस परिचर्चा में प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने बानू मुश्ताक की कहानी *बी ए वूमन वन्स, ओह लार्ड* के हिंदी अनुवाद का भावपूर्ण पाठ किया। उन्होंने लेखिका के रचना कौशल, सामान्य जनजीवन से उठाए गए विषयों की चर्चा की।

हरनाम सिंह ने बानू मुश्ताक की रचनाओं और उनके जीवन पर परिचयात्मक वक्तव्य दिया। उन्होंने बताया कि वर्ष 1970- 80 के दशक में दक्षिण पश्चिम भारत में जाति, वर्ग व्यवस्था के विरोध में आंदोलन चला था। बद्या नामक इस आंदोलन ने कई लेखकों बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया, उनमें बानो मुश्ताक की एक थी। हरनाम सिंह ने पुरस्कृत पुस्तक *हार्ट लैंप* के अलावा अन्य कहानियों पर भी विचार रखें। सारिका श्रीवास्तव ने बानू मुश्ताक की रचनाओं में मुस्लिम महिलाओं की समस्या पर चर्चा करते हुए वर्तमान समय के हालात पर ध्यान आकृष्ट किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में चुन्नीलाल वाधवानी ने विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखन पर चर्चा होने का स्वागत किया। परिचर्चा में राम आसरे पांडे, फादर पायस, अभय नेमा,  जावेद आलम, रुद्रपाल यादव, शफी शेख, नीतिन, विवेक ने भी अपने विचार रखें। 

*अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रस्ताव*

गोष्ठी में प्रलेस इकाई इंदौर के वरिष्ठ सदस्य विवेक मेहता ने एक प्रस्ताव का वाचन किया, जिसमें देश में अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता को कुचलने के प्रयासों की निंदा की गई। प्रस्ताव में बताया गया कि हाल ही में राष्ट्रीय स्तर के व्यंग्य चित्रकार इंदौर निवासी हेमंत मालवीय पर उनके कार्टून के कारण प्रकरण दर्ज किया गया है। इसके पूर्व भी दिल्ली में अशोक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद द्वारा सवाल पूछे जाने पर, नागपुर में फ़ैज़ की नज़्म गाने वालों पर प्रकरण दर्ज किये गये हैं। प्रसिद्ध लोक गायिका नेहा राठौर पर 400 एफ आई आर दर्ज की गयी है। सरकार के द्वारा की जा रही  दमनात्मक कार्यवाही चिंता का विषय है। प्रस्ताव में कहा गया है कि शासक दल के नेताओं द्वारा नफरती  भाषण देने, देश की सेना का अपमान करने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। वहीं प्रेम, भाईचारा, सामाजिक सुधार की बात करने वालों पर पुलिस प्रकरण दर्ज कर रही है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचला जा रहा है। प्रलेसं की इंदौर इकाई ने सभी तरह की ऐसी घटनाओं का कड़ा विरोध करते हुए इंदौर के हेमंत मालवीय सहित सभी लेखकों ,कलाकारों, बुद्धिजीवियों पर दर्ज सभी तरह के प्रकरण वापस लेने की मांग की है।

(प्रेषक: हरनाम सिह)

कनिष्ठ अभियंता से अभद्रता करना पड़ा भारी, एफआईआर हुई दर्ज


कटनी

कटनी में एक डिफॉल्टर उपभोक्ता को महिला कनिष्ठ अभियंता से शासकीय कार्य के दौरान कार्य में बाधा डालना और अभद्रता करना काफी महंगा पड़ गया। बीएनएस की कई धाराओं के तहत आरोपी के विरुद्ध हुई एफआईआर दर्ज हो गयी हैं।

कटनी शहर संभाग में विद्युत डिस्कनेक्शन के दौरान कनिष्ठ अभियंता और उनकी टीम के साथ झूमा झटकी और अभद्रता करते हुए एक उपभोक्ता ने शासकीय कार्य में बाधा डाली, जिसके बाद उसकी एफआईआर करवाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। परंतु जैसे ही पत्रोपाधी अभियंता संघ के संज्ञान में ये मामला आया अशोक जैन साहब के निर्देशन में पीएस दुबे के नेतृत्व में दिलदार डावर साहब की अध्यक्षता में तत्काल ही संघ कटनी एसपी से मिलकर उक्त आरोपी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई गई। इस कार्यवाही से कटनी पत्रोपाधी अभियंता संघ में एकता की शक्ति दिखाई पडी।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने डॉ. राजलक्ष्मी को दिया हिंदी रत्न सम्मान 


जबलपुर

सशक्त हस्ताक्षर जबलपुर मध्यप्रदेश की क्रियाशील संस्था ने प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के संयोजन में डाॅ राजलक्ष्मी शिवहरे को हिंदी रत्न सम्मान प्रदान किया। डॉ राजलक्ष्मी शिवहरे संस्कारधानी जबलपुर की स्थापित रचनाकार हैं उनके साहित्य सृजन नवोदित रचनाकारों व समाज के लिए प्रेरणादायक है। डॉ राजलक्ष्मी शिवहरे हिंदी के प्रचार-प्रसार में सतत प्रेरणादायक कार्य कर रही है।

कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर ज्योति मिश्रा व गणेश श्रीवास्तव प्यासा जबलपुरी संस्थापक सशक्त हस्ताक्षर ने उनके स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए उनके सदन में हिंदी रत्न सम्मान प्रदान किया।

प्रचारिणी सभा के संस्थापक ने समाजसेवी पी. एन. गुप्ता का किया सम्मान 


चाकघाट

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के संस्थापक कवि संगम त्रिपाठी ने प्रयागराज प्रवास के दौरान समाजसेवी पी. एन. गुप्ता चाकघाट से सौजन्य भेंट की। इस भेंट के दौरान कवि संगम त्रिपाठी ने गुप्ता जी को मोती की माला पहनाकर व लेखनी भेंटकर सम्मानित किया।

कवि संगम त्रिपाठी ने बताया कि पी. एन. गुप्ता जी सामाजिक सांस्कृतिक कार्यों में निरंतर कार्य कर रहे हैं। इस अवसर पर प्रतिष्ठित व्यापारी राजाराम गुप्ता चाकघाट भी उपस्थित रहे। प्रेरणा साहित्य समाज व सांस्कृतिक कार्यों में प्रेरणादायक कार्य कर रहे व्यक्तित्व को निरंतर सम्मानित कर रही है।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने अन्नपूर्णा वर्मा को दिया हिंदी सेवी सम्मान


जबलपुर

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के संपादक कवि संगम त्रिपाठी के निर्देशन में संस्था की संरक्षक वरिष्ठ कवयित्री समाजसेविका राजकुमारी रैकवार राज ने अन्नपूर्णा वर्मा भोपाल को जबलपुर संस्कारधानी प्रवास पर हिंदी सेवी सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया।

कवि संगम त्रिपाठी ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि राजकुमारी रैकवार राज हिंदी प्रचार प्रसार में सतत प्रेरणादायक कार्य कर रही है व विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के प्रति कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा में शामिल करने का काम कर रही है। राजकुमारी रैकवार राज विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभा रही है पर उनकी हिंदी के प्रचार-प्रसार व राष्ट्रभाषा बनाने हेतु  जारी अभियान प्रेरणादायक है।

डॉ. सलपनाथ यादव 'प्रेम' ने विचार कविता संग्रह भेंट की


जबलपुर - डॉ. सलपनाथ यादव 'प्रेम' ने सौजन्य भेंट के दौरान अपनी कविता संग्रह विचार कवि संगम त्रिपाठी को भेंट किया। डॉ. सलपनाथ यादव 'प्रेम' पूर्णिका के जनक माने जाते है। हिंदी विधा में पूर्णिका के रचनाकार देश भर में सृजन कर रहे हैं और अनेकों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जो कि साहित्य जगत में गौरव की बात है। आभा साहित्य संघ के माध्यम से साहित्यकार जुड़े हुए हैं। डॉ. सलपनाथ यादव 'प्रेम' से कवि संगम त्रिपाठी व अमर सिंह वर्मा ने भेंट की और उनका स्नेह और सानिध्य प्राप्त किया।

डॉ ओमप्रकाश केसरी पवनन्दन हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर - कवि संगम त्रिपाठी 


जबलपुर 

डॉ ओमप्रकाश केसरी पवन नंदन बिहार की धरा से हिंदी प्रचार प्रसार कर रहे हैं। हिंदी प्रचार अभियान में उनका हमें सतत् प्रेरणादायक सहयोग मिलता है। कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने कहा कि डॉ ओमप्रकाश केसरी पवन नंदन की हिंदी के प्रति प्रेम अकथनीय है। शारीरिक वेदना के बावजूद इस उम्र में हिंदी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता युवाओं को भी पीछे छोड़ दिया है। हिंदी राष्ट्रभाषा बने इस अभियान में प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ऐसे हिंदी भक्त को पाकर गौरवान्वित है। लेखक डॉ ओमप्रकाश केसरी पवन नंदन को दर्द का सैलाब पुस्तक विमोचन पर हार्दिक बधाई दी है।

 काव्यकृति" साहित्यिक संस्था की वसंत उत्सव पर काव्य गोष्ठी संपन्न


जबलपुर  

संस्कारधानी जबलपुर शहर की उभरती हुई साहित्यिक संस्था "काव्यकृति" की वसंत उत्सव पर आधारित काव्य गोष्ठी कचनार प्लाजा कचनार सिटी विजय नगर जबलपुर में संस्था के संस्थापक और संयोजक विवेक शैलार के द्वारा सफलता पूर्ण आयोजित की गई। 

"काव्यकृति" की अध्यक्षता श्रीमान मदन श्रीवास्तव (गजलकार) मुख्य अतिथि संगम त्रिपाठी (हिंदी प्रचारिणी महासभा के संस्थापक) विशिष्ट अतिथि गणेश श्रीवास्तव प्यासा (सशक्त हस्ताक्षर के संस्थापक) और सारस्वत अतिथि राजेंद्र सिंह ठाकुर जो कि कटनी के जाने-माने कवि है और उद्घोषक अखिलेश खरे अखिल के द्वारा की गई।

संस्कारधानी की प्रतिष्ठित कवियत्रियों और मात्र शक्तियों ने "काव्यकृति" में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जिसमें सरस्वती वंदना की शुरुआत श्रीमती अर्चना द्विवेदी गुदालु ने की प्रभा बच्चन श्रीवास्तव, कृष्णा राजपूत की ओजपूर्ण प्रस्तुति, मीना भट्ट भूतपूर्व जज, भावना दीक्षित कविता नेमा काव्या , मंजू जायसवाल, बुंदेली कवित्री तरुणा खरे और प्रीति नामदेव भूमिजा ने अपनी कविता से समां बांध दिया। जबलपुर के गणमान्य कवि प्रदीप बकौड़े, अम्लान गुहा नियोगी, कालिदास ताम्रकार, दीपेश दबे, लखनलाल रजक, प्रकाश सिंह ठाकुर, अमर सिंह वर्मा, गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त, सुशील जैन, कृष्ण गोप की कविताओं ने मंच को नई ऊंचाइयां प्रदान की।

"काव्यकृति" समस्त कवियों और श्रोताओं का हृदय से आभारी है और आगे भी और रचनात्मक एवं साहित्यिक कार्यक्रमों और प्रयासों के लिए कटिबद्ध है ।

हिंदी महाकुंभ हिंदी प्रेमियों के दिलों में जगह बनाने में सफल रही - कवि संगम त्रिपाठी 

*देश प्रदेश व संस्कारधानी के हिंदी प्रेमियों ने एक स्वर में राष्ट्रभाषा बनाने हेतु शंखनाद किया*


जबलपुर 

हिंदी महाकुंभ प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा का दिव्य आयोजन हिंदी को हिंदी प्रेमियों के दिलों में जगह बनाने में सफल रही। हिंदी महाकुंभ के भव्य आयोजन में डाॅ धर्म प्रकाश वाजपेई सुप्रसिद्ध सिविल सेवा गुरु अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेई हिंदी संस्थान दिल्ली व प्रेरणाश्रोत प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा, महामहोपाध्याय डॉ हरिशंकर दुबे साहित्य मनीषी, रिंकू विज अध्यक्ष नगर निगम जबलपुर, साध्वी अरुंधति गिरी (पुष्पा बिसेन) राष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली नारायणी साहित्य अकादमी दिल्ली, हेमंत कुमार बिसेन सी ई ओ पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद जबलपुर, डॉ अभिजात कृष्ण त्रिपाठी प्राचार्य जानकी रमण महाविद्यालय जबलपुर, प्रदीप मिश्र अजनबी महासचिव प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा दिल्ली, सीमा शर्मा 'मंजरी' दिल्ली, बिनोद कुमार पांडेय नोएडा, राजेश पाठक प्रवीण मंच मणि, विजय तिवारी किसलय, कविता राय, आशुतोष तिवारी, संतोष नेमा, डॉ सलमा जमाल, रजनी कटारे 'हेम' , सुरेश मिश्र विचित्र, डॉ आशा श्रीवास्तव, उर्मिला श्रीवास्तव, अर्चना मलैया, राजेन्द्र मिश्रा, आशा झा सखी, अभिमन्यु जैन, शरतचंद्र पालन, रजनी चौहान, प्रभा विश्वकर्मा, बालमुकुंद लखेरा, वंदना सोनी 'विनम्र  ' , अर्चना गुदालु, अंजलि शर्मा, उमा मिश्रा, संदीप सक्सेना, श्वेता रैकवार, सरस्वती देवी द्विवेदी, कुंजीपटल चक्रवर्ती निर्झर, अमित अग्रवाल, डॉ प्रशांत मिश्रा, अनुराग दुबे, लखन रजक, आशा मालवीय, प्रीति नामदेव भूमिजा, अश्विनी कुमार पांडेय, शिवम द्विवेदी, प्रतिक्षा सेठी, सुरेश दर्पण, नंद कुमार जैन, महेश छाबड़ा, कैलाश नेमा, राकेश राय सुरेश चक्रवर्ती, अनिल सेन संपादक जबलपुर दर्पण,ललित कोष्टा पत्रकार समाचार पत्र पत्रिका, विनोद गहरवार पत्रकार, अनिल गुप्ता पत्रकार, राजवीर शर्मा वरिष्ठ पत्रकार की आयोजन में गरिमामय उपस्थिति रही।

कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने विज्ञप्ति में बताया कि संस्कारधानी जबलपुर मध्यप्रदेश में हिंदी महाकुंभ को दिव्य व भव्य बनाने में मुख्य संरक्षक - अरविंद तिवारी संरक्षक -  वीरेंद्र कुमार दुबे , श्रीमती राजकुमारी रैकवार राज, ज़ी . एल. जैन, प्रभा बच्चन श्रीवास्तव, श्रीमती मीना भट्ट, अनिल शुक्ला। सलाहकार -  श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ, चंदादेवी स्वर्णकार, अनुराधा दीप्ति गर्ग, तरुणा खरे, बच्चन श्रीवास्तव, ऋषिराज रैकवार, पुरुषोत्तम भट्ट, अमर सिंह वर्मा, अम्लान गुहा नियोगी। कार्यक्रम संयोजक - गणेश श्रीवास्तव प्यासा जबलपुरी संस्थापक सशक्त हस्ताक्षर संस्था। स्वागताध्यक्ष - मदन श्रीवास्तव। स्वागत समिति - रश्मि पांडेय 'शुभि', विवेक शैलार, प्रकाश सिंह ठाकुर। सम्माननीय सदस्य - आशा झा सखी, श्रीमती निर्मला डोंगरे, कालीदास ताम्रकार काली जबलपुरी ने प्रेरणादायक कार्य कर देश व प्रदेश से आए कवि कवयित्री साहित्य मनीषियों व हिंदी प्रेमियों के दिलों में स्थान बनाने में सफल रहे। संस्कारधानी जबलपुर के इतिहास में इस आयोजन को सदैव याद किया जाएगा व हिंदी प्रेमियों को प्रेरणा मिलेगी। हिंदी महाकुंभ के दिव्य व भव्य आयोजन में संस्कारधानी जबलपुर के हिंदी प्रेमियों का जनसैलाब चर्चा का विषय बना हुआ है।

बाल एवं युवा विशेषांक अनुपमा (सब की सहेली) पत्रिका का प्रकाशन अद्वितीय व आकर्षक

*समीक्षा अनुपमा (सब की सहेली)* 

*पंचम अंक - बाल एवं युवा विशेषांक* 


अनुपमा (सब की सहेली) पत्रिका का पंचम अंक जो बाल एवं युवा विशेषांक था। उसका सफल प्रकाशन किया गया। उसमें बहुत से देश विदेश के रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रकाशित करवाई। और जैसा की पंचम अंक बाल एवं युवा विशेषांक का उद्देश्य था उसी के अनुरूप अपने सृजन के माध्यम से इस अंक में बाल एवं युवा विशेष के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है, जो आज के समय में बहुत ही प्रासंगिक है। पुस्तक की भाषा सरल और समझने योग्य है, जो इसे पढ़ने में आसान बनाती है। इसमें दिए गए सुझाव और अनुभव बाल एवं युवा विशेष के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। पुस्तक को पढ़ने से बाल एवं युवा विशेष के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को अपने काम में सुधार करने में मदद मिलती है।

बाल एवं युवा विशेषांक पर आधारित अनुपमा (सब की सहेली) पत्रिका एक अद्वितीय और आकर्षक प्रकाशन है। इस पत्रिका में बाल और युवा संबंधी विभिन्न विषयों पर लेख, कहानियां, कविताएं और चित्र प्रकाशित किए गए हैं। इसमें बाल साहित्य, युवा संबंधी मुद्दे, शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन से संबंधित लेख शामिल हैं। पत्रिका में प्रकाशित लेख और कहानियां न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि शैक्षिक भी हैं। और उन्हें आकर्षक और समझने योग्य तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसमें बाल और युवा लेखकों को भी प्रकाशन का अवसर दिया गया है। इसकी विविधता, उत्कृष्ट संपादन और आकर्षक प्रस्तुति इसे एक अनिवार्य पढ़ने का साधन बनाती है।  यह अंक न केवल बच्चों और युवाओं के लिए उपयोगी है, बल्कि आम पाठकों के लिए भी बेहद रुचिकर और जानकारी पूर्ण है। 

इसकी शुरुआत करने वाली साहित्य के क्षेत्र की एक नवोदित लेखिका सुशी सक्सेना है। और इसके सहयोगी सलाहकार अनुपमा, डौली झा, प्रशान्त श्रीवास्तव और कनिका शर्मा जी हैं। जिनका सफलता के इस मुकाम तक पहुंचाने में इनका अमूल्य सहयोग शामिल है। अनुपमा एक ऐसी पत्रिका है जिसमें नये पुराने छोटे बड़े सभी तरह के कलाकारों को अपनी लेखनी चलाने का अवसर प्रदान किया जाता है और उन्हें सम्मान पत्र से सम्मानित किया जाता है। इसे यूनिक फील पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। 

*अनुपमा (सब की सहेली)*

*संस्थापिका, सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश*

हिंदी महाकुंभ का आयोजन 30 जनवरी 2025 को


जबलपुर 

हिंदी के प्रचार-प्रसार में संकल्पित संस्था प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा दिनांक 30 जनवरी 2025 को हिंदी महाकुंभ का आयोजन कर रही है।हिंदी महाकुंभ कलाविथिका रानी दुर्गावती संग्रहालय भंवरलाल गार्डन में प्रातः 11.00 बजे शुभारंभ किया जाएगा। हिंदी महाकुंभ में देश भर से हिंदी प्रेमी स्वेच्छा से शामिल हो रहे हैं जो कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में एक अहम पहलू है। कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने संस्कारधानी जबलपुर में शामिल होने वाले सभी हिंदी प्रेमियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह देश के इतिहास में सुनहरा अवसर है। उक्ताशय की जानकारी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि अमन रंगेला नागपुर ने दी।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के महासचिव का संस्कारधानी में आत्मीय स्वागत 


जबलपुर

हिंदी महाकुंभ 2025 में शामिल होने प्रदीप मिश्र अजनबी दिल्ली व कवयित्री सीमा शर्मा 'मंजरी' मेरठ का दिनांक 28.01.2025 को जबलपुर संस्कारधानी आगमन हुआ। दिल्ली से पधारे प्रदीप मिश्र अजनबी सारे देश में हिंदी की अलख जगा रहे हैं और हिंदी प्रचार प्रसार हेतु प्रेरणादायक कार्य कर रहे हैं।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के महासचिव प्रदीप मिश्र अजनबी का होटल जश्न रानी दुर्गावती संग्रहालय के पास जबलपुर की कवयित्री सिद्धेश्वरी सराफ ' शीलू ' व श्री संदेश महराज ने अनौपचारिक भेट की और उनका स्वागत किया। इसी तारतम्य में प्रदीप मिश्र अजनबी दिल्ली से मुलाकात करने कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा, गणेश श्रीवास्तव प्यासा जबलपुरी संस्थापक सशक्त हस्ताक्षर संस्था व कवयित्री कविता राय ने सौजन्य भेंट की।

मां गंगा से महाकुंभ प्रयागराज में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की प्रार्थना की- कवि संगम त्रिपाठी 


जबलपुर 

हम अपनी संस्कृति अपनी धार्मिक आस्था के प्रति बहुत आस्था रखते हैं और इसे स्थापित करने में भाषा का ही सहारा है। भाषा ही संस्कृति और सभ्यता को जन जन तक पहुंचा कर स्थापित करती है।

कवि संगम त्रिपाठी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु निरंतर लोगों को जागरूक कर रहे हैं और इस दिशा में दिनांक 30 जनवरी 2025 को मां नर्मदा की पावन धरा के तट पर स्थित संस्कारधानी जबलपुर में हिंदी महाकुंभ का आयोजन कर रहे हैं जिसमें देश व प्रदेश के हिंदी विद्वान कवि कवयित्री व हिंदी प्रेमी भाग ले रहे हैं।

कवि संगम त्रिपाठी ने दिनांक 24.01.2025 को महाकुंभ प्रयागराज में मां गंगा यमुना सरस्वती से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु व परिवार सहित समस्त विश्व के कल्याण हेतु प्रार्थना की।

गणतंत्र का त्योहार है, नव वर्ष का उपहार व माता है संविधान की छब्बीस जनवरी


*छब्बीस जनवरी*

गणतंत्र का त्योहार है छब्बीस जनवरी।

नव वर्ष का उपहार है  छब्बीस जनवरी।


स्वाधीनता दिवस की सगी छोटी बहन है,

माता है संविधान की छब्बीस जनवरी।


लाखों करोड़ों खर्च होते इसकी शान पै,

कुटिया में नंगी भूखी है छब्बीस जनवरी।


ओढ़े हैं रोशनी की चुनर महल इमारत,

दुल्हन सी लग रही है ये छब्बीस जनवरी।


गोदी में खिलाती है अपने रामलला को,

फिर पूजती श्रीराम को छब्बीस जनवरी।


कुर्बानी शहीदों की याद आतीं हैं उसे,

ले-ले के हिचकी रोती है छब्बीस जनवरी।


भाई नहीं रहा कभी बेटा नहीं रहा,

सीमा पै विधवा होती है छब्बीस जनवरी।


हर मुंह को निवाला मिले हर ह्रदय को खुशी,

आओ मनाऐं इस तरह छब्बीस जनवरी।


गीतकार-अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर

संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ का कलश यात्रा के बाद हुआ शुभारंभ


जबलपुर

संस्कारधानी जबलपुर में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन दिनांक 20 जनवरी 2025 से 27 जनवरी 2025 तक आयोजित है। श्रीमद्भागवत कथा परम पूज्य पंडित रुपनारायण शास्त्री के मुखारविंद से श्रवण करने हेतु भक्तजनों से उपस्थिति की अपील की गई है। भगवत्कृपा से आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ भव्य कलश यात्रा से हुआ। जिसमें चैतन्य सिटी के माताओं बहनों व गणमान्यजनों ने भाग लिया। श्रीमद्भागवत कथा के मुख्य यजमान विजय कुमार मिश्रा व श्रीमती विमला मिश्रा है।

कवि संगम त्रिपाठी ने बताया कि संस्कारधानी जबलपुर चैतन्य सिटी मंडला रोड तिलहरी में आयोजित कथा 20 जनवरी 2025 से 27 जनवरी 2025 तक दोपहर दो बजे से हरिइच्छा तक आयोजित की गई है। विकास कुमार मिश्रा - सोनम मिश्रा, विनित मिश्रा - सुष्मिता मिश्रा, वेदांश मिश्रा ने अपील की है कि भक्तगण अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर श्रीमद्भागवत कथा का लाभ लें।

सशक्त हस्ताक्षर की 32 वीं काव्य गोष्ठी संपन्न हुई


जबलपुर 

सशक्त हस्ताक्षर की 32 वीं काव्य गोष्ठी श्री जानकी रमण महाविद्यालय में सानंद सम्पन्न हुई ၊ संस्थापक गणेश श्रीवास्तव प्यासा ने सभी अतिथियों, साहित्यकारों का अपने शब्द सुमनों से वंदन अभिनंदन किया ၊ सरस्वती वंदना हिंदी-बुंदेली की कवयित्री तरूणा खरे ने की ၊

मुख्य अतिथि कवि, व्यंग्यकार म. प्र. साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित सुरेश मिश्र विचित्र, अध्यक्षता महामहोपाध्याय आचार्य   डॉ. हरिशंकर दुबे, विशिष्ट अतिथि मंचीय कवयित्री, उपन्यासकार,म. प्र. साहित्य अकादमी से पुरुष्कृत श्रीमती वंदना सोनी विनम्र, पूर्णिका के जनक एड. डॉ. सलपनाथ यादव, वरिष्ठ समाजसेवक रवि प्रकाश श्रीवास्तव,वरिष्ठ साहित्यकार शरदचंद पालन, म. प्र साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित बुंदेली के सशक्त हस्ताक्षर, अखिल भारतीय सम्मेलनों के सहभागी राज सागरी,पूर्व जज मीना भट्ट, वरिष्ठ साहित्यकार सुशील श्रीवास्तव, सारस्वत अतिथि मंचमणि राजेश पाठक प्रवीण,मंगलभाव संस्कारधानी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार अभिमन्यु जैन,पूर्व प्राचार्य यशोवर्धन पाठक, छंदशास्त्र में पारंगत विजय तिवारी किसलय, सिद्धेश्वरी सराफ शीलू की गरिमामय उपस्थिति रही ၊

इस अवसर पर सशक्त हस्ताक्षर द्वारा सुरेश मिश्र विचित्र,वंदना सोनी विनम्र, सलपनाथ यादव, रवि प्रकाश श्रीवास्तव का शाल, श्रीफल, मानपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया ၊ पाथेय द्वारा भी गाडरवारा से पधारे हास्य व्यंग्य के कवि विजय बेशर्म को सम्मानित किया गया ၊

गोष्ठी का शुभारंभ कछार गाँव से पधारे संगठन सचिव अखिलेश खरे अखिल ने दोहों से किया ၊ म. प्र साहित्य अकादमी से अभिनंदित बुंदेली के प्रसिद्ध कवि दीनदयाल तिवारी बेताल, महासचिव जी. एल. जैन,प्रकाश सिंह ठाकुर,अमर सिंह वर्मा, बुंदेली-हिंदी के प्रसिद्ध कवि, आकाशवाणी में गम्मत के सूत्रधार, कम्पेयर लखन रजक, संदीप खरे युवराज,हिंदी के भक्त व हिंदी कुम्भ के आयोजक कवि संगम त्रिपाठी, तरुणा खरे,चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव, आदर्श श्रीवास्तव, संतोष श्रीवास्तव, अरूण शुक्ल,युवा कवि विवेक कुमार चौकसे ने कन्या भ्रूण हत्या पर मार्मिक गीत प्रस्तुत किया। इति प्रकाश श्रीवास्तव, कालीदास ताम्रकार काली, कोकिल कण्ठा कृष्णा राजपूत ने अपनी प्रस्तुती से सभी को भाव-विभोर कर दिया ၊ आशा मालवीय आशा, आनंद शर्मा,डॉ. यू. बी. तिवारी मधुकर, योगेन्द्र मालवीय, ढीमर खेड़ा आये बालमुकुंद  लखेरा ने मंच को नयी ऊँचाईयाँ दी। मंचस्थ अतिथियों ने भी काव्य पाठ कर तालियाँ बटोरी ၊ यू. एस. दुबे,पूर्व जज पुरुषोत्तम भट्ट,अशोक कुमार जैन की गरिमामय उपस्थिति रही ၊ संचालन गणेश श्रीवास्तव प्यासा, आभार प्रदर्शन अध्यक्ष मदन श्रीवास्तव ने किया।

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