इप्टा इंदौर की नाट्य प्रस्तुति ने दिल्ली के दर्शकों का दिल जीता, जवाहर भवन में गूंजे आजादी के तराने

इप्टा इंदौर की नाट्य प्रस्तुति ने दिल्ली के दर्शकों का दिल जीता, जवाहर भवन में गूंजे आजादी के तराने

*आजादी के आंदोलन की प्रमुख घटनाओं को जोड़कर लिखी पटकथा*


इंदौर

इप्टा इंदौर की नाट्य प्रस्तुति, आजादी के तराने का सफल मंचन इंदौर के अभिनव कला समाज सभागृह में संपन्न होने के बाद इसकी प्रस्तुति दिल्ली के जवाहर भवन सभागृह में भी हुई। आजादी के आंदोलन की प्रमुख घटनाओं को जोड़कर लिखी पटकथा को नृत्य, गीत और संगीत से पिरोकर रोचक तरीके से हुई प्रस्तुति को देश के जाने-माने प्रबुद्ध जनों ने सराहा।

               उल्लेखनीय है कि भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ के अवसर पर स्टेट प्रेस क्लब इंदौर के सहयोग से अभिनव कला समाज सभागृह में तराना ए आजादी को प्रस्तुत किया गया था। यही नाटक दो दिन बाद दिल्ली में भारतीय महिला फेडरेशन, बालिगा ट्रस्ट और अनहद के सहयोग से इंदौर इप्टा के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया। 

               देश की आजादी के लिए दशकों तक विभिन्न स्वरूप में संघर्ष चलता रहा था। स्वतंत्रता संग्राम की अनगिनत घटनाओं में से प्रमुख तीन संघर्ष जो महाराष्ट्र के चिमूर ,उत्तर प्रदेश के बलिया और बंगाल के मिदनापुर में हुए थे, उनके माध्यम से आजादी के मायने और महत्व को नाटक में समझने का प्रयास किया गया। यह नाट्य प्रस्तुति आम लोगों की ताकत और क्षमता के बारे में विश्वास जगाती है। परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न हो, जनता उनके सामने न उस काल में झुकी थी न वर्तमान में झुकेगी। चिमूर, बलिया, मिदनापुर और सतारा उस गौरवशाली इतिहास के पन्नों की याद दिलाते हैं जिसमें आम जन सदियों की गुलामी को सहते रहने के बजाय चंद दिनों की आजाद जिंदगी को चुना। नाटक में नई पीढ़ी को याद दिलाने के मकसद को सामने रखकर यह बताने का प्रयास किया गया कि आजादी अनगिनत लोगों के बलिदान और खून पसीने से हासिल हुई है। इसे हर हाल में बनाए रखने की जरूरत है।

               8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो के आव्हान के साथ देशवासियों को करो या मरो के लिए प्रेरित किया था। इसी का असर था कि चिमूर, बलिया और मिदनापुर में जनता ने ब्रिटिश शासन को उखाड़ कर अपनी सरकार बना ली। हाल कि ब्रिटिश सरकार के दमन ने इन प्रयासों को कुचल दिया लेकिन इसकी गूंज इतनी विस्तृत थी कि आखिरकार अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।

                प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा 15 अगस्त 1947 के दिन जन्मे बच्चों के नाम लिखे खत को माध्यम बनाकर पटकथा लेखक, निर्देशक ने इतिहास की पुनरावृत्ति का प्रयास किया।

 *दर्शकों की प्रतिक्रिया*

                लगभग सवा घंटे के नाटक की प्रस्तुति को प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने  आकर्षक बताते हुए नाटक से जुड़े सभी साथियों को बधाई दी। 

             समाचार चैनल एनडीटीवी के पत्रकार के के त्रिपाठी ने तराना ए आजादी की पटकथा के लेखकों को बधाई देते हुए कहा कि हर संवाद में गहन शोध, संवेदनशीलता और इतिहास के प्रति सम्मान भरा हुआ है। नाटक ने उन पलों को आवाज दी है जिन्हें मुख्य धारा के इतिहास में कम जगह मिलती है। लेकिन उन्हें जानना जरूरी है। मंच पर आपके शब्दों को जीवंत होते देखना बेहद खास अनुभव है।

               इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू )के पूर्व वाइस चांसलर पंकज निरत ने कहा कि नाटक देखकर बहुत आनंद आया। मौजूदा समय में इन ऐतिहासिक घटनाओं को याद करना और उनका नाट्य रूपांतरण सुखद भी था और आश्वस्त करने वाला भी।

              वरिष्ठ अर्थशास्त्री शांता वेंकटरमन ने नाट्य प्रस्तुति पर बधाई देते हुए कहा कि पटकथा लेखन विशेष कला है, जो इस नाटक में प्रदर्शित हुई है। सभी कलाकारों और टीम के साथियों ने इसे एक जुनून के साथ प्रदर्शित किया है। उन्होंने अपेक्षा व्यक्ति की ऐसी प्रस्तुतियां भविष्य में भी होती रहेगी।

             पद्मश्री डॉक्टर सईदा हमीद के अनुसार नाटक की सादगी और संप्रेषणियता ऐसी है की दिल्ली के लोग इससे सीख सकते हैं। 

               इस नाट्य प्रस्तुति को देखने के लिए प्रमुख रूप से जोहरा सहगल की पुत्री किरण सहगल, इप्टा संगठन के  संस्थापक नेमीचंद जैन की पुत्री और नेशनल स्कूल आफ ड्रामा की पूर्व निदेशक कीर्ति जैन, सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के प्रमुख सेनानी शाहनवाज ढिल्लों की पड़पोती.... भारतीय महिला फेडरेशन की कामरेड एनी राजा, किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन क्षीर सागर, आप पार्टी के पूर्व विधायक पंकज पुष्कर के अलावा अरुणा आसफ अली की सहयोगी रंजन रे स्वास्थ्यगत परेशानियां के बावजूद व्हीलचेयर पर नाटक देखना आई।

               जया मेहता की परिकल्पना को पटकथा का स्वरूप विनीत तिवारी ने दिया। फ्लोरा बोस ने अपने सहयोगी गुलरेज खान और सारिका श्रीवास्तव के माध्यम से इसे संवारा और सजाया।

                मंच पर नाट्य प्रस्तुति एवं पर्दे के पीछे की गतिविधियों में मधुवेद, जय श्री भट्ट, गुलरेज खान, हरनाम सिंह, राशि मालवीय, पी लक्ष्मी, भास्कर मिश्रा, शुभम प्रजापति, राघवेंद्र तिवारी, गबरू गोविंदा, गीतांजलि सांवरिया, उजान बनर्जी, कत्यूशा बनर्जी, प्रज्ञा सहाय, लक्ष्य नगर, शाहरुख, शब्बीर बोहरा, निर्मल जैन शामिल थे। अतिथि कलाकार के रूप में इप्टा दिल्ली की वर्षा ने अरुणा आसफ अली की भूमिका निभाई।


 हरनाम सिंह

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