24 घंटे शव वाहन की सेवा का दावा हुआ खोखला साबित, परिजन इंतजार करते रह गए

24 घंटे शव वाहन की सेवा का दावा हुआ खोखला साबित, परिजन इंतजार करते रह गए


शहडोल

24 घंटे निःशुल्क शव वाहन सेवा का बड़ा-बड़ा दावा करने वाला पोस्टर खोखली साबित हो रही है। ग्राम कुआंरा, सोहागपुर निवासी अगस्या कुशवाहा पति श्यामकरण कुशवाहा की मौत जिला अस्पताल शहडोल में हो गई। डॉक्टरों ने सुबह करीब 10:40 बजे मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया। इसके बाद शव वाहन से शव गांव ले जाने की प्रक्रिया शुरू होनी थी। लेकिन सरकारी दावों की हकीकत खुलते देर न लगी।

परिजनों ने शव वाहन की मांग की तो उन्हें बार-बार टाल दिया गया। अस्पताल परिसर में खड़ी एंबुलेंस पर साफ लिखा है  “शासकीय शव वाहन सेवा, 24 घंटे निःशुल्क सेवा” और नीचे यह भी कि अधिक जानकारी के लिए जिला अस्पताल में संपर्क करें। लेकिन परिजन घंटों अस्पताल परिसर में शव लेकर बैठे रहे। दोपहर की तपती धूप, भूखे-प्यासे परिजन और घर पर इंतजार कर रहे रिश्तेदारों की बेकरारी  यह सब मिलकर हालात को और मार्मिक बना रहे थे।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेश मिश्रा से जब परिजनों ने और हमारे प्रतिनिधि ने बात की तो उन्होंने कहा  “व्यवस्था तुरंत कर दी जाएगी।” इसी तरह सिविल सर्जन डॉ. शिल्पी सराफ ने आधे घंटे में शव वाहन की सुविधा उपलब्ध कराने का भरोसा दिया। लेकिन वक्त बीतता गया, भरोसे की बातें खोखली साबित होती गईं और गरीब परिवार की पीड़ा गहराती चली गई। जिला अस्पताल के बाहर खड़ी शव वाहन सेवा की एंबुलेंस मानो शासन-प्रशासन की नाकामी पर हंस रही थी। पोस्टर पर “24 घंटे, सातों दिन निःशुल्क सेवा” का दावा और ठीक सामने बेसहारा परिवार का दर्द  यह तस्वीर प्रशासन की संवेदनहीनता की सच्चाई बयान कर रही थी। जिला मुख्यालय का यह हाल है बातों बाक़ी जगह कैसा होता होगा।

गांव से आए परिजनों का कहना था कि मौत ने पहले ही उन्हें तोड़ दिया, अब शव वाहन न मिलने से वे दोगुना आहत हो गए हैं। घर पर बाकी रिश्तेदार शव का इंतजार कर रहे थे, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही ने उन्हें तड़पा दिया। यह स्थिति बताती है कि गरीबों को न जीते जी सुविधाएं मिलती हैं और न मरने के बाद सम्मान। 24 घंटे शव वाहन सेवा की सुविधा के नाम पर बजट खर्च होता है, एंबुलेंस पर बड़े-बड़े नारे लिखे जाते हैं, लेकिन जब कोई ग्रामीण परिवार इसका लाभ लेना चाहता है, तो उसे अपमान और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।

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