हीमोग्लोबिन की जांच में 2 अलग-अलग रिपोर्ट, 7 ग्राम का आया अंतर, जांच पर खड़े हुए सवाल
शहडोल
जिला चिकित्सालय में पैथालॉजी विभाग की लापरवाही से एक टीबी मरीज की हीमोग्लोबिन रिपोर्ट में चौंकाने वाला अंतर सामने आया है। मरीज का हीमोग्लोबिन एक दिन में 2.0 ग्राम से बढ़कर 9.1 ग्राम हो गया, जिससे चिकित्सक भी हैरान रह गए। यह मामला न केवल स्वास्थ्य सेवा में गंभीरता की कमी को दर्शाता है, बल्कि इससे मरीजों के जीवन को भी खतरा पैदा होता है। 22 वर्षीय युवक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे। चिकित्सकों ने लक्षणों के आधार पर ब्लड जांच के लिए निर्देश दिए। पहली जांच रिपोर्ट में मरीज का हीमोग्लोबिन 2.0 ग्राम दर्शाया गया। यह सुनकर डॉक्टरों ने तुरंत चिंता जताई कि इतने कम हीमोग्लोबिन वाला व्यक्ति सामान्य गतिविधियाँ कैसे कर सकता है। इसके बाद, उन्होंने फिर से सीबीसी जांच के लिए कहा। एक दिन दूसरी रिपोर्ट में हीमोग्लोबिन 9.1 ग्राम पाया गया, जिससे चिकित्सकों के सामने एक नया सवाल खड़ा हो गया कि कौनसी रिपोर्ट सही है।
इस मामले में सिविल सर्जन डॉ. शिल्पी सराफ ने कहा, हम पूरी तरह सुनिश्चित नहीं हैं कि यह गलती कहां से हुई है। शायद यह नर्सिंग स्टॉफ की लापरवाही हो या सेंपल लेने वाली टीम की। हम सभी पहलुओं की जांच कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस घटना के साथ-साथ, जिला चिकित्सालय में अन्य गड़बड़ियों का भी खुलासा हुआ है। हाल ही में एक सिकल सेल एनीमिया के मरीज को गलत ब्लड समूह का ट्रांसफ्यूजन दिया गया था। इस मामले में अस्पताल ने दावा किया कि चिट चिपकाने में त्रुटि हुई थी। मौजूदा समय में, ब्लड जांच का कार्य एक प्राइवेट कंपनी, आउड सार्स, द्वारा किया जा रहा है, जिसके लिए लाखों रुपये का भुगतान अस्पताल द्वारा किया जा रहा है।
स्थानीय नागरिकों और स्वास्थ्य सेवाओं में विश्वास रखने वालों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि जांच की गुणवत्ता में गिरावट आने से मरीजों की स्वास्थ्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इस गंभीर लापरवाही ने कई सवाल खड़े किए हैं, जैसे कि क्या स्वास्थ्य विभाग की निगरानी प्रणाली प्रभावी है? क्या प्राइवेट ठेकेदारों की नियुक्ति में पारदर्शिता बरती जाती है?