संस्कार लॉ कॉलेज में “कुलगुरू की पाठशाला” संपन्न, योग, विज्ञान, अनुशासन और ईश्वरत्व पर कुलगुरू का प्रेरक व्याख्यान

संस्कार लॉ कॉलेज में “कुलगुरू की पाठशाला” संपन्न, योग, विज्ञान, अनुशासन और ईश्वरत्व पर कुलगुरू का प्रेरक व्याख्यान

*आचार्य वह है, जिसको किसी का भय ना हो  शिक्षक दिशा देने वाले दीपक होते हैं*


अनूपपुर

संस्कार लॉ कॉलेज में “कुलगुरू की पाठशाला” कार्यक्रम का आयोजन अत्यंत गरिमामय वातावरण में किया गया। इसकी शुरूआत वृक्षारोपण से की गई कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि पंडित शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय, शहडोल के कुलगुरू प्रो. रामशंकर थे, जबकि प्रधानमंत्री एक्सीलेंस कॉलेज, अनूपपुर के प्राचार्य प्रो. अनिल सक्सेना विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का प्रारंभ  सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत के मधुर गायन से हुआ । तत्पश्चात संस्कार कॉलेज के संचालक नवोद चपरा ने स्वागत भाषण देते हुए कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला और कहा कि – “भारतीय ज्ञान परंपरा संवाद पर आधारित रही है, और आज का यह आयोजन विद्यार्थियों को कुलगुरू जी के अनुभवों से सीखने का अवसर प्रदान करेगा।” अपने विस्तृत उद्बोधन में कुलगुरू प्रो. रामशंकर ने “योग, विज्ञान, आचार्य, अनुशासन, नश्वरता और ईश्वरत्व” जैसे गहन विषयों पर अत्यंत सरल और प्रेरक शब्दों में प्रकाश डाला। 

उन्होंने कहा कि —“योग केवल आसन नहीं, जीवन की एक विधा है। यह हमें शरीर, मन और आत्मा के संतुलन का मार्ग दिखाता है। जब हम अपने भीतर एकाग्रता लाते हैं, तभी हम सच्चे अर्थों में शिक्षित होते हैं। योग हमें यह सिखाता है कि ज्ञान केवल पुस्तकों में नहीं, बल्कि आत्मानुशासन और संतुलन में निहित है।”उन्होंने विज्ञान को आधुनिक जीवन की रीढ़ बताते हुए कहा —“विज्ञान हमें सोचने, प्रश्न करने और खोजने की शक्ति देता है। बिना जिज्ञासा के न तो विज्ञान संभव है, न ही जीवन। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे केवल परीक्षाओं के लिए न पढ़ें, बल्कि समाज और मानवता के कल्याण के लिए विज्ञान का उपयोग करें।”आचार्य और अनुशासन पर बोलते हुए कुलगुरू ने कहा —“आचार्य वह है  जिसको किसी का भय  ना हो और जिससे किसी को भय ना हो, वह  केवल शिक्षक नहीं, बल्कि दिशा देने वाले दीपक होते हैं। वे मार्ग दिखाते हैं, लेकिन चलना विद्यार्थी को ही होता है। अनुशासन जीवन की आत्मा है — जो व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासन रखता है, वही सच्चे अर्थों में स्वतंत्र भी होता है।”उन्होंने नश्वरता और ईश्वरत्व के दार्शनिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा —“यह संसार परिवर्तनशील है, सब कुछ नश्वर है — लेकिन हमारे कर्म और विचार ही हमें ईश्वरत्व की ओर ले जाते हैं। मनुष्य तब तक अधूरा है जब तक वह अपने भीतर के ईश्वर को नहीं पहचानता। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि आत्मबोध है।”

कुलगुरू ने विद्यार्थियों से कहा कि वे जीवन में सफलता को केवल पद या धन से न मापें, बल्कि अपने व्यवहार, विनम्रता और समाज सेवा से अपनी पहचान बनाएं। कार्यक्रम का संचालन  महाविद्यालय फैकल्टी  सरिता चौरसिया   ने किया तथा आभार प्रदर्शन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ आनन्द कुमार द्विवेदी द्वारा किया गया। इस अवसर पर कॉलेज के विद्यासागर  माझी ,रविन्द्र कुमार यादव. सरिता चौरसिया , वत्सला श्रीवास्तव, अभय शर्मा, पल्लव मिश्रा , राम कुमार पारस ,राम नरेश केवट, लखन लाल केवट,. रवि कुमार केवट , शिवांगी गुप्ता,सुनील कुशवाहा ,कमलेश कहार, श्याम बाई कहार ,भुवन सिंह, विकास बनोधिया, विद्यार्थीगण और अतिथि बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

कार्यक्रम के अंत में सभी ने यह अनुभव किया कि “कुलगुरू की पाठशाला” वास्तव में एक बौद्धिक और आध्यात्मिक संगोष्ठी बन गई, जिसने विद्यार्थियों में ज्ञान, अनुशासन, योग और ईश्वरत्व के प्रति नई चेतना का संचार किया।

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