वन विभाग की आपत्ति से गावों को बिजली और खेतों को पानी पहुंचाना हुआ कठिन

वन विभाग की आपत्ति से गावों को बिजली और खेतों को पानी पहुंचाना हुआ कठिन

*अंधकार के खिलाफ आदिवासियों का युद्ध*


उमरिया

जिले के पाली विकास खंड के चांदपुर ग्राम पंचायत के बाघन्नारा  एक राजस्व गाँव है जहाँ पर बहुतायत संख्या में बैगा समुदाय के लोग निवास रत है, लेकिन वन विभाग की दखलंदाजी के चलते इस गाँव में आज भी बिजली पहुचना आसमान से तारे तोडकर लाने के समान है। गाँव के बैगा समुदाय के लोग और ग्राम पंचायत के सरपंच लगातार गाँव को अंधकार से मुक्ति दिलाने के अथक प्रयास में लगे हुए हैं और वन विभाग के वन मंडलाधिकारी हर बार एक नयी पेंच फंसाकर मामले को जहाँ से तहां पहुंचा देते हैं।

मध्यप्रदेश के गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए केन्द्र के बहु प्रशंसित सरकार ने वर्ष 2015 में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की गयी थी, जिसका उद्देश्य बिजली विहीन गांवों में बिजली पहुचाना था, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय जी की यह योजना को इस गाँव के दीन - हीन दिखाई नहीं दिये, इसके बाद वर्ष 2017 में सौभाग्य योजना लागू कर देश के सभी घरों तक बिजली पहुंचाने के लिए चलायी गयी, लेकिन यह योजना भी इन दीन -हीन बैगाओ के दूर्भाग्य के सामने यह सौभाग्य योजना भी दुर्भाग्य में बदल गयी है। इसके साथ ही इसी वर्ष  प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) यह भी केन्द्र सरकार के व्दारा संचालित कर गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचाने के उद्देश्य से लागू किया गया था । मालुम हो की इसके अलावा मुख्यमंत्री ग्राम सड़क विद्धूती करण योजना वर्ष 2016 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी लागू कर गाँव गाँव बिजली पहुंचाने का काम अपने एजेण्डा में लेकर काम किया, किन्तु पाली विकास खंड के आदिवासी बैगा बाहुल्य गाँवों बाघन्नारा, गांधी ग्राम सांस, चिनकी, आदि गांवों में आज भी अंधेरे से जुझ रहे हैं। यद्यपि इन योजनाओं के तहत मध्यप्रदेश के गाँव गाँव बिजली पहुंचाने के लिए कई कार्य किये गए हैं, जिसके तहत गाँव गाँव बिजली लाइने पहुंचाने, नये बिजली घर बनाने, और गरीबों तक बिजली पहुंचाने का काम हुआ है, परन्तु उमरिया जिले के आदिवासियों के किस्मत में वन विभाग ने जो कील ठोकी है उससे उन गाँवों के आदिवासियों की तो दुर्दशा है ही उमरिया जिले के प्रशासनिक अधिकारी भी वन विभाग के सामने नत मस्तक होकर आदिवासियों को उनके हालात में जीने को छोड़ दिया है। 

यह वही पाली विकास खंड है जहाँ पर एक वर्ष के अन्दर आधे दर्जन से अधिक प्रायवेट कंपनिया कोल उत्खनन के लिए वनो के अन्दर और बाहर अपना जाल फैला रही है, उनके लिए  वन विभाग की तरह से न तो किसी तरह की चिंताये जतायी गयी, तब वन कटने की बाधा सामने आयी, न वन्य प्राणियों के जीवन पर खतरा आया और न ही अन्य पर्यावरणीय मुद्दे सामने आये, लेकिन गाँव में बिजली पहुंचाने के लिए इलेक्ट्रिकल डिस्टीब्यूशन सिस्टम का हवाला देकर आपत्ति दर्ज कर आदिवासियों को मूलभूत प्रकाश जैसे अधिकार से वंचित किया जा रहा है। वन विभाग के इस दोहरे मापदंड का कारण तो साफ साफ समझ में आता है, पर जिनके पास खुद के तन ढकने को कपड़े न हो, पेट भरने के लिए सरकार की पांच किलो राशन के लिए आश्रित हो वह वन विभाग के आला अधिकारियों की मुराद तो पूरी नहीं ही कर सकते।

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