आस्था, अध्यात्म व वैदिक मंत्रों से गुंजायमान हुई उद्गम स्थली, काली माता का निकला भव्य जुलूस

आस्था, अध्यात्म व वैदिक मंत्रों से गुंजायमान हुई उद्गम स्थली, काली माता का निकला भव्य जुलूस


अनूपपुर

जगत जननी मां नर्मदा की पावन उद्गम स्थली अमरकंटक में शारदीय नवरात्र की अष्टमी तिथि पर विशेष हवन का आयोजन किया गया। यह धार्मिक अनुष्ठान सदियों से चली आ रही प्राचीन परंपरा का हिस्सा है, जिसने संपूर्ण मंदिर परिसर को आस्था और अध्यात्म के रंग में रंग दिया।

नर्मदा मंदिर के पुजारियों द्वारा किए गए इस विशेष हवन के दौरान वैदिक मंत्रों के शुद्ध और सस्वर उच्चारण से पूरा मंदिर परिसर गुंजायमान हो उठा। वातावरण में अलौकिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ। यह हवन आदि काल से चली आ रही परंपरा का निर्वाह है, जो शारदीय नवरात्र के दौरान मां नर्मदा की विशेष आराधना और क्षेत्र की खुशहाली के लिए आयोजित किया जाता है।

इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय भक्तों और श्रद्धालुओं ने भाग लिया। श्रद्धालुओं ने नर्मदा कुंड और हवन स्थल पर माथा टेककर आशीर्वाद प्राप्त किया। हवन के पश्चात श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया। इस धार्मिक आयोजन ने अमरकंटक की आध्यात्मिक महत्ता को एक बार फिर स्थापित किया और श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय अनुभव बना।

*आस्था के साथ निकली काली माता का भव्य जुलूस*

अनूपपुर जिले के बदरा में दशहरे के शुभ अवसर पर बदरा का माहौल एक बार फिर शक्ति, भक्ति और उत्साह से गूंज उठेगा। महामाया मंदिर परिसर से ठाकुर बाबा तक निकले वाला काली माता का विशाल और परंपरागत जुलूस इस वर्ष भी श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण बनेगा।

जुलूस में माँ काली की झांकी के साथ अन्य देवी-देवताओं के रूप भी सजीव रूप में दिखाई देंगे। ढोल–नगाड़ों की थाप, मंत्रोच्चार, पारंपरिक वेशभूषा और आकर्षक झांकियाँ माहौल को अलौकिक बना देती हैं। ग्रामीण अंचलों से उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ इस आयोजन की भव्यता को और बढ़ा देती है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक हर वर्ग के लोग जुलूस में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। रंग-बिरंगे वेशभूषाओं में सजे ग्रामीण जुलूस को और जीवंत और आकर्षक बना देते हैं। काली माता का तेजस्वी स्वरूप श्रद्धालुओं को भक्ति और रोमांच की अद्वितीय अनुभूति कराता है।

स्थानीय मंदिर समिति और ग्रामीण मिलकर जुलूस की तैयारियों में जुटे हैं। सुरक्षा, रोशनी और ध्वनि व्यवस्था के विशेष इंतजाम किए गए हैं, ताकि यह ऐतिहासिक आयोजन सुरक्षित और यादगार बने। यह जुलूस केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि बदरा की अमिट सांस्कृतिक पहचान और लोकजीवन की परंपरा है, जो हर वर्ष दशहरे पर हजारों श्रद्धालुओं के हृदयों में भक्ति, उल्लास और रोमांच की अनुभूति कराता है।

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