पवित्र नगरी में पितृपक्ष पर नर्मदा तट व आरंडी संगम पर श्रद्धालु कर रहे पितरो का तर्पण
अनूपपुर
माँ नर्मदा की अविरल धारा जहाँ धरती पर उतरकर समस्त प्राणियों को जीवनदान देती है, वहीं उसकी पुण्यधरा अमरकंटक में इन दिनों पितृपक्ष का आध्यात्मिक उल्लास छाया हुआ है। श्रद्धालुजन नर्मदा उद्गम कुंड एवं आरंडी संगम तट पर अपने पितरों की स्मृति में जल तर्पण कर रहे हैं। भाद्र पूर्णिमा से आरंभ हुआ यह पुण्यकाल अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या (पितृमोक्ष अमावस्या) तक चलता रहेगा। इस दौरान लोग न केवल जल तर्पण करते हैं, बल्कि पुण्यतिथियों पर विशेष पूजन-अर्चन और अनुष्ठान भी संपन्न करते हैं।
सनातन धर्म में पितृपक्ष का गहरा महत्व है। यह केवल पिंडदान या तर्पण का अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति आभार और स्मरण का पर्व है। प्रातःकाल स्नान के बाद श्रद्धालु तट पर पहुँचकर मंत्रोच्चार के बीच आचमन करते हैं और नर्मदा जल से अपने पितरों को तर्पण अर्पित करते हैं। घाटों पर “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” का उच्चारण गूंज रहा है। महिलाएँ दीप प्रज्वलित कर पुष्प व अक्षत अर्पित कर रही हैं।पुरुष श्रद्धालु जलधारा में खड़े होकर अपने पूर्वजों के नाम तर्पण कर रहे हैं।भक्तों का विश्वास है कि यहाँ किया गया तर्पण पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करता है।
स्थानीय विद्वान पंडित धनेश द्विवेदी बंदे महाराज एवं उमेश द्विवेदी बंटी महाराज का कहना है, की “माँ नर्मदा के पावन तट पर तर्पण करने से पितृदेव प्रसन्न होते हैं और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अमरकंटक की यह भूमि सिद्धपीठ मानी जाती है, यहाँ किया गया पिंडदान एवं जल तर्पण अक्षय फलदायी है।”
श्रद्धालुओं ने बताया कि“नर्मदा तट पर जल अर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में शांति का संचार होता है। नर्मदा उद्गम कुंड पर सुबह से अनुष्ठान का क्रम जारी। आरंडी संगम पर दूर-दराज़ से श्रद्धालुगण आ रहे है। ऐसी मान्यता है कि आरंडी संगम तट पर किया गया पिंडदान और जल तर्पण गया जी के समान फल देता है। प्रशासन ने घाटों पर साफ-सफाई और श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु विशेष व्यवस्था की है।।