बॉलीवुड फ़िल्मों के विख्यात पटकथा लेखक दीपक किंगरानी को संवाद लेखन पर मिलेगा “नेशनल अवॉर्ड”

बॉलीवुड फ़िल्मों के विख्यात पटकथा लेखक दीपक किंगरानी को संवाद लेखन पर मिलेगा “नेशनल अवॉर्ड” 

*दीपक पर फिल्मों का भूत सवार था, कई फिल्मों व वेब सीरीज़ में काम किया*


अमेरिका 

दीपक किंगरानी, छत्तीसगढ़ के भाटापारा के रहने वाले हैं और उनका जन्म वहीं पर एक सिंधी परिवार में हुआ। उनके पिता पत्रकार थे और उनके यहाँ पोहे का व्यवसाय होता था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं पर हुई, आगे की पढ़ाई उन्होंने रायपुर से तथा इंजीनियरिंग ग्वालियर के एम आई टी एस कॉलेज से की। वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। ग्वालियर कॉलेज में ही कुणाल( हमारा पुत्र ) से मेल-जोल हुआ जो गहरी दोस्ती में बदल गया ।

               बचपन से ही दीपक को फिल्में बहुत आकर्षित करती थीं। पाठ्य-पुस्तकों में अध्ययन के दौरान पुस्तक में लिखे हुए अक्षर ग़ायब हो जाते और उसकी जगह किसी हीरो का चित्र दिखाई देने लगता और धीरे-धीरे वह धुंधला पड़ जाता, जब दोबारा स्पष्ट होता तो उस हीरो की जगह दीपक को अपना चित्र दिखाई देने लगता और वह टकटकी लगाए उसे ही देखता रहता, जब बगल वाला दोस्त चिकोटी काटता और कहता “ सो रहा है क्या, इतनी देर से किताब का पन्ना ही नहीं पलट रहा “। दीपक कोई जवाब नहीं देता और हल्के से मुस्कुरा भर देता। धीरे-धीरे दीपक पर फ़िल्मों का भूत सवार होने लगा और कॉलेज के दिनों में वह परवान चढ़ गया।ग्वालियर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जब दोस्त उनसे पूछते कि “इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग” के बाद तू क्या करेगा” तो जवाब मिलता कि “फ़िल्मों में हीरो बनूँगा”। दोस्त खी खी करके हँसने लगते, कोई मुँह पर हाथ रख कर व्यंग्यात्मक हँसी हँसता तो कोई अट्टहास करता। दीपक अपने कानों पर हाथ रखकर आँखें बंद कर लेता। कॉलेज में एक दिन किसी सीनियर ने किसी बात पर नाराज़ होकर दीपक के बाल पकड़ लिए, दीपक ने कहा “सर आप को जो भी करना हो करिए पर मेरे बाल छोड़ दीजिए प्लीज़”। सीनियर ने उसकी बात को अनसुना करते हुए बालों को और ज़ोर से खींचा, अब तो दीपक की सहनशक्ति जवाब दे गई, उसने ज़ोर से चिल्ला कर कहा “छोड़ो मेरे बाल, बालों को कुछ हो गया तो मैं हीरो कैसे बनूँगा”। यह सुनकर सीनियर ने व्यंग्यात्मक लहजे में हँसते हुए कहा “हीरोssssहुंह”। इतना सुनते ही दीपक ने, जिसका डील-डौल काफी अच्छा था, सीनियर को उठाकर पटक दिया। अब तो कॉलेज में कुहराम मच गया। कोई जूनियर अपने सीनियर के साथ ऐसा कैसे कर सकता था। कुछ सीनियर्स ने मध्यस्थता करते हुए इस मामले को निपटाया। कॉलेज में पढ़ते वक़्त दीपक को कभी-कभी पुस्तकों के अक्षर धूमिल होते दिखते और फिर किसी हीरो का चेहरा उभर आता, बहुत यत्न करने पर ही वह चेहरा ग़ायब होता पाता और अक्षर वापस आ पाते। यह क्रम थोड़े-थोड़े दिनों पर चलता ही रहता। दीपक ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद। फ़िल्मों की ओर दौड़ लगाई पर क्या वहाँ काम मिलना इतना आसान था? हाँ कुछ लोगों से मुलाकात पर उन्हें यह आश्वासन मिला कि उन्हें फ़िल्म इंस्टीट्यूट में दाख़िला ज़रूर मिल जाएगा पर इसके पहले कि वह फ़िल्म इंस्टीट्यूट में प्रवेश लेता, उसे एक अमेरिकन कंपनी कॉग्निजेंट से ऑफ़र आया, कॉफ़ी ऊहापोह के बाद दीपक ने यह कंपनी जॉइन कर ली, कुछ समय बाद उसकी पोस्टिंग नीदरलैंड में हो गई। दीपक यह सोचने लगा कि शायद उसकी नियति यही है इसलिए उसे अब अपने कार्य पर ही ध्यान केंद्रित करना होगा। 

               इस कंपनी में कार्य करते हुए 6 साल बीत गए। एक दिन दीपक कोई ज़रूरी फ़ाइल देख रहा था कि उसके अक्षर धुंधले पड़ने लग गए और थोड़ी ही देर में एक हीरो का चेहरा उभर आया जो जल्दी ही दीपक के चेहरे में परणित हो गया, दीपक बेचैन हो गया, अरे यह फिर से मुझे क्या हो रहा है? कुछ दिनों बाद फिर वही दृश्य, फिर-फिर वही दृश्य। अब यह घटना जल्दी-जल्दी घटने लग गई, इसमें परिवर्तन भी हो गया। अब फ़ाइल खोलते ही न अक्षर दिखाई पड़ते न हीरो का चेहरा बल्कि ख़ुद का चेहरा दिखाई पड़ता। दीपक की बेचैनी दिनोंदिन बढ़ने लगी, काम से मन उचटने लगा। एक दिन बॉस ने बुलाकर पूछा कि “आप का काम कुछ समझ नहीं आ रहा है, ये सब फ़ाइल्स अधूरी क्यों है?” जवाब में दीपक ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया “सर मुझसे काम नहीं हो सकेगा, मैं जाना चाहता हूँ” बॉस कभी इस्तीफ़े के काग़ज़ को देखता तो कभी दीपक को।बॉस जैसे निस्पंद हो गए। दीपक ने नौकरी छोड़ दी और मुंबई, भारत वापस आ गया, फ़िल्म डिविज़न में दर-दर की ठोकरें खाने।अभी दीपक का एक पैर मुंबई में रहता है और दूसरा डेनमार्क में जहाँ उसकी पत्नी श्वेता जॉब करती है व बेटी के साथ रहती है। दीपक के संघर्ष के दिन शुरू हो गए थे, इस समय हबीब खान ने दीपक को सहारा दिया, बराबर हौसला देते रहे और तारीफ़ भी करते रहे, डूबते को तिनके का सहारा, दीपक में आत्मविश्वास पनपने लगा, रूमी जाफ़री भी हौसला अफजाई करते रहे, आख़िरकार वह दिन आ ही गया जब दीपक की पटकथा पर पहली फ़िल्म रिलीज़ हुई सन् 2013 में “वार छोड़ न यार” इस फ़िल्म में दीपक ने अभिनय भी किया था, अच्छी फ़िल्म होने के बावजूद यह फिल्म विशेष सफल नहीं हो पाई पर बॉलीवुड में दीपक की पहचान बन गई।2019 में दीपक की दूसरी फिल्म आई जिसमें पटकथा और संवाद लेखन सब उन्हीं का था-पागलपंती, इसमें अनिल कपूर, जॉन अब्राहम व अरशद वारसी मुख्य किरदार में थे। 2020 में एक वेब सीरीज़ आई स्पेशल ऑप्स जो आतंकवाद पर आधारित थी, इसमें मुख्य किरदार के के मेनन ने निभाया है, इसे बहुत सराहा गया, एक साल बाद इस सिरीज़ का दूसरा भाग (1.5) आया, जिससे दीपक विख्यात हो गए। इस सिरीज़ से दीपक को अगली फ़िल्म “सिर्फ़ एक ही बंदा काफ़ी है” की पटकथा और संवाद लेखन का काम मिला। इसी फ़िल्म पर उन्हें संवाद लेखन का “नेशनल अवॉर्ड”-2025, में दिया जा रहा है जो कि बहुत बड़ी उपलब्धि है।यह फिल्म 2023 में रिलीज़ हुई थी और इसमें मुख्य किरदार में मनोज वाजपेयी थे।2023 में उनकी एक और फ़िल्म आई-“मिशन रानीगंज” जिसमें अक्षय कुमार हीरो थे, यह भी ग़ज़ब की फिल्म थी, बहुत शानदार। 2024 में इनकी एक और फिल्म आई “भैया जी” जिसमें मनोज वाजपेयी हैं।2025 अभी हाल ही में स्पेशल ऑप्स का तीसरा सीज़न आया (2) इस बार तो इस सीरीज़ ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। यह सीरीज़ ‘हुलू’ और ‘हॉटस्टार’ पर देखी जा सकती है। यदि आप समय निकाल सकें तो मेरा आप सभी से आग्रह है कि यह सीरीज़ और फिल्म “सिर्फ़ एक ही बंदा काफ़ी है” ज़रूर देखिये, बहुत ही शानदार फ़िल्म है, इसे आप Z5 पर देख सकते हैं। 

                   अभी कुछ दिन पहले दीपक न्यूयार्क में अपनी बेटी के साथ आए हुए थे, वो कुणाल से मिलने हमारे घर पर आए तो कुणाल ने ग्वालियर इंजीनियरिंग कॉलेज के 16-17 दोस्तों को डिनर पर बुलाया था। कॉलेज से निकलने के बाद शायद ये दोस्त पहली बार एक साथ मिले थे, हमारे घर में उत्सव का माहौल हो गया था। इस अवसर पर हमने अपनी सद्यः प्रकाशित कविता संग्रह “तब मैं कविता लिखता हूँ” उन्हें भेंट की।

                   कुणाल के विवाह में हमारी मुलाकात दीपक से 13 साल पूर्व महाबलेश्वर में हुई थी। एकदम सीधा-सादा बंदा, सरल और सहज, यह दीपक के फिल्म लाइन में संघर्ष के दिन थे। और अभी जब दीपक से मुलाकात हुई तो उसमें कोई फर्क नहीं, कोई घमंड नहीं, कोई लाग-लपेट नहीं, आते ही पैर छूकर गले से लग जाना उनकी सादगी को बयान करता है, उन्हें सलाम।दीपक हमारे घर पर दो दिनों तक रहे यह समय कब छू मंतर हो गया, हमें पता ही नहीं चला, हम लोग उन्हें न्यूयार्क एयरपोर्ट पर छोड़ने गए तो दीपक ने पैर छूने के लिए झुकने की नाकाम कोशिश की, चूँकि उनकी कमर दौड़-धूप के कारण बुरी तरह अकड़ चुकी थी इसलिए यह बड़ा कठिन था, हमने उन्हें गले लगा लिया, न मालूम कब तक, मिलने के लिए। हमें लगा हमारा एक और बेटा फिर हमसे दूर जा रहा है, बहुत दूर। उसे विदा कर हम अपनी कार में बैठे तो सभी ने एक-दूसरे की आँखों में देखा जो नम थीं ।

इनकी एक और फिल्म आई “भैया जी” जिसमें मनोज वाजपेयी हैं।2025 अभी हाल ही में स्पेशल ऑप्स का तीसरा सीज़न आया (2) इस बार तो इस सीरीज़ ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। यह सीरीज़ ‘हुलू’ और ‘हॉटस्टार’ पर देखी जा सकती है। यदि आप समय निकाल सकें तो मेरा आप सभी से आग्रह है कि यह सीरीज़ और फिल्म “सिर्फ़ एक ही बंदा काफ़ी है” ज़रूर देखिये, बहुत ही शानदार फ़िल्म है, इसे आप Z5 पर देख सकते हैं। 

              अभी कुछ दिन पहले दीपक न्यूयार्क में अपनी बेटी के साथ आए हुए थे, वो कुणाल से मिलने हमारे घर पर आए तो कुणाल ने ग्वालियर इंजीनियरिंग कॉलेज के 16-17 दोस्तों को डिनर पर बुलाया था। कॉलेज से निकलने के बाद शायद ये दोस्त पहली बार एक साथ मिले थे, हमारे घर में उत्सव का माहौल हो गया था। इस अवसर पर हमने अपनी सद्यः प्रकाशित कविता संग्रह “तब मैं कविता लिखता हूँ” उन्हें भेंट की।

              कुणाल के विवाह में हमारी मुलाकात दीपक से 13 साल पूर्व महाबलेश्वर में हुई थी। एकदम सीधा-सादा बंदा, सरल और सहज, यह दीपक के फिल्म लाइन में संघर्ष के दिन थे। और अभी जब दीपक से मुलाकात हुई तो उसमें कोई फर्क नहीं, कोई घमंड नहीं, कोई लाग-लपेट नहीं, आते ही पैर छूकर गले से लग जाना उनकी सादगी को बयान करता है, उन्हें सलाम।दीपक हमारे घर पर दो दिनों तक रहे यह समय कब छू मंतर हो गया, हमें पता ही नहीं चला, हम लोग उन्हें न्यूयार्क एयरपोर्ट पर छोड़ने गए तो दीपक ने पैर छूने के लिए झुकने की नाकाम कोशिश की, चूँकि उनकी कमर दौड़-धूप के कारण बुरी तरह अकड़ चुकी थी इसलिए यह बड़ा कठिन था, हमने उन्हें गले लगा लिया, न मालूम कब तक, मिलने के लिए। हमें लगा हमारा एक और बेटा फिर हमसे दूर जा रहा है, बहुत दूर। उसे विदा कर हम अपनी कार में बैठे तो सभी ने एक-दूसरे की आँखों में देखा जो नम थीं ।

*गिरीश पटेल*

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