नगर पालिका चला रहे हैं पार्षद, उपाध्यक्ष के पति, महिला सशक्तिकरण व नियमों की खुलेआम उल्लंघन
*पत्रकार वार्ता में सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश भ्रम फैलाने का प्रयास*
अनूपपुर/कोतमा
नगर पालिका परिषद कोतमा में पत्रकार वार्ता जहां एक ओर नगर के विकास और योजनाओं पर केंद्रित रही, वहीं दूसरी ओर यह संवैधानिक मर्यादाओं, महिला सशक्तिकरण और निष्पक्ष पत्रकारिता की अनदेखी का उदाहरण बनकर सामने आई है। वार्ता के दौरान एक ओर उपाध्यक्ष की जगह उनके पति और सभापति की जगह निर्वाचित महिला पार्षद की बजाय उनके पति की उपस्थिति ने न केवल महिला जनप्रतिनिधियों की संवैधानिक पहचान को कमजोर किया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रचारित महिला सशक्तिकरण के दावों को भी सवालों के घेरे में ला दिया।
*पत्रकारों के माध्यम से भ्रम फैलाने का प्रयास*
नगर में चर्चित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जलभराव की समस्या पर जब मीडिया में खबरें चलने लगीं तो नगर पालिका अध्यक्ष अजय सराफ द्वारा कुछ पत्रकारों के साथ एक विशेष पत्रकार वार्ता आयोजित की गई। इसमें स्वतंत्र और जमीनी पत्रकारों को आमंत्रित नहीं किया गया, बल्कि केवल उन पत्रकारों को बुलाया गया जो अध्यक्ष के पक्ष में माहौल बना सकें। इस दौरान शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के जलभराव को लेकर अध्यक्ष द्वारा खुलेआम चुनौती दी गई कि "कहाँ है पानी भराव, कोई प्रमाण दिखाए यह सच्चाई को झुठलाने का प्रयास न केवल जनभावनाओं के साथ छल है, बल्कि जनसेवा की मूल भावना के भी विरुद्ध है।
*महिला सशक्तिकरण के नाम पर खोखली तस्वीर*
सबसे गंभीर बात यह रही कि उपाध्यक्ष वैशाली ताम्रकार और अन्य महिला पार्षदों की जगह उनके पति मंच पर उपस्थित थे। यह न केवल स्थानीय निकाय अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के अधिकारों को हड़पने की मानसिकता को दर्शाता है। जिस पार्टी ने "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" जैसे अभियानों को चलाया, वही पार्टी की नुमाइंदगी कर रहे जनप्रतिनिधि महिला सशक्तिकरण को व्यावहारिक रूप से कमजोर कर रहे हैं।
*क्या चाहती है नगर की जनता*
क्या विकास कार्यों की पारदर्शिता सिर्फ अपने लोगों से सवाल पूछवाकर प्रमाणित की जाएगी, क्या महिला प्रतिनिधियों को सिर्फ नाम के लिए चुनाव लड़वाकर उनके स्थान पर पुरुष प्रतिनिधि मंच संभालेंगे, क्या पत्रकार वार्ताएं केवल प्रचार की बजाय, संवाद और सवालों के लिए नहीं होनी चाहिए, कोतमा नगर पालिका अध्यक्ष अजय सराफ द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता न केवल स्वच्छ संवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान थी, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण के नाम पर दिखावे की राजनीति का ज्वलंत उदाहरण भी बन गई। जनता यह जानना चाहती है कि आखिर सवालों से डर क्यों है? और जनता की आंखों में धूल झोंकने का यह प्रयास कब तक चलता रहेगा। सत्ता के मंच पर जब संवैधानिक मर्यादाएं गिरवी रख दी जाएं, तो सच्चाई भी किनारे खड़ी रह जाती है।