खस्ताहाल बना केंद्रीय विद्यालय, छात्र- छात्राओ को शिक्षा की जगह मिल रहा संघर्ष
*जनप्रतिनिधि व प्रशासन मौन*
उमरिया
केंद्रीय विद्यालय उमरिया इन दिनों शिक्षा का मंदिर नहीं, उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। बरसात ने स्कूल की खस्ताहाल तस्वीर उजागर कर दी है। स्कूल पहुंचना छात्रों के लिए रोज़ की जंग बन चुका है, कीचड़, जलभराव और गड्डों को पार करते हुए जब बच्चे पहुंचते हैं, तो वहां टपकती छतें और गीले फर्श उनका इंतजार करते हैं। हद तो ये है कि बच्चों के लिए विद्यालय में कोई स्थाई शौचालय भी नही है।
विद्यालय की कक्षाएं आज भी अल्बेस्टस सीटों से ढकी हैं। बारिश में छतें टपक रही हैं, किताबें भीग जाती हैं और बच्चे गीले बेंचो पर बैठने को मजबूर होते हैं। यह किसी ग्रामीण प्राथमिक स्कूल की नहीं, केंद्रीय विद्यालय की हालत है उस संस्था की, जिसे देशभर में उत्कृष्ट शिक्षा का प्रतीक माना जाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि न कोई जनप्रतिनिधि व प्रशासन इस ओर ध्यान नही दे रहे हैं।केंद्रीय विद्यालय उमरिया में केवल कक्षा 10वीं तक कक्षाएं ही संचालित होती है, आगे की पढ़ाई के लिए छात्रों को 25-30 किलोमीटर दूर नोरोज़ाबाद जाना पड़ता है – यह छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों पर भी आर्थिक और मानसिक बोझ बनता है।
*छात्र को शिक्षा की जगह मिल रहा संघर्ष*
केंद्रीय विद्यालय में स्थायी शिक्षकों की भारी कमी है। अधिकांश कक्षाएं अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रही हैं। विद्यालय में करीब 400 छात्रों की अध्ययनरत है, ऐसे शिक्षकों की कमी स्कूल प्रबंधन के लिए भी चुनौती बना हुआ है। शिक्षकों के अभाव की वजह से स्कूल प्रबंधन मजबूरी में लाइब्रेरियन और स्पोर्ट टीचर से भी बच्चों को पढ़ाने मदद ले रहे है। नया सत्र शुरु हो चुका है, लेकिन कई कक्षाओं में अब तक किताबें नहीं पहुंचीं, बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह स्थिति और भी गंभीर है। क्या 'केंद्रीय विद्यालय' के नाम पर सिर्फ दिखावा ही पर्याप्त है? अब वक्त है कि शिक्षा विभाग, जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि मौन तोड़ें, स्थल पर जाएं और स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएं। वरना हर बारिश में न सिर्फ छतें टपकेंगी, बल्कि बच्चों का भविष्य भी कही न कही टपक जाएगा।