विकास योजनाएं बन गई घोटालों की खुराक, मनरेगा में मजदूरी 261 रुपये व सकोला में 120 यह कैसा विकास
अनूपपुर
शासन भले "सबका साथ, सबका विकास" का नारा लगाए, लेकिन सकोला में यह नारा बदल चुका है, "चंद लोगों का साथ, खुद का विकास, बाकी गांव को बर्बादी की सौगात"यह पंचायत अब योजनाओं की नहीं, घोटालों की प्रयोगशाला बन गई है, टूटी सड़कें, अधूरे तालाब, और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज झूठे काम यही हैं, यहां की पहचान और हैरानी की बात यह नहीं कि ये सब हो रहा है, हैरानी यह है कि सब कुछ जानते हुए भी शासन-प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है।
सरकार ने ढोल-नगाड़े बजाकर ऐलान किया कि अब मनरेगा मजदूरों को 261 रुपये प्रतिदिन मिलेंगे, लेकिन ज़रा सकोला पंचायत की सच्चाई देखिए यहां गरीब मज़दूर को वही पुराना अपमानजनक 120 रुपये पकड़ाया जा रहा है और ये सब हो रहा है, उप यंत्री श्रीवास्तव और रोजगार सहायक रमेश विश्वकर्मा की खुली शह पर दोनों जनाब जैसे मजदूरों के भाग्यविधाता बन बैठे हों "काम लो पूरा, पैसा दो अधूरा" की तर्ज पर दिन-दिन भर खटवा कर बंधुआ मजदूरों से भी बुरा सलूक किया जा रहा है। सरकार कहती है एक परिवार को 100 दिन का रोजगार लेकिन 120 रुपये रोज़ मिले तो कुल 12,000 रुपये साल भर के! यानी महीने का 1000 रुपये आज के महंगाई के ज़माने में ये रकम तो शायद शहरों में भीख मांगने वालों को भी कम लगती होगी महीने की गैस सिलेंडर बस आएगी मगर अफसरशाही मौन है, क्योंकि उनकी जेबें तो तय सैलरी से गर्म हैं।
सकोला पंचायत की देवी चौरा से भूतही तालाब तक बनने वाली पीसीसी सड़क का अनुमानित खर्च 4,97,000 रुपये था, लेकिन इस योजना को भी अफसरों ने लूट की दुकान बना दिया महज़ 30,000 रुपये की सामग्री के परिवहन के नाम पर 1,40,000 रुपये एक नरेंद्र नामक व्यक्ति के खाते में डाल दिए गए सवाल है, क्या यह माल चांद से लाया गया था? इस गड़बड़ी पर उपयंत्री श्रीवास्तव की चुप्पी नहीं, बल्कि उनकी भागीदारी दिखती है, क्या उनकी आँखें इतनी कमजोर हैं कि 30,000 का सामान लाने में 1.4 लाख जायज़ लगने लगा? और रोजगार सहायक रमेश विश्वकर्मा ने तो भ्रष्टाचार को खुलेआम अंजाम दिया 30,000 की सामग्री के काम पर 32,000 रुपये का लेबर भुगतान कर दिया और शान से कहा "काम पूरा हो गया!" वास्तव में सकोला अब पंचायत नहीं, भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला बन चुका है।