नवीन छात्रावास के उद्धघाटन के पहले ही 1.97 लाख का आया बिजली बिल, मचा हड़कंप

नवीन छात्रावास के उद्धघाटन के पहले ही 1.97 लाख का आया बिजली बिल, मचा हड़कंप

*आखिर किसने गड़बड़ी करके किया लाखो के बिजली की खपत*


अनूपपुर

जिले के अंतर्गत शासकीय आदिवासी सीनियर बालक छात्रावास राजनगर का उद्घाटन अभी हुआ भी नहीं था, लेकिन विद्युत विभाग ने पहले ही 1,97,269 रुपए का भारी-भरकम बिल भेज दिया। इस बिल को देखकर विभाग सहित छात्रावास प्रबंधन में हड़कंप मच गया। आश्चर्य की बात यह है कि छात्रावास में अभी तक एक भी दिन बच्चों ने रहकर विद्युत का उपयोग नहीं किया, फिर भी इतनी बड़ी राशि का बिल कैसे आ गया।

नवीन छात्रावास भवन का उद्धघाटन भी नहीं हुआ है, और इस लाखों के बिल के कारण छात्रावास अब भी पुराने भवन में ही संचालित हो रहा है। बच्चों को रोजाना 4 से 5 किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय पहुंचना पड़ रहा है, वो भी भलमुड़ी के घने जंगल और कच्ची सड़कों के बीच से होकर। बरसात के मौसम में यह राह और भी कठिन हो जाती है, चारों तरफ कीचड़ फैला हुआ है और बच्चों को जोखिम उठाकर आवागमन करना पड़ रहा है। सवाल यह उठता है कि इस बिजली बिल के घटनाक्रम में इन बेचारे आदिवासी बच्चों का क्या दोष है जो सुविधा होने के बावजूद उपभोग नहीं कर पा रहे। छात्रावास अधीक्षक ने इस गंभीर स्थिति की जानकारी अपने उच्च अधिकारियों को पत्राचार के माध्यम से दी है। उन्होंने अवगत कराया कि उन्होंने अभी तक नए छात्रावास भवन का विधिवत हैंडओवर भी नहीं लिया है, फिर भी विद्युत विभाग द्वारा लगातार बिल भेजा जा रहा है।

स्वाभाविक रूप से सवाल उठता है कि अधीक्षक के कार्यभार ग्रहण करने से पहले इतना विद्युत उपयोग किसने किया? प्रारंभिक जानकारी में यह संकेत मिला है कि जिस ठेकेदार संस्था ने भवन निर्माण का कार्य किया था, उसके द्वारा ही निर्माण कार्य के दौरान विद्युत का उपयोग किया गया है। संभवतः इसी कारण इतनी बड़ी राशि का बिल उत्पन्न हुआ है, लेकिन जब बिल शासकीय छात्रावास के नाम पर आया है, तो जिम्मेदारी भी उसी पर डाली जा रही है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब प्राचार्य और अधीक्षक ने विद्युत कनेक्शन के लिए कोई आवेदन नहीं किया, तो किसके द्वारा शासकीय नाम का दुरुपयोग कर विद्युत कनेक्शन लिया गया।

सामान्यतः विद्युत कनेक्शन के लिए विधिवत आवेदन एवं शुल्क जमा किया जाता है, और यदि निर्माण कार्य के लिए विद्युत की आवश्यकता थी, तो ठेकेदार को स्वयं अपने नाम पर अस्थायी कनेक्शन लेना चाहिए था। शासकीय छात्रावास के नाम पर कनेक्शन लेकर अगर निर्माण कार्य में उपयोग किया गया है, तो यह शासन को आर्थिक क्षति पहुँचाने जैसा कृत्य है। यह भी जांच का विषय है कि विद्युत विभाग ने कनेक्शन जारी करते समय किन दस्तावेजों के आधार पर स्वीकृति दी, और क्या अधीक्षक अथवा विभागीय अनुमति ली गई थी?

अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि इस 1.97 लाख रुपए के विद्युत बिल का भुगतान कौन करेगा? यदि इसका भुगतान नहीं हुआ, तो छात्रावास का स्थानांतरण नए भवन में कैसे संभव होगा? क्या छात्रावास के बच्चे यूँ ही पुराने भवन से लंबी दूरी तय कर विद्यालय आते-जाते रहेंगे? शिक्षा और स्वास्थ्य ऐसे दो बुनियादी अधिकार हैं, जिनके बिना बच्चों का सम्पूर्ण विकास अधूरा है। यदि शिक्षा पाने के लिए बच्चों को प्रतिदिन कष्टदायक यात्रा करनी पड़े, तो यह न केवल उनकी पढ़ाई पर असर डालेगा बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचा सकता है। अब देखना यह है कि विभाग इस दिशा में कब तक ठोस कार्यवाही करता है और बच्चों को उनके नए छात्रावास में कब तक स्थानांतरित किया जाएगा।

*इनका कहना है।*

हमने वरिष्ठ अधिकारी को पत्राचार किया हुआ है हमारे द्वारा विद्युत कनेक्शन एवं मीटर के लिए कोई भी आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है।

*के.के.पडवार, वार्डन अधीक्षक, राजनगर*

मैं आवेदन का पता करता हूं कि किसके द्वारा विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन दिया गया था।

*खीरसागर पटेल, जूनियर इंजीनियर, विद्युत विभाग*

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