दूधधारा पर नरेन्द्र गिरी का अवैध कब्जा, महंत ने स्नान पर लगाई रोक, भाजपा जिलाध्यक्ष से हुआ विवाद

दूधधारा पर नरेन्द्र गिरी का अवैध कब्जा, महंत ने स्नान पर लगाई रोक, भाजपा जिलाध्यक्ष से हुआ विवाद 

*वन विभाग ने महंत को थमाया नोटिस*


अनूपपुर/अमरकंटक

पवित्र नगरी अमरकंटक जहां मां नर्मदा का उद्गम स्थल है, वहां श्रद्धालुओं की आस्था पर उस समय ठेस पहुंची जब दूधधारा जलप्रपात पर वर्षों से कथित कब्जा जमाए महंत नरेंद्रगिरी ने श्रद्धालुओं को स्नान से रोक दिया। मामला तब सुर्खियों में आया जब स्वयं भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष हीरा सिंह श्याम नर्मदा स्नान के लिए पहुंचे और उन्हें भी महंत द्वारा स्नान करने से रोक दिया गया। इस घटना के बाद पूरे प्रशासनिक तंत्र में हड़कंप मच गया। 

वन विभाग ने महंत नरेंद्रगिरी को थमाया नोटिस 

विवाद की जानकारी मिलते ही तहसीलदार नगर परिषद अधिकारी, पटवारी, और वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए वन विभाग द्वारा महंत नरेंद्रगिरी को नोटिस थमाया गया। जिसमें कब्जा हटाने के लिए सप्ताह भर का समय दिया गया है। जैसे ही महंत की मनमानी का मामला उजागर हुआ और प्रशासन हरकत में आया, स्थानीय लोगों ने बैरिकेड्स को तोड़कर जबरदस्त नाराज़गी जाहिर की और दूधधारा में स्नान फिर से शुरू कर दिया। 

हत्या के मामले में भी सामने आ चुका है नाम 

यह पहला मामला नहीं है जब महंत नरेंद्रगिरी विवादों में आए हों, स्थानीय लोगों का कहना है कि वह अक्सर श्रद्धालुओं को स्नान करने से रोकते थे और वाद-विवाद की स्थिति बना देते थे। इससे पहले भी उनका नाम गढ़ीदादर स्थित खड़ेश्वरी बाबा की हत्या के मामले में सामने आ चुका है, जिससे उनकी छवि पर पहले से ही सवालिया निशान लगे हुए हैं। लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई क्योंकि वे वर्षों से इस पर रोक झेल रहे थे। श्रद्धालुओं ने प्रशासन का आभार जताया और मांग की कि दूधधारा को अवैध कब्जों से स्थायी रूप से मुक्त कराया जाए। 

प्रशासन की ओर से साफ संकेत मिले हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल पर अवैध कब्जा और श्रद्धालुओं के साथ दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। महंत को दिए गए नोटिस की अवधि समाप्त होने के बाद यदि कब्जा नहीं हटाया गया तो सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दूधधारा की यह घटना न सिर्फ एक प्रशासनिक मामला है, बल्कि यह सामाजिक चेतना का विषय भी है। जब धार्मिक स्थलों पर अवैध कब्जे और निजी स्वार्थ आस्था पर भारी पड़ने लगें, तब समाज को एकजुट होकर इसका विरोध करना चाहिए, जैसा कि अमरकंटक के लोगों ने किया।

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