संभावित IGNTU कुलपति पद हेतु प्रो. राजेन्द्र सोनकवड़े की नियुक्ति पर उठते गंभीर प्रश्न
*डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम का दुरुपयोग, राजनीतिक व आर्थिक गठजोड़*
अनूपपुर
शिक्षा के मंदिरों को यदि राजनीतिक व वैचारिक छल-कपट से संचालित किया जाने लगे, तो यह न केवल शिक्षा की पवित्रता को कलंकित करता है, बल्कि भावी पीढ़ियों के बौद्धिक निर्माण को भी गहरा आघात पहुँचाता है। ऐसी ही एक अत्यंत गंभीर स्थिति वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (IGNTU), अमरकंटक में कुलपति पद हेतु संभावित नियुक्ति को लेकर उठ खड़ी हुई है, जिसमें प्रो. राजेन्द्र सोनकवड़े का नाम सुर्खियों में है।
*राजनीतिक और वैचारिक जड़ें*
प्रो. सोनकवड़े, जिनका संबंध पूर्व यूजीसी अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोराट से पारिवारिक व वैचारिक दोनों ही रूप में जुड़ा है, देश के प्रमुख वामपंथी (कम्युनिस्ट) खेमे के सक्रिय सहयोगी माने जाते हैं। यह वह समूह है जो अक्सर भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद और केंद्र की लोकतांत्रिक सरकार के विरोध में मुखर रहा है।
*विवादास्पद नियुक्तियाँ एवं आचरण*
पूर्व में बीबीएयू, लखनऊ में हुई उनकी नियुक्ति को लेकर भी प्रश्नचिह्न लगे। तत्कालीन कुलपति प्रो. बी. हनुमैया (जिनकी विचारधारा भी कांग्रेस समर्थक मानी जाती है) द्वारा उन्हें त्वरित रूप से महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया गया। दुर्भाग्यवश, इन पदों पर रहते हुए प्रो. सोनकवड़े पर अनेक प्रकार के नैतिक एवं व्यवहारिक आरोप लगे। विशेष रूप से रिमेडियल कोचिंग सेंटर में कार्यरत एक संविदा महिला कर्मचारी के साथ अनुचित व्यवहार, मानसिक प्रताड़ना और कार्यस्थल पर अशोभनीय आचरण की शिकायतें उच्च अधिकारियों के समक्ष दर्ज हैं, जिनकी जांच आज तक लंबित है।
*डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम का दुरुपयोग*
देश के महान वैज्ञानिक और भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ मंच साझा करने की digitally manipulated तस्वीर को प्रचारित कर प्रो. सोनकवड़े ने अपनी सार्वजनिक छवि को "मिथ्या गौरव" के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। यह कृत्य केवल नैतिक पतन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय श्रद्धा के प्रतीकों के प्रति भी गहरी असंवेदनशीलता का परिचायक है।
*राजनीतिक और आर्थिक गठजोड़*
सूत्रों द्वारा यह भी जानकारी सामने आ रही है कि अमरकंटक विश्वविद्यालय में चल रहे कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स में मेकॉन कंपनी और उसके पेटी ठेकेदारों, विशेषत अग्रवाल के माध्यम से भारी-भरकम आर्थिक लेन-देन की आशंका है। आरोप है कि कुलपति बनने की दौड़ में सुविधा राशि कुछ प्रभावशाली 'भाईसाहबों' को प्रेषित की गई है।
*विश्वविद्यालय स्वायत्तता में हस्तक्षेप*
महाराष्ट्र विधानसभा में स्वयं भाजपा विधायक आशीष शेलार ने यह मुद्दा उठाया कि प्रो. सोनकवड़े (तब OSD) द्वारा राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र लिखकर प्रशासनिक जानकारी मांगी गई, जो कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता का स्पष्ट उल्लंघन है। इससे यह संकेत मिलता है कि प्रो. सोनकवड़े अपनी सीमा से बाहर जाकर कार्य करने के अभ्यस्त हैं।
*गंभीर नैतिक और आपराधिक प्रश्न*
यह भी चर्चा का विषय बना है कि प्रो. सोनकवड़े पर घरेलू हिंसा, न्यायालयीन हस्तक्षेप के प्रयास, और राजनीतिक सौदेबाज़ी के गंभीर आरोप भी लगे हैं। इन पर यदि उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच हो तो शिक्षा व्यवस्था की गहराई तक छिपे हुए भ्रष्टाचार की परतें खुल सकती हैं।प्रो. राजेन्द्र जी. सोनकवड़े की कथित गतिविधियाँ, चाहे वह नैतिक, शैक्षणिक या प्रशासनिक हों शिक्षा तंत्र की पवित्रता एवं पारदर्शिता के लिए घातक संकेत हैं। ऐसे समय में जब देश को शिक्षाविदों की निर्मल दृष्टि, निष्पक्षता और लोककल्याण के प्रति समर्पण की आवश्यकता है, तब इस प्रकार की राजनीतिक गठजोड़ और वैचारिक षड्यंत्र निंदनीय ही नहीं, राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुके हैं।