चोड़ी घाट में अवैध खनन का खुला खेल, कोतमा वन विभाग की चुप्पी से माफियाओं के हौसले बुलंद

चोड़ी घाट में अवैध खनन का खुला खेल, कोतमा वन विभाग की चुप्पी से माफियाओं के हौसले बुलंद


अनुपपुर 

जिले के चोड़ी घाट कुदरा जंगल क्षेत्र में इन दिनों अवैध रेता खनन अपनी चरम सीमा पर है यह क्षेत्र कोतमा वन परिक्षेत्र के अंतर्गत भालूमाडा और लतार बीट में आता है, जहां के बीट गार्ड राकेश समुद्री हैं, जहां हर गतिविधि वन नियमों के तहत नियंत्रित होनी चाहिए, लेकिन यहां वन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और वन विभाग तमाशबीन बना बैठा है। केवट और प्रकाश के साथ पांच अन्य  लोगों द्वारा इस इलाके में प्रतिदिन 30 से 35 ट्रैक्टर रेता का अवैध परिवहन किया जा रहा है, ट्रैक्टर दिन में दिन दहाड़े चलते हैं, और नदियों की कोख से रेता खींचकर बाहर ले जाया जाता है, यह कोई छुपी हुई या रात के अंधेरे में की जा रही चोरी नहीं है, बल्कि यह अपराध अब इतने खुले तौर पर हो रहा है कि पूरे गांव को इसकी जानकारी है, सिवाय उन जिम्मेदारों के, जिनका कर्तव्य इसे रोकना है। वन विभाग की यह चुप्पी सिर्फ लापरवाही नहीं बल्कि संदिग्ध चुप्पी बन चुकी है।

रेता का अवैध खनन कोई छोटा-मोटा सौदा नहीं है। एक ट्रैक्टर रेता की कीमत औसतन 4 से 5 हजार रुपये होती है, जब प्रतिदिन 30-35 ट्रैक्टर भरकर निकलते हैं, तो हर महीने  लाख रुपये की सरकारी संपत्ति चोरी हो रही होती है, साल भर में यह नुकसान करोड़ों में पहुंच जाता है, यह महज आंकड़े नहीं हैं, यह उस प्रशासनिक विफलता का जीता-जागता प्रमाण है, जिसे आम जनता हर दिन झेल रही है। पर्यावरण पर इसके गंभीर प्रभाव दिखाई देने लगे हैं रेता निकालने से नदियों के किनारे कट रहे हैं, जलस्तर गिर रहा है और जमीन की उर्वरता खत्म हो रही है, जहां पहले हरे-भरे वन क्षेत्र थे, अब वहां गड्ढे और उजड़े मैदान नजर आ रहे हैं, वन विभाग की चुप्पी और निष्क्रियता केवल आर्थिक अपराध को नहीं बढ़ा रही, बल्कि पारिस्थितिक आपदा को भी न्योता दे रही है।

स्थानीय लोगों ने कई बार वन विभाग को शिकायतें दीं, अवैध खनन की जानकारी भी दी, लेकिन हर बार उन्हें या तो अनसुना कर दिया गया या टालमटोल कर जवाब दिया गया या फिर उन्ही  रेता चोरों को बुलाकर पंचनामा तैयार कर लिया गया कि यहां पर रेता चोरी नहीं हो रही है, कई ग्रामीणों का कहना है कि जब वे अवैध खनन का विरोध करते हैं, तो माफिया तत्व उन्हें धमकाते हैं, लेकिन वन विभाग की तरफ से न तो कोई सुरक्षा का आश्वासन मिलता है, न ही कोई ठोस कार्रवाई होती है ऐसे में माफियाओं का मनोबल और अधिक बढ़ जाता है और आम नागरिक की हिम्मत टूटने लगती है। वन विभाग की यह चुप्पी अब गुनाह में भागीदारी बन चुकी है यदि यही हाल रहा तो कुछ वर्षों में यह पूरा क्षेत्र पर्यावरणीय संकट की चपेट में आ जाएगा शासन को इस पर तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और उच्च स्तरीय जांच बैठाकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए 

इनका कहना है।

मैं वहां अपने स्टाफ को भेज कर चेक करवा लिया हूँ, वह भूमि जहां से रेत निकल रहा है, वह फॉरेस्ट का नहीं, बल्कि राजस्व की भूमि है, जीपीआरएस से भी चेक कर लिया हूँ।

*हरीश तिवारी रेंजर वन विभाग कोतमा*

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