पटवारी पर आदिवासी महिला की जमीन हड़पने का आरोप, बंटवारे के नाम पर कर दी रजिस्ट्री दूसरे के नाम
शहडोल
ज़िले के गोहपारू विकासखंड अंतर्गत ग्राम मोहतरा में राजस्व विभाग की एक और शर्मनाक लापरवाही और भ्रष्ट आचरण का मामला सामने आया है। एक आदिवासी महिला द्वारा अपनी भूमि के बंटवारे के लिए दस्तावेज पटवारी को सौंपे गए थे, लेकिन विश्वासघात ऐसा हुआ कि महिला की भूमि किसी और के नाम पर रजिस्ट्री कर दी गई और चुपचाप नामांतरण की कार्रवाई भी कर दी गई। यह मामला न केवल एक महिला के साथ धोखा है, बल्कि आदिवासी अधिकारों की खुली अवहेलना और प्रशासनिक मशीनरी की संवेदनहीनता का भी प्रमाण है।
*बंटवारे की जगह किसी और के नाम रजिस्ट्री*
पूरा मामला गोहपारू तहसील के ग्राम मोहतरा निवासी सुमदिय सिंह गोंड पत्नी समयलाल सिंह गोंड से जुड़ा है। पीड़िता ने जिले के पुलिस अधीक्षक को दिए गए शिकायत पत्र में बताया कि उसने अपनी भूमि — खसरा नंबर 785/1/1, रकबा 0.392 हेक्टेयर और 961/1, रकबा 0.072 हेक्टेयर — का बंटवारा कराने के लिए संबंधित हल्का पटवारी अकबर खान को सभी जरूरी दस्तावेज सौंपे थे। लेकिन, उस पर विश्वास करना भारी पड़ा। पीड़िता का आरोप है कि पटवारी ने उसके दिए गए दस्तावेजों में छेड़छाड़ करते हुए उक्त भूमि की रजिस्ट्री किसी अन्य व्यक्ति — ग्राम चन्दौल निवासी शेर सिंह पिता दाद्दा सिंह — के नाम पर कर दी। वह भी दिनांक 5 मार्च 2025 को, बिना महिला को सूचित किए। यह साफ तौर पर सरकारी दस्तावेजों से छेड़छाड़ और आदिवासी अधिकारों का खुला उल्लंघन है।
*अनपढ़ होने का उठाया फायदा*
सुमदिय सिंह ने बताया कि वह पढ़ी-लिखी नहीं है, और इसी कमजोरी का लाभ उठाकर पटवारी ने उसे धोखे में रखकर गोहपारू-जयपुर रोड पर स्थित अपने कार्यालय में बुलाया और कुछ कागज़ों पर हस्ताक्षर करवाए। महिला को यह विश्वास था कि यह कार्य सिर्फ बंटवारे से संबंधित है, लेकिन सच्चाई यह थी कि उसकी ज़मीन अब किसी और के नाम चढ़ चुकी थी। पीड़िता के अनुसार, उसकी जिस भूमि का पटवारी ने रजिस्ट्री और नामांतरण कर दिया, उस पर उसका मकान भी बना हुआ है, जिसमें उसका बड़ा बेटा अपने पूरे परिवार के साथ वर्षों से निवास करता है। अब स्थिति यह है कि उसकी ज़मीन सरकारी रिकॉर्ड में किसी और के नाम दर्ज हो चुकी है।
*नही दी नामांतरण की नकल*
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब पीड़िता ने गोहपारू तहसील से नामांतरण की नकल पाने के लिए आवेदन दिया, तो उसे कोई जवाब नहीं मिला। आज तक वह नकल उसे नहीं दी गई है। यह दिखाता है कि न केवल पटवारी स्तर पर गड़बड़ी हुई है, बल्कि तहसील कार्यालय में भी इस मामले को दबाने की कोशिश हो रही है।
*आदिवासियों के अधिकारों पर हमला*
यह मामला केवल एक महिला के साथ अन्याय नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के भूमि अधिकारों पर एक संगठित हमला प्रतीत होता है। जिस प्रशासन से सुरक्षा की उम्मीद की जाती है, वही अब शोषण का माध्यम बन गया है। इस घटना से यह स्पष्ट है कि राजस्व विभाग में बैठे कुछ अधिकारी न केवल अपनी जिम्मेदारी से विमुख हैं, बल्कि कानून और नैतिकता की खुली धज्जियाँ भी उड़ा रहे हैं।
*प्रशासन पर सवाल*
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसे मामलों में शासन-प्रशासन की कोई जिम्मेदारी तय की जाएगी? क्या पटवारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी? क्या संबंधित तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक से जवाबदेही तय की जाएगी? या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह “जांच जारी है” की चादर में दबा दिया जाएगा?
*कठोर कार्रवाई की मांग*
स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि इस मामले में कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह पूरे क्षेत्र में आदिवासी, निर्धन और अशिक्षित लोगों के बीच एक भय का वातावरण पैदा कर देगा। लोग पटवारी और राजस्व कर्मचारियों पर विश्वास खो देंगे, और भूमि से जुड़े मामलों में भ्रष्टाचार और भी बढ़ता जाएगा, ऐसे मामलो में कठोर कार्यवाही होनी चाहिए।