बच्चों की थाली के जूठन से बढ़ रही समूहों की चमक, कागजी साबित हो तो रहा मध्याह्न भोजन
उमरिया/ बिरसिंहपुर पाली
सरकार की महत्वपूर्ण मीड डे मील 15 अगस्त 1995 से लागू कर शासकीय विद्यालयों में अध्ययन रत छात्राओं की उपस्थिति बढाने और कुपोषण से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से लागू किया गया था, जिस पर सरकार आज भी करोड़ों रूपयों का व्यय कर योजना संचालित कर रखी है लेकिन योजना से शासकीय विद्यालयों में अध्ययन रत छात्र- छात्राओं को कितना लाभ हुआ वह आज भी परदे के पीछे ही छिपा हुआ है। विद्यालयों में सुरूचि पूर्ण पोषक युक्त भोजन के लिए सरकार योजना में हर माह बेहिसाब धन व्यय कर रहा है परन्तु उन नौनिहालों कि सूरत जस की तस बनी हुई है जिनके लिए यह महती योजना को संचालित किया जा रहा है। दशकों व्यतीत हो जाने के बाद भी इन छात्राओं के जीवन स्तर पर कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा है,अलबत्ता बच्चों को मंध्यांह भोजन देने वाले समूहों की सेहत में जरूर सुधार दिखाई दे रहा है, और उनकी चमक दिन दोगनी रात चौगुनी बढती जा रही है।विद्यालयों में भोजन की योजना लागू करने के पीछे सरकार की मंशा थी कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्तर पर सुधार दर्ज किया जायेगा। देश भर के शासकीय विद्यालयों में अध्ययन रत बच्चों के अध्ययन में पाया गया था कि बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित रहते हैं, जिससे उनका विकास आवश्यकता से कम हो रहा है, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकें जिससे विद्यालयों में भोजन प्रदान करने की योजना चलाई गयी थी। यह योजना 15 अगस्त 2025 को तीन दशक पूरे कर चौथे दशक में प्रवेश कर गया लेकिन जो लाभ मिलना था वह समूहों तक आकर लटक कर रह गया है।यद्यपि विद्यालयों में चलने वाले इस सु पोषित भोजन योजना का सभी जगह बुरा हाल है, विद्यालयों में कभी भी,कहीं भी मीनू के अनुरूप बच्चों को नहीं परोसा जा रहा है तथापि उमरिया जिला तो इस मामले में ज्यादा ही फिसड्डी दिखाई दे रहा है । पिछले दिनों जिले के विद्यालयों का भ्रमण कर विद्यालयों में बच्चों का अध्ययन करने पर पता चलता है की यह योजना वर्तमान में खानापूर्ति का रूप धारण कर कागजों में ही शत प्रतिशत संचालित हो रही है। आदिवासी विकासखंड पाली के विद्यालयों में संचालित समूह संचालक राजनैतिक दलों के सहारे इस योजना को बट्टा लगा रहे हैं । वह विद्यालयों की बजाय भाजपा की बैठकों और विधायकों के पिछलग्गू बनकर इस योजना से ठाठ के साथ मौज उडाते देखे जा सकते हैं। माध्यमिक विद्यालय नया मंगठार विद्यालय में भ्रमण करने पर पाया गया की पिछले तीन दिनों से विद्यालय में भोजन नहीं बन रहा। बनता भी है तो उसमें मीनू का पालन नहीं किया जाता। माध्यमिक विद्यालय नया मंगठार जमीनी हकीकत को बया करने के लिए हांडी के दो दाने है, कमोवेश यह स्तिथि पूरे जिले की है जहाँ पर मंध्यांह भोजन के सहारे बच्चों का कम समूहों का विकास ज्यादा हुआ है। वर्तमान परिवेश में मंध्यांह भोजन की राशि सीधे राज्य सरकार द्वारा सीधे भोपाल से हस्तांतरित की जाती है , जिससे विकास खंड स्तरीय निगरानी समिति को समूह संचालक ठेंगे में रखते हैं। विद्यालय के शिक्षक और निगरानी करने वाले इसी बात के शुक्र गुजार है की कम से कम विद्यालय में चूल्हा तो जल रहा है जो खिलाना है खिलाये ।पाली विकास खंड के अमिलिहा विद्यालय में संचालित समूह तो जिला प्रशासन के नाक में दम करके रख दिया था।आज भी वहाँ के समूह संचालक कमिश्नर के यहाँ प्रकरण दायर कर मंध्यांह भोजन की बागडोर लेने की कोशिश में डाटा हुआ है।
सवाल यह भी है कि जिन बच्चों के समग्र विकास के लिए यह योजना क्रियांवित की गयी थी वह आज गौण होकर नाम मात्र की रह गई है और उसके स्थान पर स्व सहायता समूहों का विकास जारी है। होना यह चाहिए की छात्राओं के समग्र विकास के साथ समूहों का विकास होता तो इस पर कदापि किसी को कोई आपत्ति नहीं होती लेकिन समूह तो इन नौनिहालों के थाली के जूठन पर मुंह मारकर अपनी चमक बढाने में तुले हुए हैं।
