करोड़ों मज़दूरों-कर्मचारियों पर क़हर बरपाने वाले 04 खतरनाक लेबर कोड को मोदी सरकार ने किया लागू
*मज़दूर वर्ग को ग़ुलामी जैसे हालात में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा*
अनूपपुर
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी मध्य प्रदेश के सहायक सचिव कामरेड विजेंद्र सोनी एडवोकेट ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि देश के करोड़ों मेहनतकशों की बदहाल ज़िन्दगी को और भी तबाह करने वाले चार ख़तरनाक क़ानून यानी चार लेबर कोड को बीते 21 नवम्बर को मोदी सरकार सरकार ने लागू कर दिया है। इन चार लेबर कोड के लागू होने के बाद मज़दूरों के बचे-खुचे अधिकारों को भी छीन लिया गया है, जिन्हें लम्बे संघर्ष के बाद हासिल किया गया था, ताकि पूँजीपति वर्ग मनमाने तरीक़े से मज़दूरों की हड्डी-हड्डी निचोड़ सकें। यही कारण है कि चुनाव में हज़ारों-करोड़ का ख़र्च उठा कर अम्बानी-अडानी आदि ने मोदी को तीसरी बार सत्ता में पहुँचाया है ताकि मुनाफ़े के रास्ते में आने वाले हर रूकावट को पूरी तरह से हटाया जा सके और मोदी सरकार इस काम को बखूबी अंजाम दे रही है। ज्ञात हो कि मोदी सरकार ने 2019 और सितम्बर 2020 में ही इन क़ानूनों को संसद में पारित किया था, जब जनता कोरोना और मोदी सरकार द्वारा अनियोजित रूप से थोपे गये लॉकडाउन की मार झेल रही थी। संसद में पारित होने के बाद से ही मोदी सरकार इसे लागू करने के लिए उतावली थी, जिससे देश में 60 करोड़ मज़दूरों-मेहनतकशों की लूट को बेहिसाब बढ़ाया जा सके, उनके यूनियन बनाने के अधिकार यानी उनके सामूहिक मोलभाव की क्षमता को कमज़ोर कर सके और उनके संघर्ष को कुचला जा सके। मोदी सरकार के इस क़ानून को लागू करने के लिए तमाम राज्य सरकारों की भी सहमति है। गुजरात, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में चार लेबर कोड को लागू करने के प्रयोग पहले ही किये जा चुके हैं, जहाँ श्रम क़ानूनों को निष्प्रभावी बनाया जा चुका है।
ये चार लेबर कोड हैं: मज़दूरी संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति संहिता, सामाजिक सुरक्षा व पेशागत सुरक्षा संहिता, औद्योगिक सम्बन्ध संहिता। पहली, 'मज़दूरी श्रम संहिता' के अनुसार मालिक को मज़दूर को न्यूनतम मज़दूरी देने से बचने के तमाम रास्ते दिये गये हैं। यह 8 घण्टे से ज़्यादा काम करवाने के क़ानूनी रास्ते खोलती है और वह भी ओवरटाइम मज़दूरी के भुगतान के बिना।
दूसरी, 'व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति संहिता’ में तो असंगठित मज़दूरों को कोई जगह ही नहीं दी गयी है। केवल 10 से ज़्यादा मज़दूरों को काम पर रखने वाले कारख़ानों पर ही यह लागू होगा, यानी मज़दूरों की बहुत बड़ी आबादी इस क़ानून के दायरे से बाहर होगी। ये संहिताएँ मालिकों को इस बात का मौक़ा देती हैं कि वह अपने मज़दूरों को मानवीय कार्यस्थितियाँ मुहैया न कराये।
तीसरी, 'सामाजिक सुरक्षा व पेशागत सुरक्षा संहिता' के अनुसार ईएसआई, पीएफ़, ग्रैच्युटी, पेंशन, मातृत्व लाभ व अन्य सभी लाभ मज़दूरों को बाध्यताकारी तौर पर देना सरकार व मालिकों की ज़िम्मेदारी नहीं होगी बल्कि यह केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारों द्वारा जारी किये जाने वाले नोटिफिकेशनों पर निर्भर करेगा।
चौथी, 'औद्योगिक सम्बन्ध संहिता' ने रोज़गार की सुरक्षा के प्रति मालिक की सारी क़ानूनी ज़िम्मेदारी को ख़त्म करने का रास्ता खोल दिया है; जब चाहे मज़दूरों को काम पर रखो और जब चाहे उन्हें निकाल बाहर करो! साथ ही जिन कारख़ानों में 300 तक मज़दूर हैं, उन्हें लेऑफ़ या छँटनी करने के लिए सरकार की इजाज़त लेने की अब ज़रूरत नहीं होगी (पहले यह संख्या 100 थी)। मैनेजमेंट को 60 दिन का नोटिस दिये बिना मज़दूर हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। ठेका प्रथा को पूरी तरह से क़ानूनी जामा पहना दिया गया है।
कुल मिलाकर कहें तो, इन श्रम संहिताओं के लागू होने के बाद मज़दूर वर्ग को ग़ुलामी जैसे हालात में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। 90 फ़ीसदी अनौपचारिक मज़दूरों के जीवन व काम के हालात अब और नारकीय हो जायेंगे। पुराने श्रम क़ानून लागू नहीं किये जाते थे, लेकिन कहीं पर अनौपचारिक व औपचारिक, संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के मज़दूर अगर संगठित होते थे, तो वे लेबर कोर्ट का रुख़ करते थे और कुछ मसलों में आन्दोलन की शक्ति के आधार पर क़ानूनी लड़ाई जीत भी लेते थे। लेकिन अब वे क़ानून ही समाप्त हो चुके हैं और नयी श्रम संहिताओं में वे अधिकार मज़दूरों को हासिल ही नहीं हैं, जो पहले औपचारिक तौर पर हासिल थे। इन चार श्रम संहिताओं का अर्थ है मालिकों और कॉरपोरेट घरानों यानी बड़े पूँजीपति वर्ग को मज़दूरों का भयंकर शोषण करने की खुली छूट देना। मालिकों का वर्ग इस बात के लिये अब पूरी तरह आज़ाद होगा कि वह मज़दूरों को बिना जीवनयापन योग्य मज़दूरी दिये, सामाजिक सुरक्षा और गरिमामय कार्यस्थितियाँ दिये बग़ैर ही काम कराए।
नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आते ही “कारोबार की आसानी” के नाम पर पूँजीपतियों को मज़दूरों की श्रम-शक्ति लूटने की खुली छूट देने का ऐलान कर दिया था ताकि आर्थिक मन्दी की मार से कराहते पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े को बचाया जा सके। कहने के लिए तो श्रम क़ानूनों को "तर्कसंगत और सरल" बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है लेकिन इसका एक ही मक़सद है, देशी-विदेशी कम्पनियों के लिए मज़दूरों के श्रम को सस्ती से सस्ती दरों पर और मनमानी शर्तों पर निचोड़ना व उनके शोषण को आसान बनाना।
कम रेट विजेंद्र सोनी एडवोकेट ने आगे कहा है कि मजदूरों को अपने हितों की रक्षा के लिए संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए और मोदी सरकार को इन श्रम संहिताओं को वापस लेने के लिए मजबूर करने के लिए राजनीतिक पहल के लिए राजनीतिक आन्दोलन को मजबूत करने के लिए अपनी भूमिका को तय करना चाहिए, आज ज़रूरत है के मज़दूर ख़ुद इस काले क़ानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं और सरकार पर यह दवाब डालें कि वह मज़दूर वर्ग पर किये गये इस फ़ासीवादी हमले को बंद करे।
मजदूरों को अपनी ताक़त पर भरोसा करना होगा और इस बात को भी समझना होगा कि ये हालात हमें एक मौक़ा दे रहे हैं कि हम अपनी स्वतन्त्र चेतना के साथ मजदूर विरोधी सत्ता के खिलाफ एक राजनीतिक आन्दोलन संगठित करें।
