साल बोरर पर बीमारी प्रकोप, साल के वृक्ष सूखे, पर्यावरणीय संतुलन पर मंडराया संकट, जलस्रोतों पर पड़ेगा असर
अनूपपुर
माँ नर्मदा की पवित्र उद्गम स्थली अमरकंटक एक बार फिर सघन वनों से आच्छादित इस क्षेत्र में साल बोरर नामक कीट रोग का प्रकोप तेजी से फैल रहा है, जिसके कारण हजारों साल वृक्ष सूखकर गिरने लगे हैं। यह स्थिति न केवल वनों के लिए, बल्कि पूरे अमरकंटक के पारिस्थितिक संतुलन के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है। कीट वृक्ष की आंतरिक परत को नष्ट कर देता है, जिससे उसमें से बुरादा (पाउडर जैसा कण) निकलने लगता है। यह संकेत है कि वृक्ष अंदर से खोखला हो चुका है। प्रभावित साल वृक्ष कुछ ही सप्ताहों में सूखकर गिर जाता है, और बीमारी तेजी से आसपास के वृक्षों में फैल जाती है।
अमरकंटक क्षेत्र में साल वृक्षों का विस्तार लाखों की संख्या में फैला हुआ है। यह वृक्ष न केवल क्षेत्र की हरियाली और सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करने में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। साल वृक्षों की पत्तियाँ और छाया वायुमंडल में नमी बनाए रखती हैं, मिट्टी को कटाव से बचाती हैं, और वर्षा के जल को धरातल में समाहित कर भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायक होती हैं। पर्यावरणविदों के अनुसार, साल वृक्षों के कारण अमरकंटक की जलवायु सामान्यतः शीतल और संतुलित रहती है। यहाँ की यही हरियाली नर्मदा, सोन और जोहिला जैसी नदियों के उद्गम स्रोतों की जीवनरेखा बनी हुई है।
करीब 18-20 वर्ष पूर्व भी अमरकंटक और उसके आसपास के क्षेत्रों में साल बोरर रोग का भारी प्रकोप देखा गया था। उस समय वन विभाग को लाखों संक्रमित साल वृक्षों को काटना पड़ा था ताकि संक्रमण आगे न फैले। परिणामस्वरूप क्षेत्र का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया, नमी घट गई और कई स्थानों पर छोटे-छोटे जलस्रोत सूखने लगे थे। अब वही स्थिति फिर से सिर उठाती दिखाई दे रही है। शांति कुटी आश्रम के प्रमुख एवं संत मंडल अमरकंटक के अध्यक्ष रामभूषण दास महाराज ने इस विषय पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
