मनुष्यों के वर्ण भले ही अलग-अलग क्यों ना हों तथापि उन सभी की जातियां एक होती हैं- संतोष मिश्र

मनुष्यों के वर्ण भले ही अलग-अलग क्यों ना हों तथापि उन सभी की जातियां एक होती हैं- संतोष मिश्र

हिंदुओं की जाति और वर्ण व्यवस्था के विषय पर इंजी. संतोष कुमार मिश्र ' असाधु' द्वारा प्रस्तुत अभिनव शोध पत्र


जबलपुर

नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हिंदुत्व के विमर्श: चुनौतियां , समाधान और भविष्य के ज्वलंत मुद्दों पर श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विशविद्यालय नई दिल्ली,हिंदू अध्ययन केद्र , दिल्ली यूनिवर्सिटी, विश्व संवाद केंद्र एवं  भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद ,नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 7 एवं 8 नवंबर 2025 को एक वृहद संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश से लगभग 450 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए। इस परिप्रेक्ष्य में रामायण केंद्र जबलपुर इकाई के संयोजक एवं धर्म,आध्यात्म व दर्शन के क्षेत्र में देश-विदेश में तेजी से उभरते , प्रसिद्ध धार्मिक चिंतक इंजी. संतोष कुमार मिश्र 'असाधु ' जोकि वर्तमान में मध्य प्रदेश पॉवर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड जबलपुर में अधीक्षण अभियंता के पद पर कार्यरत हैं,के द्वारा हिंदुओं के मध्य जाति और वर्ण व्यवस्था के विषय पर एक बेहद महत्वपूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें यह साफ़-साफ़ बताया गया कि जाति प्रथा वस्तुतः किसी व्यक्ति के कर्म आश्रित एक बाह्य पदवी मात्र है जबकि वर्ण व्यवस्था उसके आंतरिक आत्मिक-प्रकाश का विज्ञान है। आपको यह जानकर अत्यंत आश्चर्य होगा कि हमारे सनातन धर्म के प्राचीन धर्म-शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों के मध्य में कोई जाति भेद कदापि नहीं होता है अपितु मनुष्य स्वयं में ही एक जाति है। स्कंदपुराण एवं मनुस्मृति का संदर्भ देते हुए श्री मिश्र जी ने बताया कि जन्म से सभी मनुष्य शूद्र वर्ण के होते हैं और संस्कार होने पर ही वे द्विज और उच्च वर्ण की स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। वर्ण व्यवस्था वास्तव में ईश्वरकृत एक दोषरहित तथा अनादिकालीन ब्रह्मांडीय व्यवस्था है ,जिसके सृजनकर्ता और संरक्षक स्वयं ईश्वर होते हैं। यही मूल कारण है कि वर्ण व्यवस्था में न तो कोई छुआछूत होता है और ना ही कोई ऊंच या नीच, यह वस्तुतः व्यक्ति के गुण और कर्म के अनुरूप बनाई गई है। यह व्यवस्था ऋग्वेद के पुरुष सूक्तं में वर्णित एक विराट पुरुष के अखण्ड शरीर के विभिन्न भागों में व्याप्त आत्मिक चेतना की मात्रा जोकि उसके आभा मंडल के रूप में प्रतिबिंबित होती है, उसका ही आध्यात्मिक तौर पर संकेत किया गया है। हिन्दुओं के मध्य में अंधविश्वास, जातीय आधार पर छुआछूत और ऊंच-नीच जैसी दुष्प्रचारित बुराईयों को दूर कर उनकी एकता की दिशा में इस ज्वलंत विषय पर अपने शोधपत्र का प्रस्तुतीकरण किया गया जिसकी वहां काफी सराहना की गई । जन जागृति की दिशा में इस तरह के अभिनव कार्य करते हुए श्री मिश्र जी ने संस्कारधानी जबलपुर का नाम अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर पुनः गौरवान्वित किया है। 

         कवि संगम त्रिपाठी संस्थापक प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा ने बधाई देते हुए बताया कि इंजिनियर संतोष कुमार मिश्र ' असाधु ' अध्यात्म, धर्म, संस्कृति व साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

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