तुमसे मिलने को आतीं हैं ये पूनम की रातें, तुमको बहुत याद करतीं हैं ये पूनम की रातें
*ये पूनम की रातें*
तुमसे मिलने को आतीं हैं ये पूनम की रातें।
तुमको बहुत याद करतीं हैं ये पूनम की रातें।
कभी पहनकर पायल आतीं,
कभी दुल्हन सी सज कर आतीं,
कभी प्यार के ताजमहल पर,
शरद पूर्णिमा बन कर आतीं।
आतीं ओढ़ चुनर चांदी की ये पूनम की रातें,
तुमसे मिलने को आतीं हैं ये पूनम की रातें।
चंदा सी गोरी सूरत है,
मस्त बहारों सी मूरत है,
तारों के अश्वों से इनका,
सजा हुआ किरणों का रथ है।
आसमान में रास रचातीं ये पूनम की रातें,
तुमसे मिलने को आतीं हैं ये पूनम की रातें।
खिड़की से झांका करतीं हैं
आंगन से बातें करतीं हैं,
पत्तों की परछाई से,
श्रंगार गीत लिखती रहतीं हैं।
मधुर मिलन के चित्र बनातीं ये पूनम की रातें।
तुमसे मिलने को आतीं हैं ये पूनम की रातें।
गीतकार -अनिल भारद्वाज, एडवोकेट,उच्च न्यायालय ग्वालियर