दम तोड़ रही स्वास्थ्य व्यवस्था, जनता की टूटी उम्मीदे, मंत्री के क्षेत्र में अस्पताल की स्थिति बदहाल

दम तोड़ रही स्वास्थ्य व्यवस्था, जनता की टूटी उम्मीदे, मंत्री के क्षेत्र में अस्पताल की स्थिति बदहाल

*हाई कोर्ट के आदेश के बाद डॉक्टरों की नियुक्ति अधर में*


अनूपपुर

जिले के कोतमा विधानसभा क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था की दुर्दशा अब ऐसी स्थिति में पहुंच चुकी है कि जनता ने भी उम्मीद छोड़ दी है। यह वही विधानसभा क्षेत्र है, जहां से मध्य प्रदेश शासन के मंत्री दिलीप जायसवाल विधायक हैं, लेकिन उनके अपने क्षेत्र के लोग आज स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। कोतमा नगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) की हालत इतनी जर्जर है कि वहां अब बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के इलाज के लिए डॉक्टर तक नहीं मिल रहे। अस्पताल में मात्र एक-दो चिकित्सक ही उपलब्ध हैं, जिससे मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं। कई बार डॉक्टर किसी अन्य काम या मीटिंग में चले जाते हैं, तो गांव-गांव से आए मरीज बिना जांच के ही लौट जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अस्पताल में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं, न ही दवाइयों की उपलब्धता। जांच मशीनें खराब पड़ी हैं, और आपातकालीन सेवा भी केवल नाम मात्र की रह गई है।

जनहित याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शासन को आदेश दिया था कि कोतमा जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में शिशु विशेषज्ञ (पेडियाट्रिशियन) एवं एमडी डॉक्टरों की नियुक्ति की जाए। शासन ने आदेश तो जारी किया, लेकिन जॉइनिंग आज तक नहीं कराई गई। सूत्रों के अनुसार, “कोर्ट आफ क्वांटम” के डर से शासन ने केवल कागज़ों पर नियुक्तियां दिखाई हैं, जबकि जमीनी स्तर पर आज तक कोई डॉक्टर नहीं पहुंचा।

सरकार और विभाग द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं  नए भवन, पेंटिंग, बोर्ड, और उद्घाटन कार्यक्रमों की झलक तो हर महीने दिख जाती है, लेकिन मरीजों की सुविधा पर ध्यान नहीं दिया जाता। सामान्य चिकित्सक तक नियमित रूप से उपलब्ध नहीं हैं, जिससे गंभीर बीमारियों के मरीजों को अनूपपुर या शहडोल जैसे दूरस्थ अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। कई बार रास्ते में ही मरीज दम तोड़ देते हैं।

कोतमा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इस क्षेत्र का एकमात्र प्रमुख सरकारी अस्पताल है, जो दर्जनों गांवों और हजारों आदिवासी परिवारों के स्वास्थ्य का सहारा है। लेकिन जब यह केंद्र ही खुद बीमार हो चुका है, तो आम जनता का भरोसा प्रशासन पर से उठना स्वाभाविक है। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार मंत्री और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से मांग की गई, लेकिन न तो डॉक्टर बढ़े, न ही सुविधाएं सुधरीं। अब लोगों का कहना है कि “सरकारी अस्पताल अब बस दिखाने के लिए है, इलाज के लिए नहीं। क्या मंत्री दिलीप जायसवाल अपने ही क्षेत्र की जनता की दर्द भरी आवाज़ सुनेंगे? क्या शासन कोर्ट के आदेशों का पालन कर जमीनी स्तर पर डॉक्टरों की तैनाती करेगा या फिर कोतमा की जनता यूं ही बिना इलाज के दर्द सहती रहेगी।फिलहाल, कोतमा की स्वास्थ्य व्यवस्था “जीवन रक्षक” नहीं, बल्कि “जीवन संकट” बन चुकी है और जनता अब यही कह रही है यहां इलाज नहीं, बस इंतज़ार है कब कोई सुध लेगा।

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