जल न पाए जो कच्ची उम्र में अंगारों से, अपनी ही आग में जलते हैं ये मिट्टी के दिये

जल न पाए जो कच्ची उम्र में अंगारों से, अपनी ही आग में जलते हैं ये मिट्टी के दिये


*मिट्टी के दिये*


जल न पाए जो कच्ची उम्र में अंगारों से , 

अपनी ही आग में जलते हैं ये मिट्टी के दिये।


अपना साया भी अंधेरे में साथ देता नहीं , 

हमसफर बन के साथ चलते हैं मिट्टी के दिये।


कुछ नहीं मांगते इंसां या देवता से कभी,

फिर भी त्यौहार मनाते हैं ये मिट्टी के दिये।


इतना स्वार्थी है जमाना कि जलाता है इन्हें,

सिसकियां तक नहीं भरते हैं ये मिट्टी के दिये।

 

इनके घर में हो अंधेरा तो कोई बात नहीं है , 

सब के घर रोशनी करते हैं ये मिट्टी के दिये । 


जिसने इनको बनाया जिंदा जलाया जिसने,  

दोनों को राह दिखाते हैं ये मिट्टी के दिये।


ठोकरों में पड़ीं कल तक जो शिला पत्थर की,

उनको भगवान बनाते हैं ये मिट्टी के दिये।


छूट कर गिर न पड़ें हैं इनकी हिफाजत रखना , 

अनिल के दिल से भी नाजुक हैं ये मिट्टी के दीये।


कभी आंगन कभी मरघट कभी समाधि पर , 

किसी की याद में जलते हैं ये मिट्टी के दिए।

    

 गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट उच्च न्यायालय ग्वालियर

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