उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित, छठ महापर्व का समापन, कोटि तीर्थ पर आस्था, भक्ति व अध्यात्म का अनुपम संगम
अनूपपुर
माँ नर्मदा की पवित्र गोद में अवस्थित अमरकंटक की तपोभूमि आज प्रभात बेला में एक अद्भुत आध्यात्मिक दृश्य की साक्षी बनी। सूर्य उपासना के महापर्व छठ पूजा का समापन आज प्रातःकाल उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर हुआ। भोर की सुनहरी किरणें जैसे ही नर्मदा तट पर बिखरीं, रामघाट और कोटि तीर्थ घाट श्रद्धा, भक्ति और सौंदर्य से आलोकित हो उठे। तड़के से ही सजी-धजी महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा में, सिर पर डाला लिए, परिवारजनों के साथ घाटों की ओर प्रस्थान करने लगीं।
नर्मदा के पावन जल में खड़ी होकर व्रती माताओं-बहनों ने सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया और परिवार की सुख-समृद्धि, आरोग्यता तथा लोककल्याण की कामना की। पंडित सुरेश द्विवेदी ‘छोटे महाराज’ ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजन, अर्चन और हवन संपन्न कराया। जैसे ही सूर्यदेव की प्रथम किरण नर्मदा जल में प्रतिबिंबित हुई, पूरा घाट “छठी मईया की जय!” के गगनभेदी जयघोष से गुंजायमान हो उठा। “उग हे सूरज देव भइल भोर भइले...” और “केलवा जरे के बरनिया हो...” जैसे पारंपरिक लोकगीतों की मधुर ध्वनि और मंजीरों की झंकार से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
नर्मदा जल में प्रवाहित दीपों की कतारें मानो प्रकाश की स्वर्गीय नदी बनकर बह रही थीं। श्रद्धालु हाथ जोड़कर, प्रणाम मुद्रा में सूर्यदेव से आरोग्य, समृद्धि और कल्याण की याचना कर रहे थे। कोई मौन ध्यान में लीन था, तो कोई हर्षाश्रु से भिगा हुआ — दृश्य अत्यंत भावविभोर कर देने वाला था।
चार दिवसीय छठ व्रत नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और प्रभात अर्घ्य के समापन के साथ आज व्रती महिलाओं ने प्रसाद ग्रहण किया। व्रत की इस साधना में शुद्धता, संयम और आत्मानुशासन का अनोखा उदाहरण देखने को मिला। पूरे क्षेत्र में लोकगीतों, मंगलगान और प्रसाद वितरण के साथ हर्ष, उल्लास और भक्ति का वातावरण छा गया।
