गधों से मुक्त नहीं है जिला, गधा की फ़ोटो हुई वायरल, वायरल आंकडों की सच्चाई सही या गलत, छिडी बहस

गधों से मुक्त नहीं है जिला, गधा की फ़ोटो हुई वायरल, वायरल आंकडों की सच्चाई सही या गलत, छिडी बहस


उमरिया

जिले मे इन दिनो गधों को लेकर नई बहस छिडी हुई है। यह बात शुरू हुई एक अखबार मे छपी उस खबर के बाद, जिसमे कहा गया है कि उमरिया मे अब एक भी गधा शेष नहीं है। बस फिर क्या था, लोगों मे वैशाखनंदन को लेकर न सिर्फ चर्चाएं बल्कि उनकी खोजबीन भी शुरू हो गई। कुछ ही देर मे रीवा रोड पर घूमते इस जानवर की फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर दावा कर दिया गया कि जिले मे अभी भी कम से कम 100 गधे बाकी है। गौरतलब है कि सैकडों सालों से सीधा, सरल, मेहनतकश और नो मेंटीनेन्स वाला यह जीव इंसानी सभ्यता का अहम हिस्सा रहा है। हलांकि वफादारी का इनाम मिलने की बजाय गधे को हमेशा मूर्खता का पर्याय ही माना गया। शायद इसीलिये मंदबुद्धि व्यक्ति को गधा कह कर संबोधित किया जाता रहा है।


बताया जाता है कि शासन द्वारा संकलित जानकारी के आधार पर किसी अखबार मे एक जिलावार सूची प्रकाशित की गई, जिसके मुताबिक प्रदेश मे कुल 3052 गधे होने की बात कही गई है। सबसे ज्यादा 335 गधे नर्मदापुरम जिले मे बताये गये हैं। जबकि उमरिया सहित 9 जिलों मे गधे समाप्त हो चुके हैं। इस सूची को एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पेज पर वायरल किया तो लोगों ने भी तरह-तरह कमेंट किये। उनका मानना है कि जिले के कई कस्बों मे अभी भी बडी संख्या मे गधे हैं, लिहाजा जिसने भी ये आंकडे सरकार को दिये है, वे तथ्यात्मक नहीं है। संभव है कि यह भ्रामक जानकारी घर मे बैठ कर ही तैयार कर ली गई।

गधे दूसरों के नजर मे कैसे भी हो, पर उमरिया जैसे कस्बों के विकास और रोजगार मे उनका योगदान अहम है। कहा जाता है कि सन 1874 मे जब उमरिया काॅलरी खुली तो खदान से कोयला निकालने का काम इन्ही गधों से कराया जाता था। उस समय रेल लाईन कटनी तक ही थी। जिस वजह से खदानों का कोयला गधों और खच्चरों के जरिये सडक मार्ग द्वारा उमरिया से कटनी रेलवे साईडिंग तक पहुुचाया जाता था। यह क्रम करीब 10 वर्ष तक चला। इसी दरम्यिान रेल लाईन का विस्तार उमरिया तक हुआ। जिसके बाद कोयले का परिवहन गधों की बजाय मालगाडियों के जरिये होने लगा।

पहाडी इलाका हो या संकरे क्षेत्र। भवन निर्माण कार्य मे सामान पहुंचाने का कार्य बिना गधों के तो असंभव ही था। यह जानवर दुर्गम से दुर्गम इलाके मे जिस संतुलन के सांथ ईट, गिट्टी और रेता लेकर पहुंचता है, वह सचमुच बेजोड है। ईट निर्माण करने वाला प्रजापति समाज भारी संख्या मे गधों को पालन करता था। कई परिवार आज भी गधों को पालने के सांथ अपने रोजमर्रा के कार्यो मे इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। हलांकि आधुनिकीकरण के बाद इस जीव का चलन कम होता चला गया। जिससे इनकी संख्या मे कमी तो आई है पर उमरिया अभी भी गधों से मुक्त नहीं हुआ है।

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