त्रिलोक विजेता रावण स्वयं भू !लोगो से आखिर थका हारा खड़ा है बेसहारा
*रावण का अहंकार पड़ा फीका, परंपरा व राजनीति का टकराव*
अनूपपुर
त्रेता युग का रावण जो त्रिलोक विजयी था, कलयुग में भी कुछ ऐसे अपने आप को क्षेत्र की जनता के सामने बहुत बड़े जनसेवक होने का दावा ठोकते हैं, उनसे भी उम्मीद लगाकर थका हारा खड़ा है बेसहारा ! लाखों के पटाखे लगा कर भी रावण तो जला नहीं लेकिन कुछ लोगों का जमीर जरूर जला।
*रावण का अहंकार पड़ा फीका*
अमलाई स्टेडियम में बरसों से चली आ रही पुरातन परंपरा अहंकार का प्रतीक और अधर्म पर धर्म की विजय की मान्यता के आधार दशहरा उत्सव के रूप में मनाया जाता है लेकिन अब रावण भी स्वयं एक विशेष रणनीतिकार और विद्वान होते हुए भी स्वयंभू लोगों के सामने हारा हुआ आज भी लाखों रुपए के आतिशबाजियों के साथ अपनी अस्थि पंजर को लेकर देख रहा है कौन है जो उसे आग के गोलों से दाग सके
*स्टेडियम में परंपरा व राजनीति का टकराव*
इस वर्ष रावण दहन के नाम पर लाखों रुपए की आतिशबाजियां हुईं, मगर रावण नहीं जला — हां, कुछ लोगों का ज़मीर ज़रूर जल गया। अहंकार और स्वार्थ की आग ने वर्षों पुरानी परंपरा की गरिमा को फीका कर दिया। दशहरा उत्सव, जो सदियों से अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, अब व्यक्तिगत स्वार्थ और रणनीति का मंच बन गया है।
वहीं दूसरी ओर अमलाई स्टेडियम, जो अनूपपुर जिले में खेल गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है, रावण दहन आयोजन की खींचतान में विवाद का केंद्र बन गया है। क्षेत्र का इकलौता ग्राउंड होने के कारण खेल प्रेमियों को आयोजन बाधित होने से काफी असुविधा झेलनी पड़ रही है।
कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि समाजसेवियों द्वारा क्षेत्र की सड़कों, नालियों और गलियों की सफाई कराई गई, मगर स्टेडियम की सफाई और जिम्मेदारी उठाने वाला कोई नहीं दिखा और हकीकत सबके सामने है। परंपरा और राजनीति के इस टकराव ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर रावण जलता है या परंपरा की आत्मा?
