झांकी निकालकर परम्परागत व धूमधाम से मनाया गया मित्रता का त्योहार कजलिया पर्व
अनूपपुर
जिले में धूमधाम के साथ कजलियां (भोजली) तिहार मनाया गया, इस दौरान बालिकाओं ने एक दूसरे को सखी बनना कर आजीवन मित्रता निभाने का संकल्प लिया, भोजली के उपज से आने वाले धान के उपज का आंकलन कर किसान भी खुश दिख रहे हैं। प्रकृति प्रेम और खुशहाली जुड़ा है, भोजली तिहार पर्व रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है, इस बार 10 अगस्त को भोजली त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भोजली तिहार को मित्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस त्यौहार को अच्छी वर्षा, फसल और सुख-समृद्धि की कामना के लिए भी मनाया जाता है. यह त्यौहार प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है।
भोजली को सोन मौहरी मे फ़्रेंडशिप व मितान तिहार के रुप मे भी जाना जाता है, अनूपपुर जिले मे भोजली उत्सव के अवसर पर गांव-गांव में भोजली विसर्जन का आयोजन किया गया, सोन मौहरी गांव में बेटियों के साथ महिला-पुरुष व सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप कुमार बैगा, रविंद्र राठौर, अशोक कुमार राठौर, मनोज कुमार राठौर, जगन्नाथ राठौर, रंजन गोंड, श्रीकांत यादव, मनोज राठौर, विजय राठौर, मिथिलेश राठौर, लालू मिस्त्री, सूरज राठौर अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओ ने गाजा बाजा के साथ भोजली विसर्जन किया गया। स्थानीय कलाकारों ने आल्हा और उदल राजा की कहानी से जुड़ी झांकी निकाली और भोजली को देवी गंगा के सामान पवित्र बताते हुए गुणगान किया।
भोजली यानी गेहूं या चांवल को अंकुरित कर नाग पंचमी के दिन अंधेरे कमरे में रख कर उगाया जाता है, महिलाएं इसे देवी-देवता की तरह पूजा करती हैं और सुबह शाम हल्दी पानी का छोड़ काव कर धूप-दीप दिखाती हैं, भजन भी करती हैं। भोजली देकर बड़ों का सम्मान करते हैं, बेटियां एक दूसरे से मित्रता बनाती है और किसान भोजली के ऊंचाई और उसके रंग को देखकर अपने धान की फसल का अंदाजा लगा लेते हैं। सोन मौहरी का पारम्परिक त्यौहार भोजली गांव के एकता और बेटियों के सम्मान के लिए पुराने समय से आयोजित किया जाता रहा है, इस दौरान आल्हा-उदल द्वारा अपनी बहनों के सम्मान की रक्षा के लिए किए गए उपाय को प्रदर्शित करती है, इस परम्परा को आगे भी चलाने के लिए युवा वर्ग को बुजुर्ग जानकारी देते हैं।