डाकघर चला रहे हैं पोस्ट मास्टर के रिश्तेदार, जनता की खून पसीने की कमाई खतरे में

डाकघर चला रहे हैं पोस्ट मास्टर के रिश्तेदार, जनता की खून पसीने की कमाई खतरे में

*उच्चअधिकारियों की देखरेख में फल-फूल रहा गैरकानूनी खेल*


अनूपपुर

जमुना कोतमा स्थित भारतीय डाक विभाग, जिसे दशकों से जनता ने अपने खून-पसीने की कमाई का सबसे सुरक्षित ठिकाना माना है आज जमुना कॉलोनी के पोस्ट ऑफिस में लूट और धोखाधड़ी का संगठित अड्डा बन चुका है एक सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन ने उस सच्चाई की परतें उधेड़ दी हैं जिसे लंबे समय से विभाग के जिम्मेदार चेहरे ढँकते आ रहे थे यह सामने आया है कि किस तरह एक संवैधानिक और भरोसेमंद संस्था को निजी लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है सुरक्षा की चादर तार-तार हो चुकी है, और नियम-कायदों की धज्जियाँ ऐसी उड़ रही हैं, मानो यह कोई पारिवारिक दुकान हो

पोस्ट ऑफिस के ब्रांच पोस्टमास्टर जी. पी. खजूर ने अपने पद की गरिमा को इस कदर रौंद डाला है कि उन्होंने अपने दामाद अलफोंस इक्का को खुलेआम डाकघर की जिम्मेदारी सौंप दी जिसे प्रमाण के तौर पर वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है वह अलफोंस, जो न तो भारतीय डाक विभाग का कर्मचारी है, न किसी प्रकार से अधिकृत लेकिन फिर भी वह वही सब कर रहा है जो एक प्रशिक्षित सरकारी कर्मचारी करता है।

सरकारी नौकरी के लिए जहां आम युवा वर्षों तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं पसीना बहाते हैं इंटरव्यू और दस्तावेज़ सत्यापन की कई सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, वहीं यहां एक दामाद महज़ रिश्तेदारी के बल पर पूरी डाकघर व्यवस्था अपने कब्जे में ले बैठा है यह न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे कुछ लोग सरकारी संस्थानों को अपनी जागीर समझ बैठे हैं।

लेकिन सवाल ब्रांच पोस्टमास्टर से कहीं बड़ा है, क्योंकि यह पूरा गैरकानूनी तमाशा हो रहा है डाक  विभाग के उच्च अधिकारियों की देखरेख में  हैं जो अपनी कुर्सी पर जमे हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो जब मामला खुला तो “कार्रवाई की जाएगी” जैसा घिसा-पिटा बयान देकर उन्होंने आंखें फेर लीं लेकिन सच ये है कि न तो कोई विभागीय जांच शुरू हुई, न कोई एफआईआर, और न ही उस दामाद को रोकने का कोई प्रयास तो क्या यह माना जाए कि उच्च अधिकारी महोदय की चुप्पी महज़ चुप्पी नहीं, बल्कि मौन समर्थन है? क्या यह विश्वास कर लिया जाए कि यह सब उनके संरक्षण में ही संभव हो सका? या फिर यह सब उनकी जानकारी के बिना हुआ, जोकि खुद एक लापरवाही से भी बड़ा अपराध है? जब पूरा सिस्टम ध्वस्त हो रहा हो, और शीर्ष अधिकारी कान में तेल डालकर बैठे हों, तो सवाल सिर्फ कार्यशैली पर नहीं, बल्कि ईमानदारी और नीयत पर उठता है।

जनता अब सवाल कर रही है अगर कल को किसी नागरिक की निजी जानकारी से छेड़छाड़ होती है, या वित्तीय गड़बड़ी सामने आती है, तो क्या उच्च अधिकारी या जीपी खजूर इसका उत्तरदायित्व लेंगे? क्या वे गारंटी देंगे कि उनके संरक्षण में चल रहा यह पारिवारिक ढांचा किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। डाक विभाग की साख दांव पर है, लेकिन उससे भी बड़ा संकट है—जनता के भरोसे का क्योंकि जब भरोसा टूटता है, तो संस्थाएं नहीं, व्यवस्थाएं चरमराती हैं और जब डाकघर जैसे संस्थान रिश्तेदारी और मिलीभगत के सहारे चलने लगें, तो यह सिर्फ खबर नहीं होती—यह लोकतंत्र पर हमला होता है।

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