शासकीय भूमि पर अवैध कब्जे और घर बेचने का गोरखधंधा जोरों पर, प्रशासनिक लापरवाही

शासकीय भूमि पर अवैध कब्जे और घर बेचने का गोरखधंधा जोरों पर, प्रशासनिक लापरवाही 

*पवित्र तीर्थस्थल की गरिमा पर संकट*


अनूपपुर/अमरकंटक

मध्यप्रदेश की पवित्र धार्मिक नगरी अमरकंटक, जहां से मां नर्मदा की उद्गम यात्रा आरंभ होती है, वहां आजकल शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा कर मकान बनाकर बेचने का गोरखधंधा बड़े पैमाने पर फल-फूल रहा है। यह गंभीर मामला न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि तीर्थ की गरिमा और मूलवासियों के अधिकारों पर भी सीधा आघात करता है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में बाहरी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से आने वाले कुछ लोग अमरकंटक की नागरिकता के कागजात तैयार कर शासकीय भूमि पर कब्जा कर लेते हैं। इन लोगों द्वारा मिलीभगत से झोपड़ीनुमा या पक्के मकान बनाए जाते हैं और कुछ समय पश्चात भारी भरकम कीमतों पर उन्हें बेच दिया जाता है। इस व्यापार का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि घर बेचने के बाद कुछ लोग अपने मूल स्थान लौट जाते हैं और कुछ समय बाद पुनः वापस आकर स्वयं को “स्थायी निवासी” बताकर नए सिरे से शासकीय भूमि पर अतिक्रमण कर लेते हैं। इतना ही नहीं, वे दस्तावेजों में नाम भी जुड़वा लेते हैं।

नगर परिषद क्षेत्र के कई वार्डों में इस प्रकार के अवैध कब्जाधारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस गोरखधंधे को कुछ स्थानीय तत्वों एवं शासकीय अमले की चुप्पी से परोक्ष संरक्षण मिलता प्रतीत हो रहा है, जिससे यह धंधा अब संगठित रूप लेने लगा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमरकंटक का शांत, हरित और शुद्ध वातावरण बाहरी लोगों को आकर्षित करता है और यही कारण है कि अल्प लागत में यहां ‘स्थायी निवास’ की चाह रखने वालों की संख्या बढ़ रही है। दुर्भाग्यवश, इसका दोहन असामाजिक तत्वों द्वारा किया जा रहा है।

यदि राजस्व विभाग, नगर परिषद एवं पुलिस प्रशासन संयुक्त रूप से गहन जांच करें, तो सैकड़ों की संख्या में अवैध निर्माण और सौदे उजागर हो सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि समय रहते दोषियों के विरुद्ध सख्त से सख्त वैधानिक कार्यवाही की जाए ताकि इस गोरखधंधे पर पूर्ण विराम लगाया जा सके।  जन अपेक्षा है कि पवित्र नगरी अमरकंटक को अतिक्रमण और अवैध व्यापार से बचाने हेतु प्रशासन तत्काल सजग होकर कार्रवाई प्रारंभ करे। अन्यथा आने वाले समय में यह “धार्मिक स्थल” एक “बाज़ारू अतिक्रमण केंद्र” में परिवर्तित होता नजर आएगा कि नर्मदा उद्गम की प्रतिष्ठा और संस्कृति के लिए अत्यंत दुखदायी होगा।

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