पुराने अनापत्ति प्रमाण पत्र में फर्जीवाड़ा उजागर, खसरा नंबर में ओवरराइटिंग कर किया गया दुरुपयोग
*वर्ष 2013 में विद्युत कनेक्शन के लिए जारी किए गए इस प्रमाण पत्र में संशोधन का आरोप*
अनूपपुर
नगर परिषद जैतहरी में एक दशक पुराने अनापत्ति प्रमाण पत्र में फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है, जिसमें आवेदक द्वारा खसरा नंबर के साथ कथित रूप से ओवरराइटिंग कर दस्तावेज़ में कूट रचना की गई है। वर्ष 2013 में विद्युत कनेक्शन के लिए जारी किए गए इस प्रमाण पत्र में संशोधन का आरोप आवेदक नंदलाल सोनी पर लगाया गया है। प्रारंभिक जांच के बाद नगर परिषद प्रशासन ने तत्कालीन सहायक राजस्व निरीक्षक से तीन दिवस के भीतर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
जानकारी के अनुसार 14 नवम्बर 2013 को नगर परिषद जैतहरी से पत्र क्रमांक 822 के माध्यम से नंदलाल सोनी पिता गोपीलाल सोनी को घर के लिए विद्युत कनेक्शन हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया था। लेकिन वर्तमान में उपलब्ध अभिलेखों के परीक्षण के दौरान यह सामने आया कि खसरा नंबर के स्थान पर ओवरराइटिंग कर विवादित भूमि खसरा क्रमांक 547 की गई है, जबकि उस संशोधित स्थान पर किसी भी अधिकारी के हस्ताक्षर या इनिशियल अंकित नहीं हैं। ऐसे में दस्तावेज़ की वैधता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
प्रमाण पत्र पर तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी भागवत प्रसाद तिवारी के हस्ताक्षर दर्ज हैं। किंतु उनका निधन हो चुका है, जिससे इस संबंध में उनकी ओर से कोई स्पष्टिकरण या पुष्टि संभव नहीं है। इस स्थिति में मामले की गंभीरता और अधिक बढ़ गई है। दस्तावेज़ों की छानबीन में यह संकेत मिल रहे हैं कि प्रमाण पत्र में संभावित रूप से मृत अधिकारी के दस्तखतों का दुरुपयोग कर बदलाव किए गए हैं।
इस संदर्भ में नगर परिषद जैतहरी द्वारा तत्कालीन सहायक राजस्व निरीक्षक पराग दुबे को एक लिखित पत्र जारी किया गया है, जिसमें उन्हें तीन दिनों के भीतर कार्यालय में उपस्थित होकर या लिखित में अपना स्पष्टीकरण देने के लिए निर्देशित किया गया है। परिषद द्वारा जारी पत्र क्रमांक 310/न.प./2025 में संलग्न विवादित प्रमाण पत्र की छाया प्रति के साथ यह जानकारी दी गई है कि उक्त दस्तावेज़ में ओवरराइटिंग संदिग्ध प्रतीत हो रही है और उसके आगे किसी प्रकार की अधिकारी की मान्यता नहीं है।
वहीं पराग दुबे द्वारा पूर्व में दिए गए प्रतिवेदन में यह स्पष्ट किया गया है कि उनके द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र में किसी प्रकार की ओवरराइटिंग या बदलाव नहीं किया गया था। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया है कि प्रमाण पत्र मूल रूप में ही आवेदक को दिया गया था, और यदि उसमें कोई फेरबदल हुआ है, तो वह नंदलाल सोनी द्वारा किया गया होगा। उनका यह भी कहना है कि उनके स्तर पर दस्तावेज़ों की प्रक्रिया पूर्णतः विधिसम्मत रही है।
नगर परिषद प्रशासन इस मामले की जांच गंभीरता से कर रहा है। दस्तावेज़ों के मूल स्वरूप से छेड़छाड़, हस्ताक्षरों की सत्यता और अभिलेखों की प्रमाणिकता की जांच के लिए परिषद ने आंतरिक समिति गठित कर दी है। यदि जांच में यह सिद्ध होता है कि आवेदक द्वारा जानबूझकर दस्तावेज़ों में कूट रचना की गई है, तो यह मामला भारतीय दंड संहिता की धाराओं 420, 467, 468, 471 के अंतर्गत दर्ज हो सकता है।
यह प्रकरण नगर परिषद जैतहरी के दस्तावेज़ीय अभिलेखों की सुरक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। यदि कोई व्यक्ति इतने वर्षों बाद एक प्रमाण पत्र में ओवरराइटिंग कर दस्तावेज़ को संशोधित कर सकता है, तो यह पूरे तंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि पराग दुबे द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला स्पष्टीकरण क्या रूप लेता है और परिषद इस मामले में क्या अंतिम निर्णय लेती है। यदि दोष सिद्ध होता है, तो संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध प्रशासनिक के साथ-साथ कानूनी कार्यवाही भी की जा सकती है।