शिक्षा को मनोरंजन से जोड़ना समय की ज़रूरत, पढ़ाई में बंधन नहीं, स्वतंत्रता जरूरी –जितेन्द्र शुक्ला

शिक्षा को मनोरंजन से जोड़ना समय की ज़रूरत, पढ़ाई में बंधन नहीं, स्वतंत्रता जरूरी- जितेन्द्र शुक्ला 


शहडोल

रोटरी क्लब विराट के तत्वावधान में आयोजित एक प्रेरक विचार मंच पर रोटेरियन जितेन्द्र शुक्ला ने शिक्षा के स्वरूप पर एक बेहद विचारोत्तेजक और प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि पढ़ाई बंधन नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र प्रक्रिया होनी चाहिए, और जब तक शिक्षा में मनोरंजन का तत्व नहीं होगा, तब तक वह प्रभावी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि हर बच्चे को उसका जीवन जीने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। माता-पिता अक्सर अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर थोपते हैं, जो न केवल गलत है बल्कि बच्चों के स्वाभाविक विकास में भी बाधक बनता है।

*डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस बनने का दबाव*

श्री शुक्ला ने बताया कि आज के बच्चों पर डॉक्टर, इंजीनियर या आईएएस बनने का दबाव डाला जा रहा है, लेकिन इस दबाव ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है। बच्चे अब सोच नहीं रहे, सिर्फ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले चीजें सीमित थीं, इसलिए जीवन सरल और अधिक नेचुरल हुआ करता था, लेकिन आज की प्लेटफॉर्म संस्कृति और मोबाइल की भरमार ने बच्चों को असंतुलित कर दिया है।


*मोबाइल और सोशल मीडिया पर चेताया*

बच्चों के सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर मोबाइल का गहरा प्रभाव पड़ रहा है। अब बच्चे खेलों या संवाद की जगह वीडियो और गेम्स में उलझ गए हैं। पहले बर्थडे पार्टीज़ में बातचीत होती थी, अब बच्चे मोबाइल पर स्टोरी पोस्ट करते हैं। उन्होंने कहा, “आज अगर मोबाइल नहीं हो, तो बच्चों को नहीं पता कि क्या करना है।”

&शिक्षा को रोचक बनाना जरूरी*

अपने वक्तव्य के अंत में रोटे. जितेन्द्र शुक्ला ने शिक्षा को मनोरंजक बनाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पढ़ाई में यदि बच्चों को आनंद आने लगे, तो वे खुद-ब-खुद सीखने लगेंगे। इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा प्रणाली में लचीलापन, प्रयोगधर्मिता और रचनात्मकता लाई जाए।टाइम्स गुरुकुलम शहडोल के निदेशक के रूप में जितेन्द्र शुक्ला का यह विचार समाज और अभिभावकों के लिए एक जरूरी संदेश है – "बच्चे पाठ्यपुस्तकों के नहीं, अनुभवों के माध्यम से सीखते हैं। उन्हें आज़ाद सोचने और समझने का अवसर दें।

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