लोकल परचेज़ नहीं, लोकल लूट है, ये में चंदेश्वर दयाल के नेतृत्व में बर्बादी का ‘ब्लैकआउट’

लोकल परचेज़ नहीं, लोकल लूट है, ये में चंदेश्वर दयाल के नेतृत्व में बर्बादी का ‘ब्लैकआउट’

*गूंगी चौकीदारी” में लीन उच्च अधिकारी, यह खदान नहीं, भ्रष्टाचार की कब्रगाह*


अनूपा/कोतमा

जमुना-कोतमा की खदानें एक समय परिश्रम और उत्पादन की मिसाल थीं, लेकिन आज यह ज़मीन श्रमिकों की नहीं, बल्कि भ्रष्टाचारियों की प्रयोगशाला बन चुकी है, इस पतन के केंद्र में है SECL का विद्युत यांत्रिकी विभाग, और उसके मुखिया घोषित "भ्रष्टाचाराचार्य" चंदेश्वर दयाल विभाग का उद्देश्य अब मशीनों को जीवन देना नहीं, बल्कि ‘लोकल परचेज़’ के नाम पर लोकल लूट की व्यवस्था चलाना हो गया है, जिस प्रणाली को कभी आपातकालीन समाधान का जरिया माना गया था, वह आज फर्जी बिलिंग, दलाली, और कमीशनखोरी की कानूनी दुकान में तब्दील हो चुकी है

*लोकल परचेज़ बन चुकी है लूट योजना*.

एमको इलेकॉन (गुजरात), किरलोस्कर पंप, महरथन पंप, बालाजी इलेक्ट्रिकल्स प्रा. लि., और ईएमआई इलेक्ट्रिकल (कोलकाता आधारित) ये पांच कंपनियाँ वर्षों से विभाग की ‘फिक्स मंडली’ बन चुकी हैं, इनके बिना न कोई बिल बनता है, न मरम्मत होती है, न पैसा चलता है। बिना टेंडर, बिना प्रतिस्पर्धा, और बिना गुणवत्ता परीक्षण के इन्हीं से हर बार ऊँचे दामों पर सामग्री और सेवा खरीदी जाती है, हर बिल में एक अदृश्य लेकिन ‘पक्का हिस्सा’ सीधे विभाग की प्रमुख  चंदेश्वर दयाल को चढ़ाया जाता है। मशीनें जैसे ही खराब होती हैं, उन्हें SECL वर्कशॉप में भेजने की बजाय जानबूझकर बाजार भेजा जाता है, जहाँ ‘चहेती दुकानें’ तैयार बैठी होती हैं, मोटा बिल थमाने को असल मकसद मशीन ठीक करना नहीं, बिल बढ़ाना होता है ताकि विभाग अपना “कट” निकाल सके और इस पूरे षड्यंत्र का सूत्रधार, निर्देशक और लाभार्थी  एक ही नाम चंदेश्वर दयाल “दफ्तर में दयाल का मतलब ही ‘डील तय’ हो जाना है।

*वर्कशॉप खामोश, दलाली ज़ोरों पर* 

जिन वर्कशॉप्स को मरम्मत का गढ़ होना चाहिए था, वहाँ ताले लगे हैं लेकिन अधिकारियों के घरों पर दलालों की चहल-पहल और दुकानों से डिलीवरी की फाइलें दिन-रात घूम रही हैं, दफ्तर में न ईमान बचा, न जवाबदेही बस बचा है “कट, कमीशन और कंप्लेसेंसी” और दयाल ने विभाग की मशीनों को मरम्मत नहीं, “मोक्ष” दे दिया है  क्योंकि वर्कशॉप में न तो ईनाम है, न कमीशन, जबकि बाजार में हर पुर्जे का हिसाब “हिस्से” के साथ तय है।

*गूंगी चौकीदारी” में लीन उच्च अधिकारी*

अब सवाल है क्या उच्च अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं? क्या उन्हें नहीं दिखती दलालों की आवाजाही,  बिजली की समस्या और विभाग की सड़ांध? या फिर वे भी इस ‘भ्रष्टाचारीय गठजोड़’ के मूक संरक्षक बन चुके हैं?ऐसा नहीं कि शिकायतें नहीं हुईं, पत्रकारों ने कई बार रिपोर्ट की, श्रमिकों ने पत्र लिखे, लेकिन हर बार कार्रवाई ‘ऊपर से रोक दी गई’  तो क्या ‘ऊपर’ कोई ऐसा अधिकारी बैठा है जो चंदेश्वर दयाल को संरक्षण दे रहा है

*खदान नहीं, भ्रष्टाचार की कब्रगाह*

आज जमुना-कोतमा की खदान सिर्फ कोयला नहीं खोद रही वो ईमानदारी, जवाबदेही और श्रमिक सम्मान की कब्र भी खोद रही है “लोकल परचेज़” अब दैनिक ज़रूरत नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का गेटवे बन चुका है, चंदेश्वर दयाल जैसे अधिकारी एस. ई.सी.एल के लिए नासूर हैं, जबकि उनके खिलाफ चुप रहने वाले अफसर इस सड़ांध के संरक्षक बन चुके हैं, अब वक्त आ गया है कि एस .ई.सी.एल तय करे  खदान बचानी है या रिश्वतखोरों की ढाल बनना है? ईमानदारी को पुनर्जीवित करना है या भ्रष्टाचारियों को पालना है? जनता की सेवा करनी है या दलालों की? यह सिर्फ एक खदान की लड़ाई नहीं, यह सिस्टम के भीतर जमे भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल है, जमुना-कोतमा की जनता अब चुप नहीं बैठने वाली इसकी शिकायत सीबीआई से करेगी।

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