पंचायत में मनरेगा के नाम पर फर्जीवाड़ा, सरपंच ने भाभी के नाम पर भरवाई उपस्थिति, ग्रामीणों में आक्रोश

पंचायत में मनरेगा के नाम पर फर्जीवाड़ा, सरपंच ने भाभी के नाम पर भरवाई उपस्थिति, ग्रामीणों में आक्रोश

 *निष्पक्ष जाँच कर फर्जी भुगतान रोकने ग्रामीणों ने कलेक्टर से किया निवेदन*


अनूपपुर

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी करोड़ों लोगों को राहत देने वाली योजना एक बार फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती दिख रही है। जनपद पंचायत अनूपपुर की ग्राम पंचायत लतार में सरपंच पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उन्होंने अपनी भाभी दुर्गा रौतेल के नाम पर मस्टररोल में फर्जी हाजिरी दर्ज कर, सरकारी धन का दुरुपयोग किया है। स्थानीय ग्रामीणों ने इस मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है और खुलकर आरोप लगाए हैं कि यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि लंबे समय से चल रही गड़बड़ियों की कड़ी है।

सूत्रों के अनुसार, दुर्गा रौतेल ने कभी कार्यस्थल पर हाजिरी नहीं दी, बावजूद इसके मस्टररोल में उनका नाम दर्ज कर भुगतान कराया गया। ग्रामीणों का दावा है कि यह “कागज़ी मजदूरी” का मामला है, जो मनरेगा की पारदर्शिता और जवाबदेही की धज्जियाँ उड़ाता है। ग्रामीणों का कहना है, “असली मजदूरों को काम नहीं मिलता, और सरपंच अपने लोगों को लाभ पहुंचा रहे हैं। पंचायत में यह आम बात हो गई है। स्थानीय लोगों का मानना है कि पंचायत में परिवारवाद हावी है। सरपंच अपने करीबी रिश्तेदारों को फर्जी तरीके से लाभ दिलवा रहे हैं, जबकि जरूरतमंद ग्रामीण बेरोजगार घूम रहे हैं।

जब रोजगार सहायक नरेश लहरे से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने सफाई दी कि, “महिला के पति ही काम पर गए थे, लेकिन उनके पास खाता नहीं था इसलिए पत्नी के नाम से भुगतान किया गया।” हालांकि यह सफाई मनरेगा के दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं मानी जा सकती, क्योंकि योजना में नाम और उपस्थिति की सटीकता अनिवार्य है। गांव के दर्जनों लोगों ने कलेक्टर और जनपद सीईओ से अपील की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, और जब तक जांच पूरी न हो फर्जी नामों पर किया गया भुगतान रोका जाए।

मनरेगा भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत हर ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिन का रोजगार मिलना सुनिश्चित किया गया है। इस योजना का उद्देश्य बेरोजगारी को कम करना और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना है। लतार पंचायत में सामने आया यह मामला एक गंभीर चेतावनी है कि नीचे के स्तर पर योजनाओं की निगरानी और पारदर्शिता पर गहरी नजर डालने की जरूरत है। अगर ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो मनरेगा जैसी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रहेंगी, और जिनके लिए ये बनी हैं, वे खाली हाथ ही रह जाएंगे।

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