भारत सरकार के संविधान हत्या दिवस मनाने के निर्णय पर रोक लगाने की मांग

भारत सरकार के संविधान हत्या दिवस मनाने के निर्णय पर रोक लगाने की मांग

*देश में संवैधानिक संकट पैदा करने वाला नासमझी से भरा निर्णय*


अनूपपुर

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव पार्थसारथी के हस्ताक्षर से 11 जुलाई 2024 को भारत का राजपत्र असाधारण में 25 जून 1975 को संविधान की हत्या होना बताकर प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की अधिसूचना प्रकाशित की गई। दूसरे दिन गृह मंत्री ने ट्वीट करके तथा प्रधानमंत्री ने रिट्वीट करके 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करने की जानकारी देशवासियों को दिया। उसके पश्चात गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध कांग्रेस समर्थित सम्यक अभियान के प्रमुख व सुप्रसिद्ध लेखक भास्कर राव रोकड़े ने दिल्ली, नागपुर,भोपाल,मुंबई, लखनऊ व जयपुर में पत्रकार वार्ता आयोजित कर भारत सरकार के निर्णय को देश में संवैधानिक संकट पैदा करने वाला नासमझी से भरा निर्णय निरूपित किया। श्री रोकड़े ने भारत सरकार के उक्त निर्णय के खिलाफ म.प्र.हाइकोर्ट में याचिका भी दायर की है तथा इंदिरा गांधी के कार्यों व विचारों को हर घर,हर द्वार तक पहुंचाने हेतु चार वर्षीय इंदिरा ज्योति अभियान भी शुरू किया है।

उक्ताशय की जानकारी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देते हुए सम्यक अभियान व इंदिरा ज्योति अभियान के अनूपपुर जिले के जिला समन्वयक सामाजिक कार्यकर्ता भूपेश भूषण शर्मा ने बताया कि श्री रोकड़े ने जुलाई 2024 में ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि 25 जून को "संविधान हत्या दिवस" घोषित कर उनसे बड़ी भूल हो गई है। शीघ्र भूल सुधार न करने से वैश्विक मंच पर भारत की छवि पर विपरीत असर पड़ सकता है। इसके अलावा श्री रोकड़े ने म.प्र.हाइकोर्ट में याचिका दायर कर भारत सरकार के संविधान हत्या दिवस मनाने के निर्णय पर रोक लगाने की मांग किया है।

श्री भूषण ने कहा कि 25 जून 1975 से कुछ दिन पूर्व ही भारत विरोधी देश कुछ भारतीयों को अपने पक्ष में लेकर भारत में अस्थिरता पैदा करना चाहते थे। कुछ नेताओं ने तो तत्कालीन  अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के भारत की आंतरिक राजनीति में जाल बिछाकर इंदिरा हटाओ मुहिम के अनुरूप सार्वजनिक मंच से सेना,पुलिस व प्रशासन से आग्रह किया कि वे इंदिरा सरकार के आदेशों-निर्देशों का पालन न करे। इससे भारत में अस्थिरता पैदा होने के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को खतरे की संभावना बढ़ गई थी। भारत को नुकसान पहुंचाने वालों के मंसूबों को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद 352 के प्रावधानों के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक आपातकाल लागू करने की सिफारिश मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति से की थी तथा राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा 25 जून 1975 को कर दिया था। आपातकाल के दौरान सन् 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय अस्तित्व में आये मीसा कानून अर्थात Maintenance of internal security act तथा डीआईआर अर्थात भारत रक्षा कानून के दुरुपयोग का आरोप आज भी इंदिरा गांधी पर लगाया जाता है। आज भी यह प्रचारित किया जाता है कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत मे निरंकुश प्रणाली से शासन चलता रहा तथा आंतरिक व्यवस्था व सुरक्षा के नाम पर इंदिरा गांधी के विरोधियों को जेल में डाल दिया गया। जबकि मीसा व डीआईआर कानून भारत-पाक युद्ध के समय लागू किए थे। विश्व के सभी देश सीमा पर युद्ध के दौरान अपने देश में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को बनाएं रखने हेतु इसी तरह के कठोर कानूनी प्रावधान लागू करते है। आपातकाल के दौरान मीसा व डीआईआर कानून के दुरुपयोग के आरोपों तथा ज्यादतियों की जांच कई एजेंसियों ने किया। जस्टिस जे.सी.शाह आयोग की भी रिपोर्ट आई। किंतु किसी भी रिपोर्ट में संविधान की हत्या होने की बात सामने नहीं आई। कही-कही पर मीसा व डीआईआर कानून के दुरुपयोग की बात सामने आई किंतु जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि अधिकांश लोगों पर प्रतिबंधात्मक कानून निवारक निरोध अधिनियम 1948 के तहत ही कार्रवाई इस आधार पर की गई थी कि वे एकजुट होकर अस्थिरता पैदा कर सकते है। बाद में कुछ राजनीतिक दलों ने निवारक निरोध अधिनियम के तहत जिन लोगों पर कार्रवाई हुई थी, उन्हें भी मीसाबंदी के नाम से प्रचारित कर दिया। और तो और मीसाबंदियों को सरकार की ओर से पेंशन भी दी जाने लगी। यह विचारणीय बिंदु है कि क्या देश में किसी भी कानून के दुरुपयोग की शिकायत मात्र होने पर प्रभावित व्यक्ति को सरकारी पेंशन देने का प्रावधान है।

श्री भूषण ने कहा कि डॉ. अंबेडकर की रचना संविधान की हत्या की बात सुनकर देशवासियों के मन मे तरह-तरह के सवाल उठ रहे है। देश के अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग का मानना है कि सरकार ने संविधान हत्या दिवस घोषित कर नया संविधान बनाने का मार्ग ढूंढ निकाला है। अब सरकार नया संविधान बनाने की घोषणा कर सकती है तथा डॉ. अम्बेडकर के स्थान पर कोई दूसरा व्यक्ति अब भारत के संविधान का रचनाकार बन जायेगा। यह भी हो सकता है कि तरीका अपनाया गया हो।

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