वन परिक्षेत्र में आग से जलकर खाक हो रही मैकल की सुंदर वादियाँ, जिम्मेदार मौन
*प्रणाम नर्मदा युवा संघ द्वारा वनों को बचाने के लिए किया जा रहा दिनरात प्रयास*
अनूपपुर
मध्य प्रदेश का हिल स्टेशन कहा जाने वाला, मां नर्मदा की उद्गम स्थली अमरकंटक अपने शीतलता और सुरम्य वातावरण के लिए जाना जाता रहा है किंतु वर्तमान में अमरकंटक का तापमान औसत से कई गुना अधिक हो चुका है। अंधाधुंध कंक्रीट निर्माण और जंगलों का आज इसका प्रमुख कारण है। इन दिनों अमरकंटक के जंगल आग से झुलस रहे हैं। इस वर्ष फरवरी माह से ही आग जानी की घटनाएं आने लगी थी, तब से लेकर अब तक लगातार इस तरह की घटनाएं लगातार देखने को मिल रही हैं।
*आखिर आग लगने के कारण क्या है?*
वनों में आग लगने के विभिन्न कारण होते हैं, यह क्षेत्र और स्थान के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। अमरकंटक क्षेत्र में आग लगने के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं, आग लगने का सबसे बड़ा कारण वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत मिलने वाले भूमि पट्टा की लालच में ग्रामीणों द्वारा आग लगा कर खेत बनाया जा सके, यह अधिनियम वनों में पीढ़ियों से निवासरत जनजाति समूहों को व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्तर पर वन अधिकार पट्टा देने का प्रावधान है किंतु सरकार और राजनीतिक पार्टियों द्वारा इसे चुनावी एजेंडा बनाकर ग्रामीणों में लालच को बढ़ा दिया है। इसी लालच के परिणाम स्वरूप वन भूमि को कब्जा करने हेतु सफाई करने के उद्देश्य वनों की तराई में आग लगाया जाता है जो पूरे जंगल को जलाकर राख कर दे रहा है, दूसरा कारण मशरूम (पिहरी/ पुटु) से संबंधित है, ग्रामीणों का मानना है कि आग लगने से अत्यधिक पिहरी/ मशरूम का उत्पादन होगा जबकि यह एक मिथक है। आग लगने का एक बड़ा कारण ग्रामीणों द्वारा पशुओं को चराने हेतु रास्ते के लिए लैंटाना को साफ करने के उद्देश्य से आग लगा दिया जाता है। आग लगने के अन्य कारण भी हैं जैसे महुआ बनने के उद्देश्य से, बड़ी सिगरेट पीकर फेक देने से, वन विभाग की कार्रवाई से नाराज ग्रामीणों द्वारा वन रक्षकों से बदला लेने के उद्देश्य से तथा शिकार करने के लिए पत्तों को साफ करने के उद्देश्य तथा जंगली जानवरों को मारने के उद्देश्य आग लगाई जाती है।
*प्रशासन की भूमिका विचारणीय*
जिला प्रशासन तथा वन विभाग को आगजनी की घटनाओं से निपटने हेतु हाई अलर्ट पर रहना चाहिए था, ऐसी परिस्थितियों में भी वन विभाग अपने पुराने रवैया से कार्य कर रहा है, जिसमें सामान्य दिनों के जैसे ही मानव संसाधन की कमी होने के साथ, ही संसाधनों की कमी आग में काबू पाने के लिए नाकाम साबित हो रही है। प्रशासन द्वारा प्रदत्त ब्लोअर मशीन आए दिन खराब हो रहे हैं, सीमित संख्या के मशीन हजारों हेक्टर के वन भूमि को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, दमकल की गाड़ियां वनों तक पहुंचने में सक्षम नहीं है तथा समय पर उपलब्ध न होने के कारण सड़क के किनारे वाले जंगल भी नहीं बचा पा रहे हैं।
*वनों को बचाने में प्रनयुस का सराहनी प्रयास*
प्रणाम नर्मदा युवा संघ संस्था शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के विषय पर कर रहा है, संस्था द्वारा वनों को आग से बचाने के लिए गांव-गांव में सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हैं, साथ ही आग लगने की स्थिति पर युवाओं की टोली जंगलों में पहुंचकर आग बुझाने का भी कार्य करती है। वन परिक्षेत्र अमरकंटक के बिजोरी बीट में विगत दिन में लगे भयानक आग को काबू पाने के लिए युवा संघ के 35 सदस्यों की दल द्वारा रात 9 बजे से 1 तक आग बुझाने की कड़ी मशक्कत करके आग में काबू पाया गया।