अवैध रेत भंडारण मामला, राजनीतिक दबाव और रंजिश का शिकार न्यायालय ने किया बरी, प्रकरण खारिज
अनूपपुर
जिले के ग्राम पसला में अवैध रेत भंडारण के मामले में न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए आरोपियों अजय मिश्रा और नितिन केशरवानी को बरी कर दिया। न्यायालय ने साक्ष्यों की कमी के कारण इस मामले को खारिज कर दिया। शिकायतकर्ता पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह ने सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप था कि कुछ लोग ग्राम पसला स्थित सोननदी के किनारे अवैध रूप से रेत का उत्खनन और भंडारण कर रहे थे। शिकायत में नामित आरोपियों में राजकुमार राठौर, सीताराम राठौर, विजय प्रतापति, ललन राठौर, अजय राठौर और राजू राठौर का नाम था। हालांकि, शिकायत में अजय मिश्रा और नितिन केशरवानी का नाम नहीं लिया गया था।खनिज निरीक्षक राहुल सांडिल्य द्वारा की गई जांच में यह पाया गया कि दो स्थानों पर 300 घनमीटर रेत का भंडारण किया गया था। भूमि स्वामियों ने यह स्वीकार किया कि रेत उनके खेत में रखी गई थी, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि रेत किसने रखी। इसके बाद खनिज निरीक्षक ने जांच में यह स्वीकार किया कि सीएम हेल्पलाइन में अजय मिश्रा और नितिन केशरवानी का नाम नहीं था, फिर भी इन दोनों का नाम मामले में आरोपी के रूप में सामने आया।पंचनामे और साक्षियों के बयान में भी कई महत्वपूर्ण बिंदु सामने आए। शंकरलाल राठौर ने बताया कि उन्होंने मौके पर मौजूद नहीं रहते हुए पंचनामे पर हस्ताक्षर किए थे, जबकि जुग्गीबाई कोल ने यह बताया कि उन्हें यह नहीं पता कि उनके खेत में रेत किसने रखी। साथ ही, खनिज निरीक्षक ने यह भी स्वीकार किया कि अजय मिश्रा को सूचना नहीं दी गई थी।
*न्यायालय का निर्णय*
कमिश्नर शहडोल के न्यायालय द्वारा मामले की पुनः जांच के आदेश दिए गए थे। इस दौरान साक्षियों के बयान दर्ज कराए गए, लेकिन कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि रेत का भंडारण भले ही पाया गया, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि इसे अजय मिश्रा और नितिन ने ही भंडारित किया था। फरियादी पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा, "मेरे द्वारा की गई शिकायत में इन दोनों आरोपियों का नाम नहीं था। मामला राजनीतिक दबाव और रंजिश का परिणाम था, क्योंकि अजय मिश्रा ने कई बार अवैध माइनिंग के खिलाफ शिकायत की थी। न्यायालय ने सभी साक्ष्यों और गवाहों के बयान को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया। इस मामले में किसी प्रकार की अवैध कार्यवाही साबित नहीं हुई, जिससे यह प्रकरण खारिज कर दिया गया। यह मामला यह स्पष्ट करता है कि हर आरोप के पीछे साक्ष्य का होना जरूरी है और बिना पुख्ता प्रमाण के किसी पर आरोप लगाना गलत हो सकता है।