थाना पहुंचते-पहुंचते बलेनो बनी डिजायर, नामजद आरोपी का नाम दबाने में जुटी है पुलिस
*पिपरिया में हुई वृद्ध की मौत का मामला*
अनूपपुर
पिपरिया में हुए एक सड़क हादसे ने न केवल एक वृद्ध की जान ले ली, बल्कि पुलिस की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक, हादसे में शामिल गाड़ी एक मारुति बलेनो थी, लेकिन जब मामला कोतमा थाना पहुंचा तो वह गाड़ी मारुति डिजायर बन चुकी थी। इस घटना के बाद क्षेत्र में चर्चा है कि पुलिस जानबूझकर मामले को मोड़ने की कोशिश कर रही है ताकि एक कुख्यात शराब माफिया बाबू खान का नाम उजागर न हो। प्रत्यक्षदर्शियों और सूत्रों के अनुसार, अवैध शराब से लदी बलेनो को शराब ठेकेदारों के आदमी पीछा करते हुए पिपरिया तक पहुंचे थे, जहां गाड़ी ने वृद्ध को टक्कर मार दी।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि जिस गाड़ी से दुर्घटना हुई वह बाबू खान के नेटवर्क से जुड़ी थी, लेकिन पुलिस ने न तो एफआईआर में उसका नाम दर्ज किया और न ही गाड़ी के असली मालिक की पहचान उजागर की। यह वही बाबू खान है, जिसका नाम पूर्व में भी अवैध शराब के कारोबार में आ चुका है, लेकिन हर बार कोतमा पुलिस ने उसे बचा लिया। सूत्र बताते हैं कि बाबू खान के पास कई ऐसी गाड़ियां हैं जो उसके नाम पर नहीं हैं। कोतमा थाने में बरसों से खड़ी सफारी हो या होली पर पकड़ी गई स्कॉर्पियो – हर बार कोई न कोई तकनीकी खामी पुलिस कार्रवाई को रोक देती है।
बाबू खान की जड़ें उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और बनारस से जुड़ी बताई जाती हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए अब जांच टीम कोतमा, शहडोल, बनारस और गहमर तक भेजी जा रही है। सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट रहा है। सभी पूछ रहे हैं – अगर हादसा बलेनो से हुआ, तो डिजायर थाने कैसे पहुंची? गाड़ी का नाम बदलने के पीछे कौन है? आरोपी का नाम एफआईआर में क्यों नहीं है। इस पूरे मामले ने कोतमा पुलिस की निष्पक्षता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। अब देखना यह होगा कि सोशल मीडिया के बढ़ते दबाव और जनता की जागरूकता के बीच पुलिस क्या कदम उठाती है – कार्रवाई या फिर एक और लीपापोती।