हवा या आसमान निगल गई करोड़ों की धान, संभाग में 4.88 करोड़ की धान गोदाम से गायब, कौन है जिम्मेदार

हवा या आसमान निगल गई करोड़ों की धान, संभाग में 4.88 करोड़ की धान गोदाम से गायब, कौन है जिम्मेदार

*लैंप्स समितियों के प्रबंधकों को भरना पड़ेगा गायब धान की कीमत*


शहडोल

शहडोल संभाग के तीन जिलों शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में 4 करोड़ 88 लाख रुपये की धान गोदाम तक पहुंचते-पहुंचते हवा हो गई है। अब इसका खामियाजा लैंप्स समितियों के प्रबंधकों को भरना पड़ेगा, शहडोल जिले में खरीफ सीजन के तहत 30 हजार 186  किसानों से खरीदी गई 20 लाख मीट्रिक टन धान में से करीब 3 करोड़ 68 लाख रुपये कीमती 16 हजार क्विंटल धान गायब हो गई,  जब इस धान को गोदाम में तौलने की बारी आई, तो मामला चौकाने वाला निकला, धान कम निकली और ये सिर्फ शहडोल की कहानी नहीं है। शहडोल संभाग के उमरिया में 2,542 क्विंटल और अनूपपुर में 2,710 क्विंटल धान कम पाई गई है।तीनों जिलों में कुल नुकसान,करीब 4 करोड़ 88 लाख रुपये है।

जिले में खरीफ सीजन के दौरान 30 हजार 186 किसानों से 30 लैंप्स समितियों के माध्यम से खरीदी गई लगभग 20 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी गई, जब इसे गोदाम में पहुँचाया गया तो 3 करोड़ 68 लाख रुपये अनुमानित कीमती 16,000 क्विंटल धान कम पाई गई, काफी कम मात्रा में धान दर्ज हुई, जांच में सामने आया कि एनसीसीएफ (नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन) एजेंसी, जिसे शासन ने इस सीजन के उपार्जन का पायलट प्रोजेक्ट सौंपा था, जिसे उक्त कंपनी द्वारा  समय पर धान का परिवहन नहीं किया, नतीजा  धान खुले में पड़ी रही, जिससे वह सूख गई और वजन में कमी आ गई, प्रदेश शासन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, धान खरीदी के 72 घंटे के भीतर उठाव जरूरी है। लेकिन एनसीसीएफ द्वारा देरी की गई, जिसके कारण करोड़ों की धान खराब हो गई।

शहडोल जिले में अकेले 3 करोड़ 68 लाख रुपये की अनुमानित  16,000 क्विंटल धान गोदाम में काफी कम मात्रा में दर्ज होने पर शहडोल जिला सहकारी केंद्रीय बैंक ने उपायुक्त सहकारिता को पत्राचार कर समिति प्रबंधकों से वसूली की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए हैं।धान की कमी का यह मामला केवल शहडोल तक सीमित नहीं है। शहडोल संभाग के शहडोल अनूपपुर और उमरिया जिले में भी ऐसी ही स्थिति सामने आई है।शहडोल संभाग के शहडोल  में 16.000 क्विंटल धान व उमरिया जिले  में 2,542 क्विंटल और अनूपपुर जिले  में 2,710 क्विंटल धान कम पाई गई है।तीनों जिलों में कुल नुकसान,करीब 4 करोड़ 88 लाख रुपये है।

प्रशासन अब संबंधित लैंप्स समितियों के प्रबंधकों से वसूली की तैयारी में है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस लापरवाही के लिए केवल समितियां जिम्मेदार हैं या एनसीसीएफ एजेंसी की देरी पर भी कार्रवाई होगी? किसानों को समय पर भुगतान नहीं मिलने, और सरकारी अनाज की सुरक्षा में चूक का यह मामला अब राज्य शासन के उच्च स्तर तक पहुँच चुका है। यह घटना सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि कृषक हितों की अनदेखी और सरकारी धन के नुकसान का गंभीर मामला है। समय रहते जवाबदेही तय नहीं हुई, तो आने वाले सीजन में कृषि उपार्जन प्रणाली पर सवाल खड़े होंगे।अब सवाल उठता है कि क्या सिर्फ लैंप्स प्रबंधक ही जिम्मेदार हैं या एनसीसीएफ एजेंसी की देरी पर भी होगी कोई कार्रवाई? क्या इस लापरवाही की कीमत सिर्फ कागजों में तय होगी या दोषियों तक पहुंचेगा सिस्टम का डंडा।

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