कैसे हमारे सुबह के अखबार हो गए- एक-एक करके तेरे तरफदार हो गए, प्रलेस कवि सम्मेलन में हुआ रचना पाठ

कैसे हमारे सुबह के अखबार हो गए- एक-एक करके तेरे तरफदार हो गए, प्रलेस कवि सम्मेलन में हुआ रचना पाठ


देवास

प्रगतिशील लेखक संघ राज्य कार्यकारिणी की बैठक के अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में अनेक कवियों- कवियत्रियों ने समसामयिक संदर्भों में रचना पाठ किया। कवि सम्मेलन की सदारत श्रीमती प्रतिभा चन्द्र कुमारी ने की। मंच की शोभा सर्व श्री विनोद मंडलोई, अजीज रोशन, ओकारेश्वर गोयल, कैलाश सिंह राजपूत श्रीमती कुसुम वागड़े ने बढाई। संचालक थे डॉक्टर जुगल किशोर राठौर।

                इस अवसर पर वरिष्ठ शायर इस्माइल नज़र शेख ने अपनी ग़ज़ल में मीडिया पर शासकों और कार्पोरेट के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करते हुए पढ़ा कि *कैसे हमारे सुबह के अखबार हो गए- एक-एक करके तेरे तरफदार हो गए। हालात ने शरीफों को मजबूर कर दिया, डाकू- लुटेरे साहिबे दस्तार हो गए* बेटियों पर उन्होंने ग़ज़ल में कहा कि *जन्नत हमारे घर को बनाती है बेटियां...* राधेश्याम पांचाल ने अपने मुक्तक में कहा कि *मेरी ग़ज़ल में प्यार के सपने टटोलना, एकाकी रात में कभी दिल को खोलना...* अजीम भाई ने पढ़ा *शोहरत मिली तो सुहाने लगे मुझे, इस मोड़ पर आने में जमाने लगे मुझे। मेरे अजीज भी कमजर्फ लोग हैं, एहसान करके जताने लगे मुझे।* वतन के प्रति अपनी मोहब्बत को का इजहार करते हुए अजीज वारसी ने ग़ज़ल में कहा *इश्क और अम्न की पहचान कहा मैंने, दिल कहा कभी जान कहा मैंने। जब भी पूछा क्या है अजीज ?, चूम कर मिट्टी हिंदुस्तान कहा मैंने।     अंधविश्वासों की बेचैनी को श्रीमती कुसुम वागड़े ने इस तरह व्यक्त किया  *धार्मिक जालों में फंसी मैं छटपटा रही मकड़ी की तरह...* को सराहा गया। वर्तमान संदर्भों पर राजेश चौधरी ने कहा कि *न चांद न चकोर पर, गीत लिख रहा हूं आज के हालात पर। मजदूरों के घाव पर छाले पड़े पांव पर, गीत लिख रहा हूं उजड़े हुए गांव पर।* डॉ उमा श्रीवास्तव ने बेटी का मां के साथ संवाद कविता के माध्यम से परिवारों में बेटियों के पक्ष को उजागर किया। श्रीमती प्रतिभा चंद्र कुमार ने उद्घोष करते हुए कहा कि *पीछे नहीं हटेंगे, आत्मबल से बढ़कर आगे हम बढ़ेंगे* सम्मेलन में दीप्ति निगम, आशीष कुशवाह, प्रीति चौधरी, केसी नागर, रेखा उपाध्याय, डॉ शिव नंदन वर्मा, पवन कुमार मालवीय, बबीता चौहान, श्रीमती पदमा, गुलरेज अली, अकबर, चांद अंजुम ने भी अपनी रचनाएं सुनाई। प्रारंभ में जनगीत मुस्कान ने प्रस्तुत किया। आभार माना रमेश चंद्र जोशी ने।

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