कौन होगा अध्यक्ष संशय बरकरार, विकास के लिए परिषद का गठन पार्षद करें बिकाऊ घोड़े नहीं

कौन होगा अध्यक्ष संशय बरकरार, विकास के लिए परिषद का गठन पार्षद करें बिकाऊ घोड़े नहीं


*50 लगा कर 100 कमाने की जुगत मतदाताओं का घोर अपमान*

*( चुभती बात -- मनोज द्विवेदी, अनूपपुर- मप्र )*


2013 के बाद जिला मुख्यालय अनूपपुर नगरपालिका परिषद हेतु  पिछले महीने चुनाव प्रक्रिया पूरी की गयी। इसके साथ अमरकंटक, डोला, बनगंवा, डूमरकछार और पसान का चुनाव भी सम्पन्न हुआ। प्रत्यक्ष प्रणाली से अध्यक्ष का निर्वाचन ना होने से पार्षदों के लिये मतदान किया गया। दलगत चुनाव होने के बावजूद नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा ,कांग्रेस सहित अन्य दलों का दखल या प्रयास शून्य समीप था। प्रत्याशियों ने अपने बूते चुनाव लड़ा और जीता -- हारा। अनूपपुर , पसान चुनाव में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री बिसाहूलाल सिंह की पूरी छाया थी , शेष में ना सत्ता और ना संगठन । सोशल मीडिया और फोटो शूट की रस्म अदायगी महज बन कर रह गया था। पिछले अन्य चुनाव की तरह ना प्रदेश से मंत्री, मुख्यमंत्री आए और ना ही संगठन का कोई शीर्ष नेता। दो घंटे की यात्रा पर प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा का आगमन हुआ भी तो उनके कार्यक्रमों से सांसद, पूर्व विधायकों ,जिला पंचायत के दावेदारों , दूसरे - तीसरे क्रम के सभी नेताओं ,वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को दूर रखने के कारण बे - असर रहा। बहरहाल निर्वाचन परिणाम सामने है, अनूपपुर सहित अन्य नगरपालिकाओं मे कहीं भी भाजपा स्पष्ट बहुमत में नहीं है। कुछ स्थानों पर बहुमत के समीप होने के बावजूद सत्ता - संगठन का कड़क निर्णय ना होने से भाजपा और भाजपा के बाहर के बागी पार्षद पतियों, उनके रिश्तेदारों का दखल अधिक होने से पेंच फंसा हुआ है।

     अनूपपुर परिषद में 15 में से  भारतीय जनता पार्टी के सात पार्षद निर्वाचित हो कर आए हैं जबकि कांग्रेस के तीन सदस्य ही हैं। लेकिन सांठगांठ इतना मजबूत है कि कुछ निर्दलीय और कांग्रेस पार्षद पति,  अध्यक्ष बनाने -- बनने का दावा कर रहे हैं।

    अलग- अलग भस्मासुरी कारणॊं से और भ्रष्टाचार के पुष्ट शिकायतों के कारण पिछली परिषदों ने ऐसा कुछ ठोस कार्य जनता के हित में नहीं किया है कि जिससे अनूपपुर को जिला मुख्यालय का स्वरूप मिल जाए। इससे बहुत अच्छा अमरकंटक, जैतहरी, कोतमा, बिजुरी, धनपुरी, बुढार की परिषदों ने कार्य किया है। 2022 नगरीय निकाय चुनाव में कुछ बदलाव की बयार चली है तो उसके पीछे आम मतदाताओं की यही मंशा है कि नयी परिषद , नये युवा, ईमानदार हाथों में सौंपी जाए। जिससे वे अधिक स्वतंत्रता से जनहित के कार्य कर सकें। यह बिल्कुल ना हो कि परिषद गठन से पहले ठेकों और कमीशन का निर्धारण होने लगे, बोलियाँ लगें , रेट तय होने लगे और जिम्मेदार जनप्रतिनिधि स्वत: अपने कर्तव्यों से मुंह चुराते भागते दिखें। जनता सारा तमाशा खुले आंखो से , खुले मन से देख , समझ रही है। 

कोई ऐसी गलती सत्तारूढ़ दल के जिलाध्यक्ष और मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री ना कर बैठें कि जिसका परिणाम 2023 -- 24 के चुनावों में पार्टी को उठाना पड़े ।

2018 विधानसभा चुनाव के पूर्व लालच और साजिशों का जो खेल अमरकंटक, जैतहरी, पसान, कोतमा, बिजुरी में खेला गया ,उसका दुष्परिणाम मध्यप्रदेश की सत्ता गंवा कर उठाना पड़ा था । तब भाजपा अनूपपुर जिले की तीनों सीटें हार गयी थी।

      2022 नगरीय निकाय चुनाव पर पूरा नियंत्रण मध्यप्रदेश शासन के मंत्री बिसाहूलाल सिंह और जिलाध्यक्ष ब्रजेश गौतम का है। अनूपपुर नगरपालिका में विकल्प सीमित लेकिन सत्तारुढ दल के पक्ष में हैं। अध्यक्ष सामान्य महिला सीट होने के कारण भाजपा की तीन निर्वाचित महिला पार्षदों में से चयन करना होगा। कुछ तत्व जाति विशेष का विरोध बीज बोकर यहाँ - वहाँ षड्यंत्र करते देखे जा रहे हैं। ऐसे लोग स्वार्थ की राजनीति करते हुए भाजपा के हितों को बलाए ताक रख चुके हैं। वार्ड 12 और वार्ड 1 के निर्दलीय पार्षदों ने मंत्री और जिलाध्यक्ष के सामने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में समर्थन की घोषणा की है। इसी तरह वार्ड 14 एवं 15 के बागी पार्षदों का बैक ग्राऊंड भाजपा का है, वो भाजपा से बाहर ना जाने की बात कह रहे हैं। इसके अतिरिक्त दो अन्य पार्षदों का रुख भाजपा स्नेहियों का है । अलग - अलग कारणों से वो कांग्रेस से पर्याप्त दूरी बना चुके हैं। 

  राजनीति में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चालें चली जाती हैं। दावे - प्रतिदावे भी किये जाते हैं। 

जिले में तमाम अफवाहों का बाजार गर्म है, सत्य और झूठ के बीच अन्तर करना मुश्किल है।

  कोई कहता है कि फलाने वार्ड का ढिमाका पार्षद बड़े नेता के पास 65 लाख जमा कर आया, उसका अध्यक्ष बनना तय है। तो कहीं चर्चा और दावा इस बात का है कि सोनाली कमलेश तिवारी तो बिल्कुल भी नहीं बन सकती। यदि उसे बनाया गया तो बागी पार्षदों में से कुछ लोग भाजपा में सेंध लगा कर अपना अध्यक्ष बना लेगें। शोर बहुत है....उतना ही सन्नाटा भी है। एक सप्ताह बाद परिषदों की तस्वीर साफ हो जाएगी।

इतना बिल्कुल स्पष्ट है कि जिम्मेदार सत्तारूढ़ दल होने के कारण मंत्री बिसाहूलाल सिंह और जिलाध्यक्ष ब्रजेश गौतम पर इस बात के लिये सर्वाधिक दबाव होगा कि नगर विकास के लिये भाजपा की स्वच्छ, ईमानदार, मजबूत परिषद बने । जिसका निर्वाचन भाजपा पार्षदों से हो ....ना कि ऐसे घोड़ों से जिनकी बोली लाखो मे लगाई जा रही हो। यह स्पष्ट है कि समय तेजी से बदल रहा है। भ्रष्टाचार पर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और प्रदेश में शिवराज सरकार की पैनी नजर है। 50 लगा कर 100 कमाने के मंसूबे पाले लोगों को यदि कुअवसर मिल गया तो नगर दस साल फिर पीछे चला जाएगा। विकास पुरुष का तमगा लगाए मंत्री जी को यह बिल्कुल भी मंजूर नहीं होगा और ना ही आगामी चुनावों को देखते हुए जातिगत समीकरण के जाल में उलझना पसंद  करेंगे। सत्ता और संगठन की यह अधिक जवाबदेही है कि चुनाव की स्वच्छता, निष्पक्षता बनाए रख कर जनादेश का पूरा सम्मान सुनिश्चित करवाएं।

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