टरटारने वाले बरसाती मेढ़क जैसे नेता सड़को से गायब, महामारी में अकेले जूझ रही जनता


टरटारने वाले बरसाती मेढ़क जैसे नेता सड़को से गायब, महामारी में अकेले जूझ रही जनता


(अजय मिश्र की कलम से)

अनूपपुर

राजनीति जनसेवा के लिए होती है। लोकतंत्र में न कोई बड़ा होता है न कोई छोटा। सभी का समान अधिकार होता है। लेकिन जो लोग सत्ता में होते हैं उन्हें कुछ ज्यादा अधिकार मिले होते हैं, ताकि वे अपनी जिम्मेदारी निभा सके। लोगों की सेवा कर सके। जनप्रतिनिधि हो या फिर सरकार के नुमाइंदे यदि अपने अधिकारों का निर्वहन देशहित व जनसेवा के लिए करते हैं तो उन्हें विशिष्ट मानने, कहने, समझने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन कोई जनप्रतिनिधिय सोचे कि मैं नेता हूं, मंत्री हूं, मैं जनता के लिए नहीं बल्कि जनता मेरे लिए है, मैं बड़ा हूं, न कि जनता। तो यह भावना, सोच व दृष्टि जनता के लिए बेहद गंभीर व खतरनाक है।


*कोरोना से नेता हुए भयभीत, धारण कर मौन बनाई दूरी*

केंद्र और प्रदेश सरकार के हर कदम और हर निर्णय का गुणगान करने वाले सत्ताधारियों व पुरजोर विरोध करने वाला आंदोलनजीवी विपक्ष, आज दोनो जनता की समस्याओं के सामने दूर-दूर तक दिखायी नहीं पड़ रहा। आम आदमी ऑक्सीजन के लिए सुबह से शाम तक भटक रहा है वहीं सड़क पर तड़पते मरीज की बात तो आम हो गई है। लेकिन क्या पक्ष-क्या विपक्ष, लगता हैं कि दोनो कोमा में है, कोविड संक्रमण के दौरान विपक्षी पार्टियां भी आंदोलन तो दूर बल्कि कुछ बोलने से भी बच रही हैं। डीजल पेट्रोल, महंगाई या फिर जीएसटी। किसी भी मुद्दे पर आम आदमी को होने वाली छोटी सी समस्या भी विपक्ष के लिए राजनीतिक रोटी सेंकने का बड़ा तवा बन जाती है। जानकार इसके पीछे का कारण बताते हैं कि कोविड महामारी की गंभीरता को हर आदमी समझ रहा है। इसमें विपक्षी पार्टियों के वह नेता भी हैं जो कभी सरकार को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। आज जब अस्पताल में बेड नहीं है, ऑक्सीजन के लिए मारामारी मची है, शमशान शवों से भरे जा रहे हैं बावजूद इसके सरकारी तंत्र के खिलाफ विपक्षी पार्टियां भी शांति बनाए हुए हैं। कोविड को लेकर आम आदमी को राहत दिलाने के ध्वस्त सरकारी दावों और सिस्टम पर कांग्रेस बोलने को तैयार नहीं है और न ही उनके नेता सवाल करने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं। दरअसल सभी जानते हैं कि कोविड की बीमारी घातक है ऐसे में विरोध करने निकले तो उन्हें आम आदमी के बीच जाना होगा। अस्पताल, कब्रगाह या फिर शमशान घाट तक जाना पड़ सकता है। चूंकि समय ऐसा है कि बाहर निकले तो कब कोरोना की चपेट में आएंगे कोई नहीं जानता है। ऐसे में यह नेता भी खुद को आम आदमी की समस्याओं से फिलहाल दूर ही रखे हैं।


*स्वास्थ्य केंद्र आज भी अपने उद्धारक की बाट जोह रहे*

कोरोना के समय सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था चर्चा का केंद्रबिदु बना हुआ है। हो भी क्यों नहीं, वैश्विक महामारी कोरोना से लोग असमय काल के मूंह में जो जा रहे हैं। ऐसे में अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को भगवान भरोसे छोड़ने की बात कही जाए। जिले में चाहे पीएचसी हो या फिर सीएचसी या फिर जिला अस्पताल सब खुद बीमार नजर आते हैं। जिले के लगभग 9 लाख से अधिक की आबादी के इलाज का जिम्मा पीएचसी और सीएचसी अस्पताल पर है। इन अस्पतालों में सृजित कुल  पद के विरुद्ध महज़ कुछ ही चिकित्सक उपलब्ध हैं। यह आंकड़ा सरकार व जनप्रतिनिधियों को आईना दिखा रहा है वहीं कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का दर्जा प्राप्त पीएचसी में एक भी एमबीबीएस चिकित्सक नहीं है। यहां जर्जर भवन, चिकित्सकों की कमी सहित अन्य समस्याओं का अंबार है। जिला अस्पताल को छोड़कर किसी भी पीएचसी में जांच के नाम पर एक्स-रे तक की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।


*जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को भगवान भरोसे छोड़ दिया*

स्थानीय निवासियों कि माने तो क्षेत्रवासियों की स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे है। लोगों ने कहा कि जिला अस्पताल को रेफर हॉस्पिटल नाम रख देना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं की इस बदहाली को स्वीकार करते हुए सिविल सर्जन कहते हैं कि फिलहाल जितने चिकित्सक हैं उन्हीं से कार्य लिया जा रहा है, चिकित्सक उपलब्ध होने पर उन्हें पदस्थापित किया जाएगा। जबकि जिले में कोरोना का कहर बढ़ता ही जा रहा है, ऐसे में स्वास्थ्य विभाग एवं जिला प्रशासन को ज्यादा गंभीरता से कार्य करना चाहिए। किन्तु हालातों के मद्देनजर कोरोना मरीज़ों को लेकर जिम्मेदार ज्यादा गंभीरता दिखाई नहीं पड़ रहे। वह तो केवल मंत्रियों व विधायक को ही शिफ्ट करने को अपना कर्तव्य पालन मानते नज़र आते हैं, वहीं आम आदमी को उसके हाल पर ही छोड़ दिया जाता है। इन सब बातों को लेकर जिला प्रशासन लापरवाही बरत रहा है, जिसका दुष्परिणाम आने वाले समय में पूरा जिला भुगतेगा।

*सभी दलों के नेताओं से करें सवाल कि मुसीबत के वक़्त आप कहाँ हैं - अजय मिश्र*

जिले के वरिष्ठ पत्रकार अजय मिश्र ने जिले की जनता से अपील की है कि आम लोग कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में सभी दलों के नेताओं से यह सवाल करें कि मुसीबत के वक़्त आप कहाँ हैं। अजय मिश्र ने कहा की जब जनता परेशानी में हैं तो नेताओं को सिर्फ अपनी जान की पड़ी हैं वही दूसरी ओर डॉ, नर्स, प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नुमाइंदे, पुलिस के जवान, सफाई कर्मचारी भी तो इंसान हैं। क्या इन लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है, क्या सिर्फ राजनीतिक दलों के नेताओं की जान की कीमत होती है.? अजय मिश्र ने बड़े ही गुस्से में कहा की जब गरीब अपने जनप्रतिनिधियों को आँखे फाड़-फाड़ कर उनकी ओर इस उम्मीद में देख रहा है की कही से कुछ सहायता मिल जाय, लेकिन इस वक्त भी कोई सामने नहीं आ रहे। बीते वर्ष ही नेताओं को लगा की अब चुनाव होने वाले हैं तो तमाम दलों के नेता बिल से बाहर आ गए और शहरों को बड़े-बड़े होर्डिंग्स से पाट दिया, रैली करने लगे तो किसी नेता ने अपने कार्यकर्ताओं से संवाद करना सुरु कर दिया। लेकिन कोरोना वायरस से किसको कितनी परेशानी हुई इससे किसी भी नेताओं को कोई मतलब नहीं, उन्होंने कहा की सभी दलों के नेताओं ने चुनाव में उनकी पार्टी कैसे जीत हासिल करे इसके लिए प्रचार प्रसार में लगे रहे। किसी दल ने एक भी होर्डिंग नहीं लगवाई जिसमें कोरोना वायरस से बचाव के उपाय बताए गए हो.? जिले से बाहर अपनी रोजी रोटी की तलाश में दूसरे प्रदेशों में गए  कामगारों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया और जब किसी तरह कामगार आए तो उन्हें राजनीतिक दलों ने वोट बैंक मानकर उनके सामने घड़ियाली आँसू बहाना शुरू कर दिया ये जताने कि वापस आए लोगों के ये सच्चे हितैसी हैं।

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