दिन में जलती हैं स्ट्रीट लाइट,  लाखों का नुकसान, सीएमओ की चुप्पी पर सवाल


शहडोल

नगर परिषद बकहो में स्ट्रीट लाइट व्यवस्था से हो रहा लगातार आर्थिक नुकसान अब प्रशासनिक उदासीनता का बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है। जानकारी के अनुसार नगर परिषद बकहो क्षेत्र में लगी 90 वाट की लगभग 200 स्ट्रीट लाइटें सुबह 11:30 बजे तक दिन के उजाले में भी चालू रहती हैं, जिससे परिषद को प्रतिदिन हजारों रुपये का अनावश्यक नुकसान उठाना पड़ रहा है। प्रतिवर्ष अनुमानित नुकसान लगभग ₹2.26800/- लाख यह राशि नगर परिषद के विकास कार्यों के बजट से सीधे कटकर बेवजह बिजली बिल में खर्च हो रही है।

आधी ड्यूटी, पूरी व्यवस्था लावारिस सूत्रों के अनुसार नगर परिषद बकहो में पदस्थ इलेक्ट्रिशियन जितेंद्र दाहिया नगर परिषद बकहो में सुबह 12.00 बजे तक ड्यूटी पर उपस्थित लगने पहुंचते हैं। इसके बाद स्ट्रीट लाइट नियंत्रण और निगरानी की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं रहती, जिसके चलते दिन में भी लाइटें बंद नहीं हो पातीं। मुख्यालय में निवास न करना, नियमों की अनदेखी नगर परिषद बकहो के कई कर्मचारियों द्वारा—पदस्थ मुख्यालय बकहो में निवास नहीं किया जा रहा है,बल्कि शहडोल से आकर सीमित समय ड्यूटी कर वापस लौटने की बात सामने आ रही है। जबकि मध्यप्रदेश नगर पालिका कर्मचारी सेवा नियम, 1968 के तहत कर्मचारियों का मुख्यालय में रहना अनिवार्य है। लोक सेवक द्वारा जानबूझकर लापरवाही बकहो सीएमओ की निष्क्रियता पर उठ रहे सवाल सबसे अहम सवाल यह है कि इतनी स्पष्ट जानकारी, लिखित शिकायत और आर्थिक नुकसान के बावजूद मुख्य नगर पालिका अधिकारी बकहो द्वारा अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई। न तो—विभागीय जांच शुरू हुई,न जिम्मेदारी तय की गई,न ही आर्थिक नुकसान की रिकवरी का आदेश जारी हुआ। जानकारों का कहना है कि कार्रवाई न करना भी सेवा अपराध की श्रेणी में आता है।अब ऊपर से कार्रवाई की मांग तेज स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों द्वारा मांग की जा रही है कि—जिला कलेक्टर शहडोल इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराएं जिम्मेदार कर्मचारी के साथ-साथ कार्रवाई न करने वाले अधिकारियों की भी जवाबदेही तय हो नगर परिषद को हुए नुकसान की रिकवरी सुनिश्चित की जाए।

नगर परिषद में सिविलियन कर्मचारियों का भुगतान विवाद में, काम के बिना भुगतान का सवाल


शहडोल

नगर परिषद बकहो में सिविलियन कर्मचारियों के बिना काम किए भुगतान का मामला अब गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक विवाद में बदल गया है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार कर्मचारी केवल हाजिरी लगाते हैं, वास्तविक कार्य पूरी तरह अनुपस्थित रहते हैं भुगतान सिर्फ हाजिरी के आधार पर किया जा रहा है कौन-सा काम कराया जा रहा है, इसका कोई GPS / फोटो / वीडियो प्रमाण नहीं है कौन-से फंड से भुगतान हो रहा है, यह भी अस्पष्ट है। इस कारण नगर परिषद का आर्थिक फंड अनियमित रूप से खर्च हो रहा है, जबकि वास्तविक नागरिक सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।

कर्मचारी सुबह हाजिरी लगाकर अर्ध-दिवसीय या लापरवाह ड्यूटी करते हैं बाद में रफू-चक्कर, कार्यालय में अनुपस्थित रहते हैं इसके बावजूद नगर पालिका द्वारा मासिक भुगतान किया जाता है काम का कोई प्रमाण जैसे GPS लोकेशन, फोटो या वीडियो उपलब्ध नहीं। भुगतान केवल नगर परिषद के सामान्य या योजना फंड से हो रहा है यह स्थिति लोक धन के दुरुपयोग की ओर इशारा करती है।

स्थानीय स्तर पर यह भी चिंता का विषय है कि—मुख्य नगर पालिका अधिकारी (CMO) साक्ष्य और शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं। यदि ऐसा चलता रहा, तो सीधे लोक धन का दुरुपयोग और नियमों का उल्लंघन माना जाएगा इस कारण जिला कलेक्टर, संभागायुक्त और नगरीय प्रशासन विभाग भोपाल तक हस्तक्षेप की मांग उठ रही है। अब क्या कदम उठाए जा सकते हैं अगर शहडोल जिला प्रशासन शिकायतो  पर दोषी कर्मचारियों और प्रशासनिक अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई। भुगतान की रिकवरी और रोकथाम सुनिश्चित करना अगर जिम्मेदारों ने कार्यवाही नहीं की तो लोकहित के लिए हमारे क्षेत्र के आर्थिक क्षति को लेकर के आवश्यकता पड़ने पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर किया जायेगा।

वन भूमि पर अवैध निर्माण का आरोप, बिना अनुमति मुक्तिधाम निर्माण से वन एवं वन्यजीवों को नुकसान


कोतमा।

जिले में वन परिक्षेत्र कोतमा अंतर्गत सकोला बीट की वन भूमि पर बिना विभागीय अनुमति के मुक्तिधाम का निर्माण किए जाने का गंभीर मामला सामने आया है। जानकारी के अनुसार नगर पालिका परिषद पसान के वार्ड क्रमांक 17 में केवई नदी पुल के नीचे वन विभाग की स्वीकृति के बिना पार्क निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है।

बताया जाता है कि उक्त क्षेत्र वन विभाग के अधीन है, बावजूद इसके नगर पालिका परिषद द्वारा लगभग 3 लाख रुपये की लागत से मुक्तिधाम का निर्माण कराया जा रहा है। आरोप है कि इस निर्माण कार्य के संबंध में न तो वन विभाग से पूर्व अनुमति ली गई और न ही पर्यावरणीय नियमों का पालन किया गया। इससे वन भूमि को भारी क्षति पहुंच रही है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस अवैध निर्माण से वन क्षेत्र का प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो रहा है, वहीं दूसरी ओर क्षेत्र में विचरण करने वाले वन्य जीव-जंतु भी प्रभावित हो रहे हैं। निर्माण कार्य के चलते जंगल में शोर, खुदाई और मानव गतिविधियों के बढ़ने से वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

सूत्रों के अनुसार सकोला बीट प्रभारी की जानकारी के बावजूद निर्माण कार्य जारी है, जिससे उच्च अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह अवैध निर्माण कार्य बिना रोक-टोक के आगे बढ़ रहा है।

इस संबंध में क्षेत्रवासियों एवं पर्यावरण प्रेमियों मिथिलेश कुमार एवं अनिल कुमार ने वन विभाग के उच्च अधिकारियों से अपील की है कि वन भूमि पर हो रहे अवैध निर्माण कार्य को तत्काल रोका जाए तथा दोषियों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो वन संपदा को अपूरणीय क्षति होगी। अब देखना यह होगा कि वन विभाग एवं जिला प्रशासन इस गंभीर मामले में क्या कदम उठाता है और वन भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कब तक ठोस कार्रवाई की जाती है।

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