उप वनपाल की कार्य शैली से आदिवासियों के ऊपर छाया संकट, रिश्वत की कमी तो मुर्गा से भरपाई
उमरिया
आदिवासियों के हित संवर्धन के लिए कृत संकल्पित सरकार के कदमों पर राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ के धमोखर रेंज के रायपुर सर्किल के उप वनपाल पैर में बंधे पत्थर साबित हो रहे हैं। बताया जाता है कि यह उप वनपाल पिछले एक दशक से यहाँ पदांकित होकर आदिवासियों का जमकर शोषण कर रहे हैं। बताया जाता है कि आदिवासियों का शोषण, वन्य प्राणियों का शिकार, और वन संपदा के दोहन की इनकी कुशलता और उससे प्राप्त काली कमायी के कारण यह उप वनपाल राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों का कमाऊ पूत बनकर उभरा है और इसी के बदौलत अधिकारी- कर्मचारी कोई भी रहे उप वनपाल उमेश वर्मन ही रहेंगे।
अभी हाल में सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो ने इस शासकीय सेवक की कलई खोलकर रख दी है। वीडियो में सकरिया निवासी रतन रैदास से 1050 .00 रूपये हुकुम सिंह 1500.00 और काशी रैदास 1500.00 रूपये की रिश्वत की बात बतायी गयी है। इसी तरह इन्ही अधिकारी के व्दारा रायपुर सर्किल के ग्राम पंचायत सकरिया के गिडरी में साठ वर्षीय कमल भान सिंह के बैंल (नटवा) का शिकार हो जाने के कारण वन विभाग व्दारा प्रदान की जाने वाली सहयोग राशि के बदले उप वनपाल के व्दारा खुले आम पैसो की मांग की जाती रही है और वद्ध विकलांग आदिवासी रिश्वत की पूर्ति नहीं कर पाया तो उसने उसके मुर्गे को ही जबरन उठाकर ले गया। उप वनपाल की इस हरकत से आदिवासियों में व्यापक तौर पर क्षोभ व्याप्त है। खेद जनक कहा जाता है कि इन चार वीडियो के वायरल होने से राष्टीय उद्यान के अधिकारियों की प्रतिष्ठा पर काले धब्बे लग रहे हैं परंतु आरोपित उप वनपाल को संरक्षित करने से यह सवाल उन पर लगने लगे हैं की इस रिश्वत में वरिष्ठ अधिकारियों की सह पर ही उप वनपाल की दुकान दारी चल रही है। चार वीडियो जो सामने आये है इस तरह की घटना कोई पहली और अनोखी नहीं है। भले ही उनका राज फाश न हो पाया हो लेकिन इनकी कार्य शैली से जन जन प्रभावित है ।
राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ के कतिपय अधिकारियों के व्दारा जिस तरह आदिवासियों का शोषण करने के मामले जिस तरह प्रकाश में लगातार आ रहें हैं इस पर जिला प्रशासन के आलाकमान अधिकारियों को संज्ञान लेते हुए आदिवासियों के हितों को संवर्धन करते हुए दोषियों को दंडित करने की आवश्यक कदम उठायेंगे।
