आजादी के 78 वर्ष बाद भी बिजली के नही हुए दर्शन, उजाले के नाम पर कैरोसीन भी छीना

आजादी के 78 वर्ष बाद भी बिजली के नही हुए दर्शन, उजाले के नाम पर कैरोसीन भी छीना

*आदिवासी गाँवों  की त्रासदी भरी दास्तान*


उमरिया

जिले में अब भी दर्जनों गाँव ऐसे है, जहाँ पर अभी भी मूलभूत सुविधाएं गरीब आदिवासियों के लिए मृगतृष्णा बनी हुई है। देश आजाद होकर आठवे दशक में प्रवेश कर रहा है, परन्तु आदिवासियों की  बुनियादी समस्याओं का पहाड़ वैसे ही खडा है। अभी भी जिला के दूर दराज क्षेत्रों में बिजली जैसी बुनियादी जरूरत की पहुंच न होने के कारण लोगों का जीवन उन्नीसवीं सदी में जीने के लिए मजबूर है। ऐसे गाँवों में आदिवासी विकास खंड के बाघन्नारा,गांधी ग्राम, चिनकी और सास जैसे वनांचल के गाँव आज अंधेरे में जीवन यापन कर रहे हैं। इन  गांवो  के लोग रात में अंधकार से निपटने के लिए  रोशनी के लिए एक मोमबत्ती का सहारा लेते हैं। देश की सरकारें यह मानकर की पूरे देश में अंधकार से निपटने के कारगर बिजली आपूर्ति हो गयी है और अब कैरोसीन की आवश्यकता नहीं है, यह मानकर गरीब आदिवासियों को मिलने वाली शासकीय उचित मूल्य दूकानों से कैरोसीन की सुविधा भी छीन ली गई है। मामला जिले के आदिवासी विकास खंड क्षेत्र के पाली जनपद के ग्राम सांस का है। यहां आजादी के बाद अब भी बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। पाली के इस सांस गाँव मे  में तकरीबन  70 बैगा जाति के लोग निवास करते है। लगभग 100 से 200  की आबादी वाले इस गांव में रहते हैं जहाँ माध्यमिक तक एक विद्यालय भी है। 

आजादी के 78 साल बाद भी गांव की सूरत नहीं बदल सकी है। गांव में विद्युतीकरण नहीं हो सका है। कई वर्ष पहले गांव में बिजली के खम्भे खड़े कर  तार दौड़ा दी गयी, लेकिन अभी तक तार   गाँव मे रोशनी की किरणें गाँव तक नहीं पहुंच सकी। प्रशासनिक अमले के साथ इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने भी  इनके भविष्य के साथ खूब खिलवाड़ किया इनके द्वारा वोट के बदले  सिर्फ आश्वसान की घुट्टी  ही मिली। गांव के लोग कहते हैं कि बिजली न होने से रात में जंगली जानवरों का भय बना रहता है। लोगों को रात में उजाले के लिए सौर ऊर्जा व मोमबत्ती का सहारा लेना पड़ता है।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश के हर घर तक बिजली पहुंचाने के लिए सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) लांच की थी, जिसके तहत घर घर बिजली देने का प्लान बनाया, लेकिन दिल्ली और भोपाल में बनी ये योजनाए सायद यहां पहुच ही नहीं पाई।  उमरिया जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के बिरसिंहपुर पाली जनपद के कठई पंचायत के सांस गाँव व चांदपुर पंचायत के बाघन्नारा जहाँ बैगा जाति की बस्ती है जहां सांस गाँव मे लगभग 200 परिवार तो बाघन्नारा में लगभग 500 परिवार बैगा जाति के लोग निवाश करते लेकिन आज तक इस सांस गाँव मे उजाला को देखने के लिए कई वर्ष गुजर गए वन विभाग के जंगलों में खंभे लग गए तार भी दौड़ दिए लेकिन आज 5 से 6 वर्ष बीतने जा रहा तार में करेण्ट कब आएगा कोई बताने वाला नही है। 

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