भ्रष्टाचार साबित, फिर भी कुर्सी पर काबिज, नही हुई कार्यवाही, एक तरह के अपराध, मगर बदले दण्ड के मापदंड

भ्रष्टाचार साबित, फिर भी कुर्सी पर काबिज, नही हुई कार्यवाही, एक तरह के अपराध, मगर बदले दण्ड के मापदंड 

*अभियुक्त की कुर्सी न बदलने से बढी दस्तावेजों में हेराफेरी की आंशका*


उमरिया

जिले में जिले की कमान सम्हाल रहे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की स्वेच्छाचारी कार्य शैली से जिले में व्यापक पैमाने पर भष्ट्राचार और अराजकता अपनी जडे जमा चुकी है। विदित हो की उमरिया जिले के पाली विकास खंड में दो समांतर भष्ट्राचार के मामले पिछले एक वर्ष के अन्दर उजागर हुए, जिनकी गूंज पाली विकास खंड से लेकर राजधानी  की गलियों में सुनाई दी, जिस पर जांच के आदेश राजधानी से ही प्रसारित किये गए। दोनों मामले में से एक में जांच का जिम्मा कलेक्टर उमरिया को और दूसरे मामले की जांच ग्रामीण विकास विभाग से जुडी होने के कारण अपर कलेक्टर मुख्य कार्य पालन अधिकारी जिला पंचायत उमरिया को भष्ट्राचार की जांच सौंपी गई थी, जांच में भष्ट्राचार की पुष्टि हुई है और इसमें से एक मामले में जांच कर कार्यवाही की गयी, यद्यपि एफ आई आर में उच्च न्यायालय से रोक होने के कारण प्राथमिकी दर्ज नही हो सकी, जबकि दूसरे मामले में अपर कलेक्टर मुख्य कार्य पालन अधिकारी जिला पंचायत उमरिया ने मामले में अपराध की पुष्टि होने के बाद अपने मातहतों को बचाने का काम किया गया। इस मामले में पुलिस में एफ आई आर तो दर्ज हुई लेकिन इसके बाद भष्ट्राचार के लिये दोषी कर्मचारियों को सीधे - सीधे बचाने के लिए विभागीय कोई कार्यवाही नहीं की गयी। पहला मामला पाली विकास खंड कार्यालय में हुए प्रधानमंत्री आवास योजना में हूई व्यापक आर्थिक  गडबडी का था, जिस पर प्रधानमंत्री आवासों को खुर्द बुर्द कर हितग्राहियों के नाम पर इस मद की राशि हडपने का अपराध सिद्ध होने पर प्रधानमंत्री आवास योजना के ब्लॉक समन्वयक मोहम्मद इब्राहिम नोमानी और पतरू राम भगत पंचायत समन्वयक पाली को मुख्य आरोपी मानते हुए मामले की प्राथमिकी थाना पाली में अपराध क्र 600 /24  भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 120 बी और 34 के तहत अपराध कायम कर विवेचना कर न्यायालय में है, दूसरा मामले में खंड शिक्षा कार्यालय में भी व्यापक स्तर पर शासकीय धन राशि का गबन किया गया था। जिस मामले में खंड शिक्षा कार्यालय में पदस्थ लेखापाल धनकर को मुख्य दोषी पाया गया था। इस मामले में उमरिया जिले के कलेक्टर धरणेन्द्र जैन ने खंड शिक्षा कार्यालय में लेखापाल के पद पर पदस्थ धनकर सहित दो को निलंबित कर एक कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, वही पर खंड शिक्षा अधिकारी राणा प्रताप सिंह को भोपाल से निलंबित कराने के लिए कलेक्टर उमरिया ने ऐडी चोटी एक कर निलंबित कराया, और उन्हें पद मुक्त कराया गया था। यद्यपि उनके निलंबन को बाद में विभागीय सचिव भोपाल ने शून्य घोषित कर दिया।

जनपद पंचायत पाली में प्रधानमंत्री आवास योजना में हुए आवास घोटाले मामले में पुलिस में प्राथमिकी तो दर्ज करायी गयी, किन्तु जिनके सिर पर घोटाले के आरोप साबित हुए है, शासकीय धन राशि के गबन करने के प्रमाणित पुष्टि हुई, उनके ऊपर किसी भी तरह की विभागीय कार्यवाही न करते हुए उन्हें निलंबित न कर उनकी उसी कुर्सी पर पदासीन रखा गया है।  दोनों मामले में एक समान आर्थिक अपराध साबित होने के बाद भी कार्यवाही में भिन्नता प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यशैली पर तीखे सवाल खड़े कर दी है कि आखिर कार वजह क्या है कि आवास घोटाले के आरोपियों को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद जिला पंचायत के मुखिया ने दे दी है। यह मामला कलेक्टर उमरिया के संज्ञान में होने के बाबजूद उन्होंने भी इससे मुंह मोड रखा है। खेद जनक कहा जाता है कि जब आये दिन जिला पंचायत के मठाधीशों पर भष्ट्राचार के तीखे आरोप लगाये जा रहे हैं, तब आवास घोटाले मामले में दोषी अधिकारियों के साथ जिला पंचायत की यह सांठगांठ कर उन्हें अभय दान देने की जिला पंचायत की उदारता पर संदेह होना आश्चर्य का विषय नहीं है। चूंकि आर्थिक अपराध के मामले में कर्मचारी आचार संहिता में  कर्मचारियों को उसी कुर्सी पर बैठाये रखना कदाचरण की श्रेणी में आता है, फिर भी  इस संवेदनशील मामले में इन कर्मचारियों को पद से पृथक न करना वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता उजागर करती है। इस मामले में सबसे पेचीदगी यह सामने आयी है कि न्यायालीन अभियुक्तों के पास कमान होने से न्यायालीन दस्तावेजों में भी हेराफेरी की आंशका बढ गयी है। इस संवेदनशील मामले में प्रदेश स्तर के आला अधिकारियों से अपेक्षा है कि उक्त प्रकरण में न्यायोचित कार्यवाही कर आम जनता में न्याय का संदेश देगे।

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