आस्था की आड़ में लूट का खेल, मंदिर निर्माण में भ्रष्टाचार का खुला तांडव, जिम्मेदार मौन

आस्था की आड़ में लूट का खेल, मंदिर निर्माण में भ्रष्टाचार का खुला तांडव, जिम्मेदार मौन

*18 लाख रुपये का परिक्रमा निर्माण कार्य*


अनूपपुर

जिले के जमुना कोतमा कोल इंडिया की सहायक कंपनी एसईसीएल का जमुना-कोतमा क्षेत्र अब सिर्फ एक औद्योगिक यूनिट नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और निकम्मेपन की सार्वजनिक प्रयोगशाला बन चुका है महारत्न का तमगा इनकी गर्दन में है, लेकिन ज़मीन पर सड़ांध, गंदगी और अंधेरगर्दी है सिविल विभाग का हाल ये है कि उसे अब सफाई की फिक्र नहीं, छतों की मरम्मत की चिंता नहीं, और जनता के पीने के पानी से कोई सरोकार नहीं, कॉलोनियों में ज़िंदगी अब नरक में तब्दील हो चुकी है गलियों में बजबजाती नालियां, मकानों की रिसती छतें और कुछ तो ऐसे मकान हैं जहां छतों पर पीपल के पेड़ उग चुके हैं यानी अब लोगों के सिर पर छत नहीं, जंगल उग आए हैं लेकिन विभाग और उसके अफसर ऐसे सोए हैं जैसे हर सुबह रिश्वत से ही जागते हों अफसरों की आंखें बंद हैं और ठेकेदारों की जेबें खुली गयीं, जिसमे सबसे घिनौनी तस्वीर काली मंदिर परिसर की है, जहां आस्था के नाम पर 18 लाख रुपये का परिक्रमा निर्माण कार्य दिखाया जा रहा है, लेकिन जब मौके पर जांच की गई, तो परिक्रमा का चबूतरा सिर्फ हल्के दबाव से भरभरा कर गिर गया यह कोई दुर्घटना नहीं, यह जनता की आंखों में धूल झोंकने का घिनौना प्रमाण है, निर्माण में सीमेंट से ज़्यादा रेत और ईमानदारी से ज़्यादा घपले की परतें भरी गई हैं।

जिस कार्य की निगरानी पारदर्शिता से होनी चाहिए थी, वहां ठेकेदारी का पूरा धंधा रिश्तेदारी और मिलीभगत में बंट चुका है ठेका दिया गया रवि तिवारी को, और फिर आधा काम उनके साले शारदा मिश्रा को थमा दिया गया क्या अब एसईसीएल में टेंडर पारिवारिक संबंधों की थाली में परोसे जाते हैं? क्या सिविल विभाग की फाइलों में ‘रक्त संबंध’ ही योग्यता बन गया है।

सिविल विभाग के एसओ सिविल पीके द्विवेदी और ओवरसीयर अमित जैसे अधिकारी इस पूरे घोटाले के ‘मुख्य रचयिता’ हैं, जो जिम्मेदारी के नाम पर सिर्फ कुर्सी गरम कर रहे हैं ये अफसर अब विभाग के सेवक नहीं, बल्कि ठेकेदारों के 'सुविधा प्रबंधक' बन चुके हैं इनकी चुप्पी को अब चुप्पी नहीं, बल्कि संगठित मिलीभगत की सहमति माना जाना चाहिए। पीके द्विवेदी, जिनका कर्तव्य था कि कार्य की गुणवत्ता की निगरानी करें, वो खुद पूरे घटनाक्रम में 'चुप्पी का ठेका' लेकर बैठे हैं, उनके लिए मंदिर सिर्फ़ बजट पास करने की जगह है, न कि श्रद्धा का स्थल वहीं ओवरसीयर अमित की भूमिका तो और भी शर्मनाक है, जिनके नाम पर सुपरविजन चलता है, वही आंखें मूंदे बैठे हैं ये अधिकारी न केवल निकम्मे हैं, बल्कि जनता की आंखों में धूल झोंकने के विशेषज्ञ बन चुके हैं।

मंदिर के पुजारी ने जो बताया, वो व्यवस्था की शर्मनाक पोल खोलता है। न शौचालय है, न मंच, भक्तों के लिए मूलभूत सुविधा तक नहीं, लेकिन विभाग फूल-पौधों में लाखों रुपये उड़ाने को तत्पर है। मंदिर परिसर की बाउंड्री वॉल तक टूटी हुई है, लेकिन एस्टीमेट में फूल-पौधे लगाने का प्रावधान बना हुआ है।

इनका कहना है।

हमने कई बार ठेकेदार को हिदायत दी है कि वह अच्छा काम करें लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं है, यहां तक की हमारे बड़े अधिकारी आकर बोल गए हैं कि काम जल्दी पूरा करो, लेकिन ठेकेदार सुनने को तैयार नहीं है, ठेकेदार पूरा काम करेगा तो उसे पूरा पेमेंट मिलेगा और बाउंड्री वॉल का निर्माण भी शीघ्र कराया जाएगा।

*अमित ओवरसीयर कोतमा गोविंदा क्षेत्र*

परिक्रमा का निर्माण गुणवत्ता विहीन हो रहा है तो मैं उसे तत्काल दिखवाता हूं।

*पी के द्विवेदी एसओ सिविल जमुना कोतमा क्षेत्र*

हमने काम पेटी कॉन्ट्रैक्ट पर लिया है और यह ठेका 50% बिलों में है कितना अच्छा काम होगा और साथ ही प्रबंधन हमारा रनिंग बिल भी नहीं दे रही है।

*शारदा मिश्रा, पेटी कॉन्टैक्टर, जमुना कोतमा क्षेत्र*

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